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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 16 Feb 2025 08:18:23 AM IST
Sterilization - फ़ोटो Sterilization
बिहार में बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए सरकार लगातार परिवार नियोजन पर जोर दे रही है, लेकिन जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है. राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों में पूरे साल में सिर्फ एक पुरुष नसबंदी ऑपरेशन हुआ है, वह भी पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में. बाकी 12 मेडिकल कॉलेजों में एक भी नसबंदी नहीं हुई. स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा रिपोर्ट के बाद इस चौंकाने वाली सच्चाई ने विभाग में हड़कंप मचा दिया है.
मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज में दिसंबर 2024 तक एक भी नसबंदी ऑपरेशन नहीं हुआ. अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. सतीश कुमार सिंह ने बताया कि पुरुषों में नसबंदी को लेकर जागरूकता की भारी कमी है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत सभी सरकारी अस्पतालों में महिला नसबंदी और पुरुष नसबंदी अनिवार्य है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पुरुष नसबंदी का लक्ष्य कभी पूरा नहीं हो पाता.
स्वास्थ्य विभाग हर साल परिवार नियोजन पखवाड़ा का आयोजन करता है, जिसमें नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन भी दिया जाता है. इसके बावजूद बिहार में पुरुष नसबंदी लगभग ठप हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार परिवार नियोजन चौपाल लगाकर लोगों को जागरूक करने के निर्देश दिए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर नहीं दिखा।
परिवार नियोजन की दुर्दशा यहीं खत्म नहीं होती। पुरुष नसबंदी नहीं करने के साथ ही बिहार के मेडिकल कॉलेजों ने 85 फीसदी गर्भवती महिलाओं को नसबंदी की राशि भी नहीं दी। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के मेडिकल कॉलेजों पर 1.73 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है। श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज को 2024 में 46.10 लाख रुपये आवंटित किए गए, लेकिन अब तक सिर्फ 28 हजार रुपये का भुगतान किया गया है। पटना एम्स और मधेपुरा मेडिकल कॉलेज को मिली राशि में से एक भी रुपये का भुगतान नहीं किया गया है।
पुरुष नसबंदी की तरह महिलाओं को भी परिवार नियोजन का लाभ नहीं मिल रहा है। बिहार के 13 मेडिकल कॉलेजों में दिसंबर 2024 तक सिर्फ 2187 महिलाओं को कॉपरटी (पीपीआईयूसीडी) दी गई। मधेपुरा, बिहटा और पटना एम्स में एक भी महिला को कॉपरटी नहीं दी गई। श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज में सिर्फ 8 महिलाओं को यह सुविधा मिली।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों को परिवार नियोजन कार्यक्रम को और प्रभावी बनाने के निर्देश जारी किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि सिर्फ 42% आशा कार्यकर्ता ही इस अभियान में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रही हैं।