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08-Feb-2024 07:29 AM
By First Bihar
PATNA : आपने यह लाइन जरूर सुनी होगी की 'वह साल दूसरा था, यह साल दूसरा है'। अब बिल्कुल इसी अंदाज में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। पिछले साल तक एक दूसरे पर जमकर तीखा प्रहार करते थे. लेकिन, इस साल शुरुआत में ही सब कुछ बदल गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले साल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे प्रबल विरोधी बनकर उभरे थे। अब साल बदलने के साथ-साथ से नीतीश कुमार का इंडिया गठबंधन से मोह भंग होने लगा। 28 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पुराने गठबंधन में वापसी कर लेते हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात और हाथों में ब्लू ट्यूलिप का वह गुलदस्ता दोनों के समीकरण को साफ कर रहा है। ब्लू ट्यूलिप शांति और आंतरिक शांति का प्रतीक माना जाता है। ये तब दिया जाता है जब सामने वाले के लिए शांति और सुखदायक शुभकामना व्यक्त की जाती है। ऐसे में दोनों राजनेताओं की तस्वीर इन्हीं बातों की प्रतीक है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा बिहार एनडीए की सारी तस्वीर साफ कर देगी।
दरअसल, बिहार में जो एक बार फिर से गठबंधन बनी है, इसकी रूपरेखा नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार ने मिलकर बनाया है। लोकसभा में सीटों का बंटवारा और बिहार में फ्लोर टेस्ट जैसे मसले को दोनों नेता मिलकर तय कर लेंगे। बिहार में गठबंधन को लेकर बाकी बातें नीतीश कुमार, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से करेंगे। दो दिनों का ये दिल्ली दौरा अहम माना जा रहा है।
2019 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। भाजपा लोकसभा में 303 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। तब भाजपा ने ये तय किया था कि जो गठबंधन के साथी हैं उन्हें केंद्र की सरकार में सांकेतिक रूप से शामिल किया जाए। जिसका विरोध मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था और उन्होंने जेडीयू से एक भी मंत्री नहीं बनने दिया था। नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 भाजपा के जरूर लड़ा लेकिन, भाजपा के साथ आत्मसात नहीं हो पाए। बाद के दिनों में जब जदयू की राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह बने तब वह सरकार में शामिल हो गये। केंद्र में मंत्री बने थे। 2022 के अगस्त में नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और राजद के साथ सरकार बनाए।
अब यह भी जानना जरूरी है कि आखिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की बनी बनाई पूरी मुहिम को क्यों छोड़ दिया? दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता को लीड करना चाहते थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कभी इस बात को अपने मुंह से नहीं कहा लेकिन, उनके दल के नेताओं ने गाहे- बगाहे इस बात का जरूर जिक्र किया कि प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार का नाम आगे लाया जाए। पांच बैठकों के बाद भी जब इस मसले को सुलझाया नहीं जा सका कि विपक्षी एकता की तरफ से कौन लीड करेगा? इस पर फैसला नहीं हुआ कि सीटों के बंटवारे पर विपक्षी एकता की तरफ से कोई बात नहीं हुई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पुराने गठबंधन की तरफ रुख कर लिया।
ये सरकार नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की आपसी सहमति से बनी है। काफी दिनों के बाद नीतीश कुमार और पीएम से मुलाकात हुई है। जाहिर है इस मुलाकात के बाद बिहार एनडीए को लेकर जो कुछ भ्रांतियां है वो दूर हो जाएगी। बिहार में लोकसभा चुनाव में गठबंधन का क्या स्वरुप रहेगा, फार्मूला 2019 वाला रहेगा या फिर उसमें कुछ फेरबदल होगी। केंद्र सरकार बनने के बाद जदयू की सरकार में क्या हिस्सेदारी होगी, इन तमाम बातों को नीतीश कुमार इस दो दिनों के दौरे में क्लीयर कर लेंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो उन्हें सरकार और संगठन दोनों को लेकर अकेले ही बात करनी है. ऐसे में ये मुलाकात सकारात्मक टॉनिक होगा।