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Jitiya vrat 2025: जितिया व्रत में दही-चूड़ा खाने की परंपरा के पीछे क्या है रहस्य? जानिए...पूरी कहानी

Jitiya vrat 2025: जितिया व्रत में अर्धरात्रि को दही-चूड़ा खाने की परंपरा क्यों है? जानिए इसके पीछे का धार्मिक, स्वास्थ्य और मौसम से जुड़ा रहस्य। व्रती महिलाओं के लिए यह भोजन क्यों होता है खास, जानिए विस्तार से।

Jitiya vrat 2025

13-Sep-2025 01:55 PM

By First Bihar

Jitiya vrat 2025: आज शनिवार यानी 13 सितंबर से शुरू हुए नहाय-खाय के साथ जितिया व्रत का शुभारंभ हो चुका है। 14 सितंबर को महिलाएं निर्जला व्रत रखकर इस पावन पर्व को मनाएंगी। जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, में महिलाएं जीमूतवाहन और चील सियारिन की पूजा करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख की कामना करना होता है। यह व्रत महाभारत काल से प्रचलित है और इसे खास तौर पर उन महिलाओं द्वारा किया जाता है जिनके संतान की लंबी उम्र और सुरक्षा की आकांक्षा होती है।


इस व्रत की शुरुआत 'नहाय-खाय' से होती है, और इसी दिन की अर्धरात्रि को व्रती महिलाएं दही-चूड़ा का सेवन करती हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि इसके पीछे स्वास्थ्य विज्ञान और मौसम से जुड़ी ठोस व्यावहारिकताएं भी हैं।


दही और चूड़ा का मेल शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। दही में जलांश की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है और आंतरिक रूप से हाइड्रेट रखता है। चूड़ा (पोहा या फलेटेड राइस) में कार्बोहाइड्रेट की भरपूर मात्रा होती है, जो लंबे समय तक ऊर्जा देता है। इस संयोजन को रात में खाने से अगले दिन व्रती महिलाओं को निर्जला उपवास करने की शक्ति मिलती है। यह पाचन में हल्का होता है और लंबे समय तक भूख और प्यास को नियंत्रित रखता है।


जितिया व्रत मुख्यतः भाद्रपद या आश्विन माह में आता है, जो कि मानसून के बाद का समय होता है और इस दौरान धान की कटाई शुरू होती है। ऐसे समय में चावल और चूड़ा जैसे खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध होते हैं। दही भी इसी मौसम में घरों में आसानी से जमाया जा सकता है। इसलिए, जितिया में दही-चूड़ा खाना सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मौसमी व्यंजन के रूप में व्यावहारिक निर्णय भी है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध, पचने में आसान और ऊर्जा से भरपूर आहार है।


जितिया व्रत का विशेष महत्व उन महिलाओं के लिए भी है जिनके संतान गर्भ में या जन्म के बाद छोटी उम्र में ही दिवंगत हो जाती है। मान्यता है कि इस व्रत से न केवल निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि दिवंगत बच्चों की आत्मा को भी शांति मिलती है। इस व्रत का पारण 15 सितंबर को किया जाएगा, जो सुबह 6:10 बजे से 8:32 बजे के बीच का शुभ मुहूर्त है।


जितिया व्रत के दौरान महिलाएं कठिन निर्जला उपवास करती हैं, यानी इस दौरान वे पानी तक नहीं पीतीं। व्रत तीन दिन चलता है और तीसरे दिन इसका पारण किया जाता है। पारण के दिन महिलाएं सबसे पहले सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं और फिर पारंपरिक भोज ग्रहण करती हैं जिसमें झींगा मछली, मडुआ रोटी, रागी की रोटी, तोरई की सब्जी, चावल और नोनी का साग शामिल होता है। साथ ही, पारण के दिन बच्चों को पहनाई जाने वाली करधनी भी चढ़ाई जाती है, जिसे पहनाकर व्रत पूरा माना जाता है।


जितिया व्रत का पालन करते समय व्रत पूर्ण होने के बाद जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ध्यान रहे कि पारण के समय ताजा और साफ-सुथरा भोजन ही ग्रहण करें, क्योंकि बासी या अधपका खाना व्रत को निष्फल कर सकता है। इसके अलावा, व्रत के नियमों का कड़ाई से पालन करना आवश्यक है ताकि देवी-देवताओं की कृपा बनी रहे और इच्छित फल प्राप्त हो।


इस वर्ष जितिया व्रत पर धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, जहां व्रत की महत्ता और पारंपरिक रीति-रिवाजों को युवाओं तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा। साथ ही, स्थानीय मंदिरों में विशेष पूजा और सत्संग का आयोजन किया जाएगा, जिसमें पूरे समुदाय की भागीदारी देखने को मिलेगी।