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01-May-2025 03:27 PM
By First Bihar
Caste census india: केंद्र सरकार ने हाल ही में देश में जाति जनगणना कराने का ऐलान किया, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि जो कांग्रेस जब सत्ता में थी तब इस मुद्दे पर उदासीन रही, वह अब इतनी जोरदार तरीके से क्यों सामने आ रही है? वहीं, बीजेपी, जो पहले इस पर टालमटोल करती दिखती थी, अब सहमति क्यों दिखा रही है? इस घोषणा के बाद बीजेपी और कांग्रेस के बीच श्रेय की जंग तेज हो गई है।
क्यों जागी कांग्रेस की रुचि, जो पहले इसकी अनदेखी करती थी?
कांग्रेस ने हाल के वर्षों में जाति जनगणना को अपने प्रमुख एजेंडे में शामिल किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के उदय के बाद सत्ता से दूर कांग्रेस के पास मजबूत मुद्दों की कमी थी। अब राहुल गांधी इस मुद्दे को अपने लिए वोट बैंक मजबूत करने का हथियार बना रहे हैं, क्योंकि बीजेपी के पास धर्म और संस्कृति जैसे ताकतवर मुद्दे हैं|
राहुल गांधी ने 2024 और 2025 में कई मंचों पर इसकी वकालत की। फरवरी 2025 में पटना में उन्होंने कहा, "जाति जनगणना से दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों की सही स्थिति सामने आएगी। देश की शक्ति संरचना में इन वर्गों की हिस्सेदारी न के बराबर है।" कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तत्काल जनगणना की मांग की थी । 2024 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में कांग्रेस ने वादा किया था कि वह देशव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस ओबीसी और वंचित वर्गों के वोट हासिल करने के लिए यह रणनीति अपना रही है, खासकर तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में, जहां उसने हाल ही में जाति जनगणना पूरी की है।
बीजेपी का रुख, पहले समर्थन, फिर हिचकिचाहट, अब सहमति क्यों?
बीजेपी का रुख समय के साथ बदलता रहा है। 2010-11 में विपक्ष में रहते हुए उसने इस मांग का समर्थन किया था। तत्कालीन नेता सुषमा स्वराज ने लोकसभा में पार्टी की एकजुटता जाहिर की थी, और ओबीसी नेताओं जैसे गोपीनाथ मुंडे और हुकुमदेव नारायण यादव ने इसे आगे बढ़ाया। उस समय बीजेपी ने कांग्रेस पर जनगणना रोकने का आरोप लगाया था।
ऐसा माना जाता है कि लेकिन 2014 में सत्ता में आने के बाद बीजेपी का रुख पलटा। 2018 में राजनाथ सिंह ने 2021 की जनगणना में ओबीसी आंकड़े शामिल करने की बात कही, मगर कोविड-19 के कारण जनगणना टल गई। बाद में सरकार ने स्पष्ट किया कि केवल एससी और एसटी के आंकड़े ही लिए जाएंगे। 2021 में नित्यानंद राय ने संसद में यही नीति दोहराई। नवंबर 2023 में अमित शाह ने कहा कि बीजेपी ने कभी इसका विरोध नहीं किया, लेकिन फैसला सोच-समझकर लिया जाएगा। विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी पर हिंदी पट्टी में ओबीसी वोटरों को साधने का दबाव है, जहां समाजवादी पार्टी, आरजेडी और जेडीयू इस मुद्दे को समय समय पर उठाते रहे हैं,ताकि वोट बैंक को और मजबूत किया जा सके|
जाति जनगणना का इतिहास: 1931 से अब तक का इतिहास
बता दे कि भारत में आखिरी पूर्ण जाति जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी, जिसमें 4,147 जातियों की गिनती हुई और ओबीसी आबादी 52% थी। 1941 में आंकड़े जुटाए गए, लेकिन वे कभी प्रकाशित नहीं हुए। 1951 के बाद केवल एससी और एसटी के आंकड़े एकत्र किए गए। 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) हुई, लेकिन त्रुटियों के कारण इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। इस तरह, 1931 के बाद कोई विश्वसनीय जाति डेटा उपलब्ध नहीं है।
वहीँ 2010 में यूपीए सरकार के समय एसपी, आरजेडी और जेडीयू ने दबाव बनाया था लिहाजा प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का समूह बना, जिसने सितंबर 2010 में जनगणना का फैसला लिया। मगर 2011 के SECC सर्वे में खामियां रही, और आंकड़े अंतिम रूप नहीं ले सका।
राज्यों में जाति जनगणना की स्थिति
बिहार में इंडिया गठबंधन, तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस सरकारों ने जाति जनगणना पूरी की है।वहीँ बिहार में तेजस्वी यादव ने इसकी क्रेडिट लेते हुए NDA की सरकार पर हमला बोला है | जबकि जदयू ने इसका स्वागत किया है| आपको बता दे कि राहुल गांधी ने फरवरी 2025 में दावा किया कि तेलंगाना की 90% आबादी दलित, आदिवासी, ओबीसी या अल्पसंख्यक है। इसपर बीजेपी के कुछ नेता इसे "हिंदू समाज को बांटने की साजिश" कहते हैं। 9 अक्टूबर 2024 को नरेंद्र मोदी ने कहा, "कांग्रेस हिंदुओं को लड़ाना चाहती है।" 15 अप्रैल 2025 को कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बी.वाई. विजेंद्र ने भी ऐसा ही बयान दिया था । बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि वह पिछड़े वर्गों के खिलाफ रही और राजीव गांधी ने ओबीसी कोटा का विरोध किया।वहीँ कांग्रेस का दावा है कि उसने दबाव बनाकर सरकार को मजबूर किया।