PATNA: बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का हाल दिलचस्प हो गया है. आज अपने विवादित प्राइवेट सेक्रेट्री कृष्णानंद यादव से एक डीएम को फोन लगवाया. डीएम ने बात करने से इंकार कर दिया. ये वही शिक्षा मंत्री हैं, जो हर सरकारी कार्यक्रम में आपत्तिजनक और विवादित बयान जरूर देते थे. लेकिन केके पाठक के शिक्षा विभाग में आने के बाद बोलती बंद है. शिक्षा मंत्री पिछले तीन सप्ताह से अपने ऑफिस नहीं गये हैं. हाल ये है कि आज पत्रकारों ने मंत्री से केके पाठक के बारे में सवाल पूछा तो वे तेजी से उठकर निकल लिये.
डीएम ने बात करने से मना किया
वाकया राजद कार्यालय का है. शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर राजद कार्यालय में जन सुनवाई कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे थे. दरअसल राजद ने तय कर रखा है कि उसके हर मंत्री बारी-बारी से पार्टी दफ्तर में बैठेंगे और लोगों की शिकायत सुनकर कार्रवाई करेंगे. आज चंद्रशेखर इसी कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे थे. वहां आयी एक फरियादी ने एक बिल्डर की शिकायत की. कहा कि बिल्डर ने पैसा लेकर फ्लैट नहीं दिया है. रेरा ने डीएम को पैसा वापस दिलवाने का निर्देश दिया है लेकिन डीएम के स्तर से कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
इसके बाद मंत्री ने अपने प्राइवेट सेक्रेट्री कृष्णानंद यादव को डीएम को फोन लगाने कहा. बता दें कि ये वही कृष्णानंद यादव हैं, जिन्हें शिक्षा विभाग ने फर्जी बताकर ऑफिस में घुसने पर रोक लगा रखा है. हालांकि मंत्री कृष्णानंद यादव को अपने साथ लेकर ही चल रहे हैं. आज राजद कार्यालय से प्राइवेट सेक्रेट्री कृष्णानंद यादव ने डीएम को फोन लगाया. कहा कि मंत्री जी बात करना चाहते हैं. उधर से जवाब आया-अभी बिजी हैं, बाद में बात कर लेंगे. प्राइवेट सेक्रेट्री ने लोगों के बीच में ही मंत्री को बताया कि डीएम ने बाद में बात करने को कहा है. मंत्री जी का पहले से ही उतरा हुआ चेहरा और उतर गया.
केके पाठक का नाम सुनते ही भागे
राजद कार्यालय में जन सुनवाई के बाद मंत्री चंद्रशेखर ने मीडिया से बात की. लेकिन पत्रकारों ने जैसे ही उनके विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बारे में पूछा तो मंत्री निकल भागे. पत्रकार उनका पीछा करते रहे लेकिन मंत्री इतनी तेजी में उठकर निकले और गाड़ी में बैठ कर निकल गये कि पूछिये मत. वैसे उससे पहले वे बता रहे थे कि ब्यूरोक्रेसी में गड़बड़ी है. तभी लोग राजनेताओं के पास आते हैं. मंत्री चंद्रशेखर ने मणिपुर की घटना और पहलवानों के आंदोलन को भी ब्यूरोक्रेसी से जोड़ दिया. कहा कि अधिकारियों के लेवल पर गड़बड़ी के कारण लोगों को परेशानी होती है. इसी को दूर करने के लिए विधायिका है.