अमित शाह के आने से पहले नीतीश ने BJP को दिखाया ‘डर’: इफ्तार के बहाने तेजस्वी के घर पहुंचने का मकसद समझिय़े

अमित शाह के आने से पहले नीतीश ने BJP को दिखाया ‘डर’: इफ्तार के बहाने तेजस्वी के घर पहुंचने का मकसद समझिय़े

PATNA: लंबे अर्से बाद बीजेपी के दूसरे सबसे बड़े नेता अमित शाह बिहार के दौरे पर आ रहे हैं और उनके आगमन के कुछ घंटे पहले नीतीश कुमार इफ्तार की दावत के बहाने लालू-राबड़ी के आवास पहुंच गये हैं। पटना में नीतीश कुमार जहां रहते हैं वहां से चंद कदमों पर लालू-राबड़ी का आवास है लेकिन पांच साल से भी ज्यादा समय के बाद नीतीश कुमार उन चंद कदमों की दूरी कर रहे हैं। सियासत की समझ रखने वाले ये जानते हैं कि नीतीश का कोई भी कदम बेमकसद नहीं होता। जाहिर है एक औपचारिक निमंत्रण पत्र के बहाने वे लालू-राबड़ी के घर पहुंच जा रहे हैं तो उसके बड़े सियासी मायने हैं।


भाजपा को डरा रहे हैं नीतीश

बीजेपी में नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे नंबर के नेता अमित शाह 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद 23 अप्रैल को बिहार आ रहे हैं. वे वीर कुंवर सिंह की जयंती के दिन जगदीशपुर में बीजेपी के कार्यक्रम में शामिल होने आ रहे हैं। अमित शाह का जो शेड्यूल आया है उसमें कहीं नीतीश कुमार से मिलने का कार्यक्रम शामिल नहीं है। उन्हें बीजेपी के कार्यक्रम में शामिल होना है। बीजेपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिलना है और फिर वापस दिल्ली लौट जाना है लेकिन अमित शाह के पटना आगमन के समय से 16 घंटे पहले नीतीश ने खेल कर दिया है।


नीतीश कुमार 22 अप्रैल की शाम राबड़ी देवी के आवास पर आयोजित तेजस्वी यादव की दावत-ए-इफ्तार में शामिल होने पहुंच गये हैं। बता दें कि कुछ दिनों पहले नीतीश कुमार ने भी इफ्तार की दावत दी थी. उसमें तेजस्वी यादव और राबडी देवी को औपचारिक निमंत्रण भेजा गया था. लेकिन दोनों में से कोई भी उसमें शामिल होने नहीं पहुंचा था। अब जब तेजस्वी ने इफ्तार की दावत दी तो उसका औपचारिक कार्ड नीतीश कुमार के घर भेजा गया. उस औपचारिक कार्ड के सहारे ही नीतीश कुमार राबडी तेजस्वी के घर पहुंच गये. आखिर नीतीश कुमार को राबड़ी तेजस्वी के घर जाने की बेचैनी क्यों हुई। आपकों विस्तार से बताते हैं।


नीतीश की यूएसपी समझिये

पहले इस सवाल का जवाब जानिये कि बिहार विधानसभा में सबसे बडी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री क्यों बना रखा है. बीजेपी के बड़े नेता इसका कारण बताते हैं. वो कहते हैं कि नीतीश कुमार की यूएसपी यही है कि वे किसी भी वक्त पाला बदल सकते हैं. उन्हें किसी पार्टी से नाता तोड़ने और किसी दूसरी पार्टी के साथ जाने में मिनट भर का समय नहीं लग सकता है. बीजेपी इससे ही डरती है. बीजेपी जानती है कि नीतीश कुमार को अगर मुख्यमंत्री नहीं बनाये रखा गया तो वे बिना किसी देरी के राजद के साथ चले जायेंगे. फिर बीजेपी लाख कुछ कह ले, देश भर में मैसेज तो यही जायेगा कि भाजपा के हाथ से एक और राज्य की सत्ता चली गयी. बिहार में अगर राजद-जेडीयू की सरकार बन गयी तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी परेशानी हो सकती है. लिहाजा बीजेपी ने नीतीश कुमार के तमाम सियासी ज्यादती को बर्दाश्त कर उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बिठा कर रखा है। 


नीतीश कुमार अब बीजेपी को उसी डर से डरा रहे हैं. दरअसल नीतीश कुमार पर हालिया दिनों में बीजेपी का दवाब लगातार बढ़ा है. नीतीश कुमार खुद को नरेंद्र मोदी औऱ अमित शाह के लेवल का नेता मानते रहे हैं. लेकिन 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही नरेंद्र मोदी औऱ अमित शाह ने नीतीश कुमार से कोई पॉलिटिकल बात नहीं की है. नरेंद्र मोदी से अगर नीतीश कुमार की मुलाकात भी हुई है तो वह तब हुई जब नीतीश जातिगत जनगणना को लेकर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लेकर उनसे मिलने गये. अमित शाह ने भी नीतीश कुमार से कोई सियासी बात नहीं की है. बीच में बिहार विधान परिषद के चुनाव में सीटों के बंटवारे का मामला फंसा तो बीजेपी ने भूपेंद्र यादव को भेजकर दोनों पार्टियों के बीच सीटों शेयरिंग कराया। 


अब 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के लगभग डेढ़ साल बाद अमित शाह जब बिहार के दौरे पर आ रहे हैं तो भी उन्होंने नीतीश कुमार का नोटिस नहीं लिया. अमित शाह ने बिहार आकर अपनी पार्टी के कार्यक्रम में शामिल होने और फिर वापस दिल्ली लौट जाने का कार्यक्रम रखा है. इसका भी मैसेज यही गया कि बीजेपी नीतीश और उनकी पार्टी को गंभीरता से नहीं ले रही है. तभी शायद अपना महत्व बताने नीतीश राबड़ी-तेजस्वी के दावत-ए-इफ्तार में जा रहे हैं।


क्या वाकई होगा नीतीश-तेजस्वी का गठबंधन

अब सवाल ये उठता है कि क्या ये मान लिया जाना चाहिये कि नीतीश कुमार औऱ तेजस्वी यादव के बीच गठबंधन होने के आसार बढ़ गये हैं. अभी इसका जवाब देना जल्दबाजी होगी. दरअसल 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही नीतीश कुमार चिढे हुए हैं.  वे अपनी पार्टी के फोरम पर ये बोलते भी रहे हैं कि उनकी पार्टी को साजिश करके हराया गया. नीतीश की पार्टी के दूसरे नेता ये खुलकर कहते रहे हैं कि बीजेपी ने चिराग पासवान को आगे कर जेडीयू को हराया। 


जेडीयू का एक गुट विधानसभा चुनाव के बाद से ही तेजस्वी यादव के साथ दोस्ती करने की कोशिश में लगा है. राजद सूत्र बताते हैं कि कई दफे नीतीश की ओर से लालू-तेजस्वी को मैसेज भी भेजा गया. लेकिन तेजस्वी नीतीश कुमार से समझौते पर राजी नहीं हुए. राजद की ओर से यही जवाब दिया गया कि अगर नीतीश कुमार कुर्सी छोड़ कर तेजस्वी को सीएम बनाने को राजी हो जाते हैं तभी जेडीयू-आरजेडी के बीच गठबंधन हो सकता है. नीतीश के सीएम बने रहने की शर्त पर कोई दोस्ती नहीं होगी।


लिहाजा आज तेजस्वी की दावत में जाने से नीतीश कुमार के साथ उनकी दोस्ती की बात करना बेहद जल्दबाजी होगी. नीतीश कुमार के बारे में आम अवधारणा यही रही है कि वे कुर्सी छोड कर कोई समझौता नहीं कर सकते. आज लालू-राबड़ी के घर जाकर नीतीश कुमार बीजेपी को डरा रहे हैं. शायद इससे बीजेपी डर भी जाये. लेकिन जेडीयू-राजद के बीच गठबंधन हो जाने की बात कहना फिलहाल बहुत जल्दबाजी होगी।