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बिहार चुनाव में आपराधिक रिकार्ड का प्रचार नहीं करने वालों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन और राजनीतिक दलों को भेजा नोटिस

1st Bihar Published by: Updated Mon, 15 Feb 2021 06:50:32 PM IST

बिहार चुनाव में आपराधिक रिकार्ड का प्रचार नहीं करने वालों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन और राजनीतिक दलों को भेजा नोटिस

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PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान दागी नेताओं के आपराधिक रिकार्ड सार्वजनिक नहीं करने को लेकर राजनीतिक पार्टियों और इलेक्शन कमीशन को झटका लगा है. सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों और मुख्य चुनाव आयुक्त को अवमानना नाटिस जारी किया है. नोटिस का जवाब चार हफ़्ते में देना है, जिसके बाद इस मामले में 9 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई होगी. 


जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन, जस्टिस हेमन्त गुप्ता और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने वकील बृजेश सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा निर्देशों के बावजूद राजनीतिक पार्टियों ने उन पर पूरी तरह से अमल नहीं किया तो आयोग ने उनके खिलाफ क्या एक्शन लिया गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सभी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट दे दी है.


आपको बता दें कि चुनाव अयोग ने सभी दलों को फॉर्म सी 8 जारी किया था. वहीं फॉर्म सी 7 भी इसके साथ दिया गया था, जिसमें उन्हें चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्म्दवारों को चुनने के पीछे की वजह वोटरों को 48 घंटों के अंदर बतानी थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसमें चतुराई से काम लिया और छोटे स्तर के अखबारों में ही इसकी जानकारी दी. जबकि इसे मुख्य समाचार पत्रों या मीडिया प्लेटफार्म पर देना चाहिए था.


उच्चतम न्यायालय ने 13 फरवरी 2020 को एक फैसले में सभी चुनावी पार्टियों और नियामक संस्था चुनाव अयोग को निर्देश दिया था कि सभी सुनाव लड़ने वाले दल यदि ऐसे उम्मीदवार को चुनते हैं, जिनका आपराधिक रिकॉर्ड है तो वे इस बारे में मतददाताओं को स्पष्टीकरण देंगे कि उन्होंने ऐसा उम्मीदवार क्यों चुना. यह स्पष्टीकरण उन्हें दल की वेबसाइट पर देना होगा. साथ ही चुने गए उम्म्दवारों की जिम्मेदारी होगी कि मतदान से दो हफ्ते पहले उन्हें अपने आपराधिक रिकॉर्ड का उचित माध्यमों में जैसे रेडियो, टीवी और स्थानीय अखबारों में जो उनके क्षेत्र में लोकप्रिय हों और उनका व्यापक प्रसार हो, उनमें तीन बार प्रचार करेंगे.


याचिकाकर्ता ने कहा कि चुनावों के दौरान बिहार में इस आदेश का कतई पालन नहीं हुआ. जिन उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ लंबित अपराधिक मामलों का प्रचार किया, वे अखबार बहुत की छोटे थे और एक औपचारिकता दिखाते हुए यह प्रचार कर दिया गया. इस प्रचार को मतददाताओं ने नहीं देखा, जबकि प्रचार करने का आदेश देने का यही मतलब था.