PATNA: बिहार सरकार ने पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों का आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया है। राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी गयी है। नमन श्रेष्ठ और गौरव कुमार ने पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की और नीतीश सरकार के इस फैसले को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।
दरअसल विधानमंडल के दोनों सदनों से सर्वसम्मति से पारित दो विधेयकों बिहार पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) विधेयक 2023 एवं बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में) आरक्षण (संशोधन विधेयक 2023) को राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के हस्ताक्षर और 21 नवम्बर को जारी गजट अधिसूचना के साथ ही राज्य की सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण की नई व्यवस्था तत्काल प्रभाव से लागू की गई।
जनहित याचिका में बताया गया कि जातीय गणना में पिछड़ी जातियों का प्रतिशत 63.16 प्रतिशत है, इसलिए 50 प्रतिशत से बढ़ाकर इनका आरक्षण 65 प्रतिशत किया गया। याचिकाकर्ता ने इन संशोधनों पर रोक लगाने की मांग की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार ने जो संशोधित अधिनियम पारित किया वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
आरक्षण में जो संशोधन किया गया उसके अनुसार अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया वही अनुसूचित जनजाति के एक प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर दो प्रतिशत किया गया। जबकि पिछड़ा वर्ग को 12 से बढ़ाकर 18 और अति पिछड़ा को 18 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत आरक्षण किया गया। वही बिहार सरकार ने आरक्षण संशोधन बिल के माध्यम से आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया। वही 10 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को जोड़ देने पर कुल आरक्षण 75 फीसदी हो गया है। राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद 21 नवंबर को इसे लेकर बिहार सरकार ने गजट भी प्रकाशित कर दिया।