SUPREME COURT : AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर 1967 का फैसला खारिज , SC ने आज सुनाया बड़ा फैसला

SUPREME COURT : AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर 1967 का फैसला खारिज , SC  ने आज सुनाया बड़ा फैसला

DESK : अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या खत्म होगा इस पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाया। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाई। इससे पहले संविधान पीठ ने एक फरवरी को इस पर फैसला सुरक्षित रखा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की एक समिति गठित की गई है।कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है।


दरअसल, सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस विवादास्पद कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाया  कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार देता है। इस मामले में कोर्ट का कहना है कि अब नई बेंच एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मानदंड तय करेगी। इस मामले पर सीजेआई समेत चार जजों ने एकमत से फैसला दिया है जबकि तीन जजों ने डिसेंट नोट दिया है। मामले पर सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत हैं।वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग है।


वहीं, कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से अपने फैसले में 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जो एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था। सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक माने जाने के मानदंड क्या हैं? किसी भी नागरिक द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित किया जा सकता है।अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार निरपेक्ष नहीं है। अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के विनियमन की अनुमति अनुच्छेद 19(6) के तहत दी गई है, बशर्ते कि यह संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न करे।


इधर, अदालत ने आठ दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एक फरवरी को शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया और संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। 1981 के संशोधन ने इसे प्रभावी रूप से अल्पसंख्यक दर्जा दिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनके पास अब कुछ ही कार्य दिवस हैं। ऐसे में उनकी सेवानिवृत्ति से पहले इन मामलों में फैसला आ जाएगा। जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सेवानिवृत्त होने वाले आखिरी न्यायाधीश हैं।