Bihar land dispute : बिहार में जमीन न्याय ठप! 15 साल में भी नहीं भरे DCLR के 101 पद, लाखों भूमि मामले अधर में

बिहार में जमीन से जुड़े मामलों का निपटारा ठप पड़ा है। 15 साल बाद भी DCLR के 101 पद खाली हैं, जिससे म्यूटेशन, विवाद और अतिक्रमण जैसे लाखों मामले लंबित हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 24 Dec 2025 08:25:40 AM IST

Bihar land dispute : बिहार में जमीन न्याय ठप! 15 साल में भी नहीं भरे DCLR के 101 पद, लाखों भूमि मामले अधर में

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Bihar land dispute : बिहार में जमीन से जुड़े मामलों का अंबार लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन इनके निपटारे की रफ्तार वर्षों से थमी हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण भूमि सुधार उप समाहर्ता (DCLR) जैसे महत्वपूर्ण पदों का खाली रहना है। हैरानी की बात यह है कि बिहार राजस्व सेवा के लिए नियम बने हुए करीब 15 साल हो चुके हैं, लेकिन 101 स्वीकृत DCLR पदों में से एक पर भी अब तक राजस्व सेवा के अफसरों की नियमित पोस्टिंग नहीं हो पाई है।


इसका सीधा असर म्यूटेशन (नामांतरण), परिमार्जन, अतिक्रमण हटाने, भूमि विवाद और अपीलों की सुनवाई पर पड़ रहा है। जमीन से जुड़े ये मामले आम लोगों के जीवन और आजीविका से सीधे जुड़े हैं, लेकिन सिस्टम की सुस्ती के कारण वर्षों तक लटके रहते हैं।


2010 में बनी थी स्पष्ट योजना

राज्य सरकार ने वर्ष 2010 में स्पष्ट उद्देश्य के साथ बिहार राजस्व सेवा (BRS) का गठन किया था। इसके तहत बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के माध्यम से राजस्व अधिकारी (RO) की नियुक्ति की गई। योजना यह थी कि यही अधिकारी अनुभव के आधार पर आगे चलकर अंचल अधिकारी (CO), भूमि सुधार उप समाहर्ता (DCLR), अपर जिला भूमि अर्जन पदाधिकारी (ADLAO) और जिला भूमि अर्जन पदाधिकारी (DLAO) जैसे पदों पर कार्य करेंगे।


लेकिन 15 साल बाद भी यह व्यवस्था कागजों से बाहर नहीं आ सकी। DCLR जैसे अहम पदों पर आज भी बिहार प्रशासनिक सेवा (BAS) के अधिकारी तैनात हैं, जिन पर कानून-व्यवस्था, चुनाव, आपदा प्रबंधन और अन्य प्रशासनिक जिम्मेदारियों का भारी बोझ रहता है। नतीजा यह कि जमीन संबंधी मामलों की सुनवाई प्राथमिकता में पीछे चली जाती है।


हाईकोर्ट का सख्त रुख

इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए पटना हाईकोर्ट ने जून 2025 में राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया था कि DCLR पदों से प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को हटाया जाए और इन पदों पर राजस्व सेवा के अधिकारियों की पोस्टिंग की जाए। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा था कि आखिर 15 साल बाद भी राजस्व सेवा अधिकारियों को उनकी निर्धारित भूमिका क्यों नहीं दी जा रही है।


सरकार की ओर से संतोषजनक जवाब न मिलने पर इस मामले में अवमानना याचिका दायर की गई। आज इसी अवमानना याचिका पर फिर से सुनवाई होनी है, जिस पर पूरे प्रशासनिक और राजस्व तंत्र की नजरें टिकी हुई हैं।


आंकड़े बता रहे हैं हालात

सरकारी आंकड़ों के अनुसार DCLR कोर्ट में म्यूटेशन से जुड़ी अपीलों का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा लंबित पड़ा है। वहीं, बिहार भूमि विवाद समाधान अधिनियम (BLDR) के तहत दर्ज करीब 30 प्रतिशत मामले अब तक निपट नहीं पाए हैं। इसके अलावा परिमार्जन, भूमि अभिलेखों के डिजिटाइजेशन, सरकारी भूमि की पहचान और अतिक्रमण से जुड़े मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।


विशेषज्ञों का मानना है कि इन मामलों के लिए राजस्व कानूनों और भूमि नियमों की गहरी समझ जरूरी होती है। जब विशेषज्ञ अफसरों की जगह ऐसे अधिकारी तैनात होते हैं, जिनकी प्राथमिक जिम्मेदारियां कुछ और होती हैं, तो स्वाभाविक रूप से मामलों का निपटारा धीमा हो जाता है।


आम लोगों पर सीधा असर

जमीन विवादों की देरी का सबसे ज्यादा असर आम नागरिकों पर पड़ता है। नामांतरण नहीं होने से लोग बैंक लोन नहीं ले पाते, सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता और विवाद बढ़ते-बढ़ते कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाते हैं। कई मामलों में तो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक केस चलता रहता है।


निर्णायक मोड़ पर भूमि सुधार

बिहार की भूमि व्यवस्था सुधार की कोशिशें अब एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही हैं। हाईकोर्ट के सख्त निर्देश, आज होने वाली सुनवाई और सरकार द्वारा प्रस्तावित संवाद कार्यक्रम को जमीन विवादों के समाधान की दिशा में अहम माना जा रहा है। यदि समय रहते DCLR पदों पर राजस्व सेवा के प्रशिक्षित और विशेषज्ञ अधिकारियों की पोस्टिंग होती है, तो लंबे समय से अटके लाखों मामलों को नई गति मिल सकती है।


अब देखना यह है कि सरकार हाईकोर्ट के निर्देशों को कितनी गंभीरता से लागू करती है। अगर सरकारी मशीनरी सक्रिय हुई और सिस्टम को मूल योजना के अनुसार चलाया गया, तो बिहार में जमीन से जुड़े विवादों के समाधान की तस्वीर आने वाले समय में बदल सकती है।