Bihar Zila Parishad : जिला परिषदों की जमीन से होगी बंपर कमाई, लीज नीति 2024 लागू; सरकार ने तैयार किया ख़ास प्लान

बिहार की जिला परिषदें अब योजनाओं तक सीमित नहीं रहीं। 39 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन के बेहतर उपयोग से वे आर्थिक रूप से मजबूत बनने की तैयारी में हैं। नई लीज नीति से खाली जमीन बनेगी कमाई का जरिया।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 22 Dec 2025 08:09:48 AM IST

Bihar Zila Parishad : जिला परिषदों की जमीन से होगी बंपर कमाई, लीज नीति 2024 लागू; सरकार ने तैयार किया ख़ास प्लान

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Bihar Zila Parishad : बिहार की जिला परिषदें अब तक मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को ज़मीन पर उतारने वाली एजेंसियों के रूप में जानी जाती रही हैं, लेकिन अब उनकी भूमिका में बड़ा बदलाव होता दिख रहा है। राज्य की जिला परिषदें अपनी विशाल भू-संपदा के बेहतर उपयोग के ज़रिये आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार की जिला परिषदों के पास कुल 39,354 हेक्टेयर से अधिक भूमि है, जो उन्हें त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में सबसे बड़ा भू-स्वामी बनाती है।


सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस कुल जमीन में से 8,582 हेक्टेयर से अधिक भूमि अब भी खाली पड़ी है। यह वही जमीन है, जो यदि सही नीति और पारदर्शी व्यवस्था के तहत उपयोग में लाई जाए, तो जिला परिषदों की आय का स्थायी और मजबूत स्रोत बन सकती है। परिषदों की सड़कें, खंता, आहर-पईन, पुल-पुलिया, बांध, डाकबंगला और निरीक्षण भवन जैसी अचल संपत्तियां इसी भू-संपदा पर विकसित की गई हैं। यानी यह जमीन पहले से ही परिषदों के विकास ढांचे की रीढ़ है।


आंकड़ों पर नजर डालें तो परिषदों की 14,253.95 हेक्टेयर भूमि पर सड़कें बनी हुई हैं। वहीं 702.95 हेक्टेयर जमीन पर डाकबंगला या निरीक्षण भवन स्थित हैं। इसके अलावा 15,815.02 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आहर, पईन और बांध जैसी सिंचाई संरचनाएं मौजूद हैं। इसके बावजूद हजारों हेक्टेयर जमीन ऐसी है, जिसका न तो व्यावसायिक उपयोग हो रहा है और न ही विकास कार्यों में इसका कोई ठोस इस्तेमाल किया जा रहा है।


फिर भी जिला परिषदों की यह जमीन पहले से ही आय का माध्यम बन रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिहार की जिला परिषदों ने अपनी संपत्तियों के माध्यम से 55 करोड़ 39 लाख रुपये से अधिक का राजस्व अर्जित किया। यह आंकड़ा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यदि भूमि का प्रबंधन और अधिक योजनाबद्ध ढंग से किया जाए, तो परिषदों की आर्थिक तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है।


इसी संभावना को देखते हुए पंचायती राज विभाग ने एक अहम कदम उठाया है। खाली पड़ी जमीन को आय का साधन बनाने के लिए बिहार जिला परिषद भू-संपदा लीज नीति 2024 तैयार की गई है। इस नीति का उद्देश्य परिषदों की बहुमूल्य जमीन को लीज पर देने की प्रक्रिया को पारदर्शी और नियमबद्ध बनाना है। पंचायती राज मंत्री दीपक प्रकाश के अनुसार, अब जमीन की लीज से जुड़ी व्यवस्था में स्पष्ट नियम होंगे, ताकि किसी तरह की अनियमितता या विवाद की गुंजाइश न रहे।


मंत्री का कहना है कि सरकार चाहती है कि जिला परिषदें केवल केंद्र और राज्य वित्त आयोग से मिलने वाले अनुदानों पर निर्भर न रहें। स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग से वे अपनी आय स्वयं बढ़ाएं और विकास कार्यों में अधिक स्वतंत्रता के साथ निर्णय ले सकें। नई लीज नीति के लागू होने से खाली जमीनों का उपयोग बाजार, गोदाम, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, पार्किंग, कोल्ड स्टोरेज या अन्य विकास परियोजनाओं के लिए किया जा सकेगा।


जिलावार आंकड़े इस पूरी तस्वीर को और रोचक बना देते हैं। जमीन की मात्रा के लिहाज से सारण जिला परिषद राज्य में सबसे आगे है। इसके पास सबसे अधिक भू-संपदा दर्ज है। वहीं दूसरी ओर जहानाबाद जिला परिषद अपनी सीमित जमीन के बावजूद उससे सबसे अधिक आय अर्जित कर रही है। यह अंतर साफ तौर पर दिखाता है कि केवल जमीन का होना ही काफी नहीं है, बल्कि उसका सही और प्रभावी प्रबंधन कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।


कानून के तहत जिला परिषदों के जिम्मे कृषि, सिंचाई, जल संसाधन, बागवानी, ग्रामीण विद्युतीकरण, पशुपालन, मत्स्यपालन, लघु उद्योग, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण हाट-बाजारों का प्रबंधन जैसे अहम दायित्व हैं। इन सभी क्षेत्रों में प्रभावी काम के लिए मजबूत वित्तीय आधार होना अनिवार्य है। पंचायती राज मंत्री ने स्पष्ट किया कि नई लीज नीति से परिषदों की खाली जमीनें कमाई का जरिया बनेंगी, जिससे वे अपने दायित्वों को और बेहतर ढंग से निभा सकेंगी।


कुल मिलाकर, बिहार की जिला परिषदें अब योजनाओं के क्रियान्वयन तक सीमित न रहकर अपनी संपत्तियों के दम पर आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रही हैं। यदि नई नीति का सही तरीके से क्रियान्वयन होता है, तो आने वाले वर्षों में जिला परिषदें न केवल आर्थिक रूप से मजबूत होंगी, बल्कि ग्रामीण विकास को भी नई गति मिल सकेगी।