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शारदा सिन्हा के निधन की खबर मिलते ही सुपौल में शोक की लहर, उनके पैतृक गांव में पसरा मातम

शारदा सिन्हा के निधन की खबर मिलते ही सुपौल में शोक की लहर, उनके पैतृक गांव में पसरा मातम

05-Nov-2024 10:25 PM

By SANT SAROJ

SUPAUL: प्रसिद्ध लोक गायिका पद्म भूषण शारदा सिन्हा के निधन की खबर मिलते ही उनके पैतृक गांव सुपौल के राघोपुर प्रखंड स्थित हुलास में शोक की लहर दौड़ गई है। पूरे गांव में मातमी सन्नाटा पसरा हुआ है। गांव की बेटी के निधन से इलाके के लोग काफी सदमें में है। उनके आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा है। 


बता दें कि शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को सुपौल जिले के हुलास गाँव में हुआ था। उनके पिता, सुखदेव ठाकुर, शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। शारदा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हुलास में ही पूरी की। 1974 में उन्होंने पहली बार भोजपुरी गीत गाया, लेकिन उनके जीवन में संघर्ष जारी रहा। 1978 में उनका छठ गीत "उग हो सुरुज देव" रिकॉर्ड किया गया, जिसके बाद शारदा सिन्हा का नाम घर-घर में प्रसिद्ध हो गया। 1989 में उन्होंने बॉलीवुड में भी कदम रखा और "कहे तोसे सजना तोहरे सजनिया" गीत ने खूब सराहना बटोरी।


शारदा सिन्हा का पैतृक निवास हुलास गाँव में स्थित है। पुराने खपरैल का उनका घर अब टूट चुका है, लेकिन उनकी मायके की स्मृतियाँ आज भी वहाँ जीवित हैं। वर्तमान में नए मकान बने हैं, जहाँ उनके मायके का एकमात्र भाई निवास करता है, जबकि अन्य भाई गाँव से बाहर रहते हैं। शारदा सिन्हा के बीमार होने की खबर मिलते ही परिवार के सभी सदस्य दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे। घर की देखभाल एक स्टाफ कर रहा है।


गाँव वालों का कहना है कि शारदा सिन्हा का अपने मायके से गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इसी गाँव में हुई थी, और उनका गाँव के प्रति स्नेह आज भी बना हुआ है। उनके निधन की खबर से गाँव के लोग काफी सदमें में है। छठ के नहाय खाय के दिन स्वर कोकिला शारदा सिन्हा ने दिल्ली एम्स में अंतिम सांसे ली। उनके छठ गीत के बिना लोक आस्था का महापर्व अधूरा माना जाता है। ऐसा कोई गांव और शहर नहीं होगा जहां छठ के मौके पर शारदा सिन्हा का छठ गीत नहीं सुनाई देता होगा। छठ महापर्व के नहाय खाय के दिन आज शाम शारदा सिन्हा का निधन हो गया। 


बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने शारदा सिन्हा के निधन पर दुख व्यक्त किया। कहा कि छठ महापर्व को सुरीले गीतों से सजाने वाली, बिहार को कला के क्षेत्र में नई पहचान देने वाली शारदा सिन्हा जी के स्वर अब शांत हो गए।  दिल्ली स्थित एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली। गंभीर बीमार होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।  पद्म श्री, पद्म भूषण, स्वर कोकिला को छठी मईया अपने चरणों में शरण दें, यही प्रार्थना है। दुख की इस घड़ी में छठी माई उनके परिवार को दुख सहने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति, शांति, शांति! 


जेडीयू एमएलसी नीरज कुमार ने भी शारदा सिन्हा के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि लोकगीत के स्वर कोकिला पद्मश्री शारदा सिन्हा जी का निधन मर्मांतक व पीड़ा जनक है। क्या संयोग है, जिन्होंने छठी मैया के गीत को देश और दुनिया में घर-घर तक पहुंचा उनका नहाए खाए के दिन ही जीवन लीला समाप्त हुई। इश्वर दिवंगत आत्मा को श्रीचरणों में स्थान दें। 


राष्ट्रीय जनता दल ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर यह लिखा है कि छठ महापर्व की आवाज़ #छठ महापर्व में ही हमें छोड़ गईं! अपनी सुरीली आवाज में बिहार की संस्कृति, त्योहारों, रीति रिवाजों, शुभ अवसरों को सुरीली पहचान के साथ सुसंस्कृत भाषा मे दुनिया के समक्ष रखने वालीं स्वर-कोकिला अब हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी आवाज़ सदैव बिहार की एक गौरवशाली पहचान बनकर हमारे बीच बनी रहेगी! उनके सभी चाहने वालों और परिजनों को हमारी संवेदनाएँ! दिवंगत आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि!