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07-Feb-2025 08:25 AM
बिहार सरकार ने राज्य में सरकारी जमीनों के स्वामित्व और अभिलेखों को बेहतर बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने लाखों एकड़ सरकारी जमीन के सत्यापन और खाता/खेसरा को लॉक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसका उद्देश्य राज्य में सरकारी जमीन से जुड़े विवादों को खत्म करना और उसे सुरक्षित रखना है।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) दीपक कुमार सिंह ने बताया कि बिहार में सरकारी जमीन का आखिरी सर्वेक्षण करीब 70 साल पहले हुआ था। उन्होंने कहा, "सत्यापन के बाद पता चलेगा कि सरकार के पास वास्तव में कितनी जमीन बची है और उसका सही तरीके से इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है।"
दीर्घकालीन योजनाओं के लिए सरकारी जमीनों की सटीकता बेहद जरूरी है, क्योंकि घनी आबादी वाले बिहार में जमीन की कमी निवेश और विकास के लिए बड़ी चुनौती रही है। इस प्रक्रिया से भूमिहीनों के बीच जमीन का वितरण करने और आधारभूत संरचना परियोजनाओं के लिए उपयोगी सरकारी जमीन उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
दीपक कुमार सिंह ने कहा कि सरकारी परियोजनाओं में इस्तेमाल होने वाली जमीन का म्यूटेशन भी नहीं हुआ होगा। इस समस्या के समाधान के लिए सभी जिलाधिकारियों को सरकारी जमीन को भू-माफियाओं से बचाने के लिए सभी अभिलेखों को डिजिटल रूप में रखने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा, सत्यापन के दौरान यदि अतिक्रमण या अवैध कब्जा पाया जाता है तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सरकारी जमीन की पहचान से न केवल राज्य में पारदर्शिता आएगी बल्कि उद्योग और आधारभूत संरचना परियोजनाओं के लिए भी यह उपयोगी साबित होगी। संदिग्ध सरकारी जमीनों के पंजीकरण को लेकर कुछ महीने पहले उठे सवालों पर एसीएस ने कहा कि यह प्रक्रिया केवल उन्हीं जमीनों पर लागू की जा रही है जो पिछले सर्वेक्षण में सरकारी थीं। जिला स्तर पर समिति आपत्तियों की जांच कर रही है और निर्धारित प्रक्रिया के तहत वास्तविक दावों का निपटारा किया जाएगा।
बिहार सरकार ने भूमि सर्वेक्षण की समय सीमा एक साल बढ़ाकर जुलाई 2026 कर दी है। इसका उद्देश्य यह है कि भूमि मालिक अपने अभिलेखों और दस्तावेजों को दुरुस्त कर सकें। सरकारी जमीनों के सत्यापन और डिजिटलीकरण से बिहार सरकार को नई परियोजनाओं और निवेशकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही भूमिहीनों के बीच भूमि वितरण के लिए भी नए रास्ते खुलेंगे।