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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 03 Apr 2025 03:54:57 PM IST
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Waqf Board: वक्फ संशोधन बिल को लेकर पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। केंद्र सरकार ने बिल को लोकसभा से पास करा लिया है जबकि राज्यसभा में इस बिल पर चर्चा हो रही है। दोनों सदनों से बिल के पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इस कानून को लागू कर दिया जाएगा। इस बीच लोगों के मन ने वक्फ बोर्ड को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
दरअसल, वक्फ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के "वकफा" शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है रोकना, धारण करना या जोड़ना। इस्लामी कानून में वक्फ एक धार्मिक या समाजसेवी उद्देश्य के लिए संपत्ति को दान करने की प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसमें उस संपत्ति से होने वाले लाभ को सार्वजनिक भलाई के लिए खर्च करने का प्रावधान है। वक्फ घोषित होने के बाद किसी संपत्ति को बेचना, किसी को वारिस बनाना या हस्तांतरित करना संभव नहीं होता।
वक्फ इस्लामी परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह धार्मिक संस्थाओं, शैक्षिक संगठनों और कल्याणकारी परियोजनाओं के लिए लंबे समय तक दान सुनिश्चित करता है। वक्फ की संरचना में तीन प्रमुख पक्ष होते हैं। पहला वकिफ, वह व्यक्ति जो संपत्ति दान करता है। दूसरा मवकूफ अलय्ह, वे लाभार्थी जो वक्फ से होने वाले लाभ का उपयोग करते हैं। तीसरा मुतवल्ली, वह ट्रस्टी है जो वक्फ संपत्ति का प्रबंधन करता है।
इस्लाम धर्म के अनुसार, चूंकि वक्फ संपत्तियां अल्लाह को दी जाती हैं, इसलिए वक्फ का प्रबंधन या प्रशासन करने के लिए वक्फ या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा एक 'मुतवल्ली' नियुक्त किया जाता है। एक बार वक्फ के रूप में नामित होने के बाद स्वामित्व वक्फ करने वाले व्यक्ति से अल्लाह को हस्तांतरित हो जाता है, जिससे यह अपरिवर्तनीय हो जाता है।
भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों में देखा जा सकता है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के पक्ष में दो गांव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंपा। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, भारत में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती रही।
19वीं सदी के अंत में भारत में वक्फ को खत्म करने का मामला तब उठाया गया, जब ब्रिटिश राज के दौरान एक वक्फ संपत्ति पर विवाद लंदन की प्रिवी काउंसिल में पहुंचा था। मामले की सुनवाई करने वाले चार ब्रिटिश जजों ने वक्फ को सबसे खराब और सबसे घातक किस्म की शाश्वतता बताया और वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया। हालांकि, चार जजों के फैसले को भारत में स्वीकार नहीं किया गया और 1913 के मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम ने भारत में वक्फ की संस्था को बचा लिया। तब से वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1954 में वक्फ संपत्तियों को विनियमित करने के लिए वक्फ अधिनियम की शुरुआत की गई, जिसे बाद में 1995 में वक्फ अधिनियम से बदल दिया गया, जो आज भी लागू है। इस अधिनियम में वक्फ संपत्तियों की पहचान के लिए राज्य स्तर पर अनिवार्य सर्वेक्षण, राज्य वक्फ बोर्डों का गठन और केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन किया गया। 2013 में एक प्रमुख संशोधन ने इन नियमों को और सख्त किया, जिसमें वक्फ संपत्तियों के अवैध हस्तांतरण को रोकने के लिए कड़े उपायों की व्यवस्था की गई।
लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक को 12 घंटे की बहस के बाद रात 2:30 बजे पारित किया गया। इस विधेयक के पक्ष में 288 और विपक्ष में 232 वोट पड़े। सत्तारूढ़ एनडीए सरकार ने इसे अल्पसंख्यकों के हित में उठाया गया कदम बताया, जबकि विपक्षी नेताओं ने इसे मुसलमानों के खिलाफ करार दिया। इस विधेयक के साथ सभी प्रस्तावित संशोधनों को नकार दिया गया।