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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 01 Nov 2025 08:04:42 AM IST
बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE
Bihar News: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 6 और 11 नवंबर को मतदान होना है। जैसे-जैसे तारीख नजदीक आ रही है, राजनीतिक दलों ने प्रचार अभियान तेज कर दिया है, लेकिन दूसरी ओर मतदान प्रतिशत को लेकर चिंता भी बढ़ती जा रही है। इस बार ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि बिहार में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिल सकती है। कारण है राज्य से बड़े पैमाने पर मजदूरों और कामगारों का पलायन। पटना, गया, दरभंगा, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और सिवान जैसे जिलों से हजारों की संख्या में लोग दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, सूरत, पंजाब और मध्य प्रदेश की ओर लौट रहे हैं। रेलगाड़ियों में ठसाठस भीड़ और लंबी वेटिंग लिस्ट इस बात का सबूत हैं कि चुनावी समय में भी लोग रोजी-रोटी की तलाश में घर छोड़ने को मजबूर हैं।
जानकारी के मुताबिक, आगामी 15 नवंबर तक बिहार से बाहर जाने वाली ट्रेनों में भारी भीड़ बनी हुई है। दानापुर मंडल से रोजाना 100 से अधिक ट्रेनें देश के विभिन्न हिस्सों में जा रही हैं। संपूर्ण क्रांति, श्रमजीवी, मगध, पाटलिपुत्र एक्सप्रेस, पंजाब मेल और राजेंद्र नगर एलटीटी जैसी ट्रेनों में जनरल क्लास की ऑक्यूपेंसी 100 प्रतिशत से ऊपर है। कई ट्रेनों में यह आंकड़ा 150 प्रतिशत तक पहुंच गया है। छठ पर्व के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में प्रवासियों का लौटना यह दर्शाता है कि रोजगार की मजबूरी अब भी बिहार की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
बिहार में यह स्थिति नई नहीं है। पलायन राज्य की सामाजिक-आर्थिक हकीकत बन चुका है। जनरल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार से करीब 55 प्रतिशत लोग रोजगार के लिए, 3 प्रतिशत व्यापार के लिए और 3 प्रतिशत शिक्षा के लिए बाहर जाते हैं। पंजाब की ओर जाने वाले बिहारियों की संख्या 6.19 प्रतिशत है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक राज्य में पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं सृजित होंगे, तब तक यह पलायन और इसके कारण घटता मतदान प्रतिशत जारी रहेगा।
जब प्रवासी मजदूरों से बात की गई, तो उनकी बातें इस सच्चाई को और स्पष्ट करती हैं। मजदूरों का कहना है कि, अगर अपने गांव में काम मिलता, तो हम लोग घर-परिवार छोड़कर पंजाब क्यों जाते? वोट देना जरूरी है, लेकिन पेट पालना उससे भी ज्यादा जरूरी है। वहीं अन्य लोगों का कहना है कि छठ पूजा में आए 15 दिन हो गया है अगर चुनाव के लिए रुकते है तो हमारा पगार कट जाएगा जिससे दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए वोट से अधिक जरुरी हमारे जिने के लिए कमाना जरुरी है। एक मजदूर ने कहा कि वोट देने के लिए रुक भी जाए तो क्या वोट के बाद तो ये सरकार फिर सो जाएगी। भले ही जनता किसी भी हाल में रहे। वहीं, कुछ मजदूरों ने कहा कि हमारा मतदान 11 नवंबर को है, लेकिन काम की मजबूरी से पहले ही लौटना पड़ रहा है।
चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है। बिहार में हर चुनाव के दौरान प्रवासी मजदूरों की अनुपस्थिति मतदान प्रतिशत को प्रभावित करती रही है। यदि यही रुझान जारी रहा, तो इस बार भी कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदान कम होने की संभावना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्य सरकार को आने वाले समय में रोजगार आधारित मतदान नीति पर विचार करना चाहिए, जिससे लोगों को अपने घर में ही काम मिले और वे लोकतंत्र के इस महापर्व में शामिल हो सकें।