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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 15 Nov 2025 04:05:35 PM IST
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Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने जहां एनडीए को प्रचंड जीत दिलाई, वहीं विपक्षी दलों, खासकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लिए ये परिणाम बेहद निराशाजनक साबित हुए हैं। इस चुनाव में आरजेडी ने सबसे अधिक 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन पार्टी सिर्फ 25 सीटों तक सिमटकर रह गई। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस भारी पराजय के बाद आने वाले वर्षों में आरजेडी की स्थिति न सिर्फ बिहार विधानसभा में कमजोर होगी, बल्कि इसका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति, विशेषकर राज्यसभा में पार्टी की मौजूदगी पर गंभीर रूप से पड़ सकता है।
2030 तक राज्यसभा से गायब हो सकती है आरजेडी
सबसे बड़ा खतरा इस बात का है कि वर्ष 2030 तक राज्यसभा में आरजेडी का एक भी सांसद नहीं बचेगा। तीन दशकों में यह पहला मौका होगा जब देश के ऊपरी सदन में लालू प्रसाद यादव की पार्टी का प्रतिनिधित्व पूरी तरह समाप्त हो सकता है। इसका कारण है—बिहार विधानसभा में आरजेडी की घटती सीटें, और आने वाले वर्षों में राज्यसभा की रिक्त होने वाली सीटों पर एनडीए का लगभग एकतरफा कब्जा।
राज्यसभा चुनाव विधायक संख्या के आधार पर होते हैं। चूंकि बिहार में एनडीए के पास इस समय भारी बहुमत है और आरजेडी सिर्फ 25 सीटों के साथ कमजोर स्थिति में है, इसलिए अगले कुछ वर्षों में जब राज्यसभा की सीटें खाली होंगी, तब आरजेडी के लिए उनमें से एक भी सीट जीतना लगभग असंभव हो जाएगा।
AIMIM का समर्थन भी नहीं बना पाएगा गुंजाइश
चुनाव के दौरान आरजेडी और AIMIM अलग-अलग लड़ रहे थे। दोनों ने कई सीटों पर एक-दूसरे को नुकसान भी पहुंचाया। हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि भविष्य में अगर AIMIM आरजेडी के साथ आए भी, तब भी स्थिति में खास सुधार होने की संभावना कम है।
रिपोर्ट्स के अनुसार AIMIM को इस चुनाव में पाँच सीटें मिली हैं, लेकिन 2026 और 2028 के राज्यसभा चुनावों में AIMIM का समर्थन भी आरजेडी को कोई महत्वपूर्ण बढ़त नहीं दे सकता। इसका कारण यह है कि एनडीए का भारी बहुमत विपक्षी दलों के किसी भी संयोजन को राज्यसभा में सीट दिलाने से रोकने के लिए पर्याप्त है। राज्यसभा में अभी पांच आरजेडी सांसद, लेकिन…फिलहाल राष्ट्रीय जनता दल के पांच सांसद राज्यसभा में मौजूद हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनका कार्यकाल समाप्त होने वाला है।
प्रेमचंद गुप्ता और एडी सिंह — अप्रैल 2026 में रिटायर
फयाज अहमद — जुलाई 2028 में रिटायर
मनोज कुमार झा और संजय यादव — अप्रैल 2030 में कार्यकाल समाप्त
यदि 2030 तक आरजेडी किसी राज्य की विधानसभा में इतनी संख्या में विधायक नहीं जुटा पाती है कि कम से कम एक राज्यसभा सीट भी जीत सके, तो अप्रैल 2030 के बाद पार्टी का राज्यसभा में एक भी सदस्य नहीं रहेगा।
2026 और 2028 में सभी सीटें एनडीए के खाते में जाने के आसार
2026 में बिहार से पाँच राज्यसभा सीटें खाली होंगी। इनमें दो सीटें जेडीयू और एक राष्ट्रीय लोक मोर्चा के पास हैं—दोनों ही एनडीए की सहयोगी पार्टियाँ हैं। वर्तमान विधानसभा समीकरणों के आधार पर एनडीए को इन पाँचों सीटों पर जीत मिलने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
इसी प्रकार 2028 में फिर पाँच राज्यसभा सदस्य रिटायर होंगे। इनमें तीन बीजेपी, एक जेडीयू और एक आरजेडी के सांसद शामिल हैं। लेकिन विधानसभा में एनडीए का बहुमत देखते हुए, उस समय भी सभी पाँच सीटों का एनडीए के खाते में जाना तय माना जा रहा है।
2030 में भी बचना मुश्किल
कुछ राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर 2030 में AIMIM पूरी तरह समर्थन दे दे तो आरजेडी किसी तरह एक सीट बचा सकती है, लेकिन यह संभावना बेहद कमजोर है। कारण यह है कि राज्यसभा चुनाव के समय छोटी पार्टियां हमेशा राजनीतिक परिस्थितियों और अपने हितों के मुताबिक मतदान करती हैं, न कि भावनात्मक या गठबंधन की मजबूती के आधार पर।
इसके अलावा, यदि 2030 तक भी विधानसभा में आरजेडी की संख्या कम रहती है, तो उसकी गणितीय स्थिति इतनी कमजोर रहेगी कि किसी भी समीकरण से वह राज्यसभा की सीट नहीं निकाल पाएगी।
भविष्य की चुनौतियाँ और राजनीतिक प्रभाव
बिहार की राजनीति में आरजेडी लंबे समय से एक बड़ी ताकत रही है। लेकिन 2025 के चुनाव नतीजों ने पार्टी के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राज्यसभा से आरजेडी की संभावित अनुपस्थिति न केवल राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी की भूमिका को सीमित कर देगी, बल्कि केंद्र स्तर पर विपक्षी एकजुटता में भी सेंध लगा सकती है।
यह स्थिति आरजेडी नेतृत्व के सामने दोहरी चुनौती पेश करती है—पहली, बिहार में अपनी खोई राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करना, और दूसरी, संगठन में ऐसी रणनीति तैयार करना जिससे पार्टी राज्यसभा में अपनी उपस्थिति बरकरार रख सके।
फिलहाल के हालात बताते हैं कि आरजेडी के लिए आने वाला समय आसान नहीं है। उसे न सिर्फ नई रणनीति बल्कि नए नेतृत्व विकल्प भी तलाशने पड़ सकते हैं ताकि 2030 तक पार्टी खुद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बनाए रख सके।