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Success Story: पढ़ाई के लिए बेची जमीन, बिना कोचिंग ही 20 साल की उम्र में DSP बनीं बिहार की बेटी; जानिए सफलता की कहानी

Success Story: अगर आप परिस्थितियों से लड़ना जानते हैं, तो आपके रास्ते में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएँ, आप सफलता के शिखर तक पहुंच सकते हैं। बिहार की चित्रा कुमारी ने महज 20 साल की उम्र में यह साबित कर दिया।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 19 Nov 2025 11:29:34 AM IST

Success Story

सफलता की कहानी - फ़ोटो GOOGLE

Success Story: अगर आप परिस्थितियों से लड़ना जानते हैं, तो आपके रास्ते में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएँ, आप सफलता के शिखर तक पहुंच सकते हैं। बिहार की चित्रा कुमारी ने महज 20 साल की उम्र में यह साबित कर दिया। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने और अपने माता-पिता का सम्मान बढ़ाने के लिए चित्रा ने अपने सपनों की उड़ान भरी और डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP) बन गईं। उनकी सफलता कहानी उन तमाम गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार की बेटियों के लिए प्रेरणा है, जो कठिन परिस्थितियों में भी बड़े सपनों को सच करने की चाह रखती हैं।


बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) का कंबाइंड कॉम्पिटेटिव एग्जाम (CCE) देश की सबसे प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षाओं में से एक है। हर साल लगभग तीन लाख युवा इस परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन टफ प्रतियोगिता की वजह से बेहद कम ही सफल हो पाते हैं। उन चुनिंदा सफलताओं में से एक हैं बक्सर की चित्रा कुमारी, जिन्होंने अपने पहले प्रयास में ही DSP का पद हासिल कर लिया।


चित्रा का परिवार सामान्य मध्यमवर्गीय था। उनके पिता सुरेश प्रसाद मालाकार पहले बैंक में कार्यरत थे, लेकिन 2008 में उनकी नौकरी चली गई। इसके बाद परिवार पर आर्थिक संकट टूट पड़ा। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया, बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाना चुनौती बन गया। फिर भी उनके पिता ने हार नहीं मानी और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य पर भरोसा रखा।


नौकरी जाने के बाद सुरेश प्रसाद ने खेती-किसानी शुरू की। खेती से घर का खर्च तो चलता रहा, लेकिन आर्थिक तंगी बनी रही। उस समय चित्रा के तीन भाई-बहन थे और परिवार को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। पढ़ाई का खर्च मुश्किल से संभल रहा था। इस स्थिति से निपटने के लिए चित्रा के पिता ने सोहनीपट्टी में दो कट्ठा जमीन बेचकर बैंक में जमा कर दिए, जिससे मिलने वाले ब्याज से बच्चों की पढ़ाई में मदद होती रही।


महंगी कोचिंग की सुविधा न होने के बावजूद चित्रा ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने भाई-बहनों के साथ घर पर रहकर तैयारी करने का निर्णय लिया। दिन-रात कठिन मेहनत, सटीक योजना और आत्मविश्वास ने उन्हें सफलता की ओर अग्रसर किया। उन्होंने न केवल अपने माता-पिता का विश्वास जीता, बल्कि साबित कर दिया कि संकट में भी लगन और दृढ़ता से सपने पूरे किए जा सकते हैं।


चित्रा की सफलता सिर्फ व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि बिहार की बेटियों के लिए एक प्रेरणा भी है। उन्होंने यह दिखाया कि छोटी उम्र और सीमित संसाधनों के बावजूद अगर मेहनत और धैर्य हो, तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। उनके संघर्ष में परिवार की मजबूती, पिता की दूरदर्शिता और खुद चित्रा की लगन शामिल थी।


चित्रा अब न केवल DSP के रूप में उत्तरदायित्व निभा रही हैं, बल्कि कई युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन चुकी हैं। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि कठिन परिस्थिति और आर्थिक तंगी कभी भी सपनों को रोक नहीं सकती। उनके संघर्ष और सफलता ने यह सिद्ध किया कि मेहनत, आत्मविश्वास और लगन से कोई भी युवा बड़े मुकाम तक पहुँच सकता है।


चित्रा की कहानी यह भी बताती है कि बिना संसाधनों के भी योजना, धैर्य और परिवार के सहयोग से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की जा सकती हैं। उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि जो लोग कठिनाइयों के बावजूद अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहते हैं, वे किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।