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Mental Health Crisis: देश का हर पांचवां किशोर मानसिक बीमारी से ग्रसित, दिल्ली के आंकड़े देख विशेषज्ञ भी चिंतित

Mental Health Crisis: भारत के 25 करोड़ में से हर पांचवां किशोर डिप्रेशन और चिंता से जूझ रहा है। दिल्ली में 24-39% किशोर डिप्रेशन का शिकार, कोविड और स्क्रीन टाइम ने और बढ़ाया संकट..

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 27 Oct 2025 08:56:59 AM IST

Mental Health Crisis

प्रतीकात्मक - फ़ोटो Google

Mental Health Crisis: भारत के भविष्य कहे जाने वाले किशोर आज मानसिक स्वास्थ्य के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2024 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश के 25 करोड़ किशोरों (10-19 वर्ष) में से करीब 5 करोड़ यानी 20% डिप्रेशन, चिंता और बौद्धिक अक्षमता जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। दिल्ली के आंकड़े और भी चिंताजनक हैं, जहां 24.2 से 39.3% किशोर डिप्रेशन और 50.6% चिंता से ग्रस्त पाए गए। यह स्थिति किशोरों के संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक विकास को प्रभावित कर रही है और देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए भी खतरा बन रही है।


यूनिसेफ की ‘चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ सर्विस मैपिंग-इंडिया 2024’ और द इंडिया फोरम 2024 की रिपोर्ट बताती हैं कि कोविड-19 के बाद से किशोरों में तनाव 20-30% तक बढ़ा है। ऑनलाइन क्लासेस और बढ़ते स्क्रीन टाइम ने इस संकट को और गहराया है। ग्रामीण क्षेत्रों में 30,970 स्कूली किशोरों पर हुए 2024 सिस्टेमेटिक रिव्यू में 21.7% डिप्रेशन और 20.5% चिंता के शिकार पाए गए। दिल्ली के शहरी किशोरों में 10% चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट की समस्या देखी गई। अकेलापन, शहरी तनाव, प्रदूषण, प्रतिस्पर्धा और परामर्श सेवाओं की कमी इसकी प्रमुख वजहें हैं।


क्षेत्रीय असमानताएँ भी इस समस्या को और जटिल बनाती हैं। बिहार में लड़कियों में बौद्धिक अक्षमता 6.87% तक है, जबकि तमिलनाडु में डिप्रेशन 3.67% तक देखा गया। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कम साक्षरता और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी स्थिति को और बिगाड़ रही है। 2024 उदया सर्वे के अनुसार, विवाहित किशोरों में डिप्रेशन की दर अविवाहितों की तुलना में 40-60% अधिक है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, किशोरों में मानसिक विकारों की दर 7.3% है, जिसमें लड़के (7.5%) और लड़कियाँ (7.1%) लगभग बराबर प्रभावित हैं।


इस संकट से निपटने के लिए राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रयासरत हैं लेकिन स्कूलों में परामर्श सेवाओं और जागरूकता की कमी सबसे बड़ी बाधा है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम इस समस्या का समाधान हो सकते हैं। भारत की युवा शक्ति को सशक्त बनाने के लिए सरकार, समाज और परिवारों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि किशोरों का भविष्य सुरक्षित और स्वस्थ हो सके।