1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 28 Oct 2025 07:15:36 AM IST
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लोक आस्था का महापर्व छठ आज सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि पर देश-दुनिया में लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र नदियों, तालाबों और जलाशयों में खड़े होकर भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की। इस अवसर पर श्रद्धा और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। व्रतियों ने अर्घ्य अर्पित कर सूर्यदेव से परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की रक्षा और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगा। इसके बाद व्रतियों ने पारण कर 36 घंटे के निर्जला उपवास का समापन किया।
चार दिनों तक चलता है लोक आस्था का पर्व
छठ महापर्व की शुरुआत इस वर्ष मंगलवार को ‘नहाय-खाय’ के साथ हुई थी। इस दिन व्रतियों ने नदियों और तालाबों में स्नान कर घरों में पवित्र वातावरण में अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी बनाकर भगवान सूर्य को भोग लगाया। इस भोजन को प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर व्रत की शुरुआत की गई। इसके बाद बुधवार को ‘खरना’ का आयोजन हुआ, जिसमें व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर, रोटी और केला का प्रसाद तैयार करती हैं। खरना के बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया पहला अर्घ्य
सोमवार की शाम छठ व्रतियों ने अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान सूर्यदेव और छठी मैया से परिवार की मंगलकामना की। इस दौरान घाटों पर भव्य दृश्य देखने को मिला। महिलाएं सिर पर डाला लिए सूप में फल, नारियल, पान-सुपारी, गन्ना, दीपक और ठेकुआ लेकर सूर्यदेव को अर्घ्य देती रहीं। घाटों पर लोक गीतों और पारंपरिक छठ गीतों की गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
छठ पर्व का समापन मंगलवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हुआ। व्रतियों ने जल में खड़े होकर “ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते, अनुकंपय माम् भक्तया गृहाणाघ्र्यम् दिवाकर” मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य अर्पित किया। मान्यता है कि उगते सूर्य को अर्घ्य देने से व्रती को सुख-समृद्धि, संतान सुख और पारिवारिक कल्याण का वरदान मिलता है। अर्घ्य के बाद व्रतियों ने घाट पर प्रसाद वितरण कर व्रत का पारण किया।
छठ महापर्व में पवित्रता, संयम और श्रद्धा का विशेष महत्व है। इस दौरान व्रती महिलाएं घर और शरीर की शुद्धता पर विशेष ध्यान देती हैं। मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद पकाना, पीतल या कांसे के बर्तनों का प्रयोग और किसी भी तरह की अपवित्रता से दूर रहना इस पर्व की विशेषता है। व्रतियों ने अपने घरों और घाटों को सजाकर पूजा का आयोजन किया।
पौराणिक मान्यता है कि छठ पर्व का संबंध भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी मैया से है। माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत त्रेतायुग में भगवान राम और माता सीता द्वारा अयोध्या लौटने के बाद की गई थी। कहा जाता है कि सूर्योपासना से शरीर में ऊर्जा, मानसिक शांति और पारिवारिक समृद्धि मिलती है। छठ पूजा को पर्यावरण संरक्षण से भी जोड़ा गया है, क्योंकि इसमें सूर्य, जल, वायु और मिट्टी जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा की जाती है।
पटना, वाराणसी, दरभंगा, रांची, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता सहित देश के कई शहरों में घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। वहीं विदेशों में भी भारतीय समुदाय ने पूरे उत्साह के साथ इस पर्व को मनाया। अमेरिका, ब्रिटेन, नेपाल, मॉरीशस, यूएई और सिंगापुर में भी श्रद्धालुओं ने पारंपरिक विधि-विधान से सूर्यदेव को अर्घ्य दिया।
छठ सिर्फ धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिकता का प्रतीक भी है। इस दौरान समाज के सभी वर्गों के लोग मिलकर घाटों की सफाई, सजावट और सुरक्षा की व्यवस्था करते हैं। प्रशासन की ओर से घाटों पर सुरक्षा बलों की तैनाती, स्वास्थ्य केंद्र और रोशनी की व्यवस्था की गई थी।
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व लोक आस्था, श्रद्धा और पर्यावरण संरक्षण का अनुपम उदाहरण है। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ व्रतियों ने न सिर्फ अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना की, बल्कि समाज में सकारात्मकता, शुद्धता और एकता का संदेश भी दिया।