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06-Jul-2023 08:05 AM
By First Bihar
PATNA : पटना हाईकोर्ट में जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर गुरुवार को भी सुनवाई की जाएगी। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ यूथ फॉर इक्वलिटी एवं कई अन्य द्वारा इस मामले में दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
दरअसल पटना हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से महाधिवक्ता पीके शाही और अपर महाधिवक्ता अंजनी कुमार ने अपना पक्ष रखा। नीतीश सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि जातिगत गणना राजकीय अधिकार क्षेत्र में आता है उद्देश्य प्राप्ति के लिए डाटा इकट्ठा करना अनिवार्य है। बिना डाटा इकट्ठा किए हुए आम नागरिकों को राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना संभव नहीं है।'
महाधिवक्ता ने दलील दी कि जातीय सर्वेक्षण का कार्य लगभग 80% पूरा हो गया है इस सर्वेक्षण में किसी की निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि जातियों को लेकर बहुत सी सूचनाएं पहले से ही सार्वजनिक हैं। नामांकन लेने से लेकर नौकरी के लिए लोग स्वेच्छा से अपनी जाति की जानकारी देते रहते हैं। हालांकि समय के अभाव में महाधिवक्ता अपनी बहस पूरी नहीं कर पाए जिसके बाद आज फिर इस मामले में सुनवाई होनी है।
मालूम हो कि, पटना हाईकोर्ट के तरफ से जाति आधारित गणना पर 4 मई को तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई थी। कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि अब तक जो डेटा कलेक्ट हुआ है, उसे नष्ट नहीं किया जाए। उस वक्त तक 80 फीसदी से अधिक गणना का काम पूरा हो चुका था। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जहां सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था कि, यदि 3 जुलाई तक पटना हाईकोर्ट इस मामले पर सुनवाई नहीं करता है तो 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई करेगा। लेकिन, अब इस मामले में 3 जलाई को सुनवाई की गई है।
आपको बताते चलें कि, राज्य में 7 जनवरी से शुरू हुई गणना 15 मई को खत्म होने वाली थी, लेकिन उससे पहले ही 4 मई को पटना हाई कोर्ट ने इसपर रोक लगा दिया था। इसके बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। जिसमें 18 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की बेंच में मामले की सुनवाई हुई। बेंच ने कहा था कि इस बात की जांच करनी होगी कि सर्वेक्षण की आड़ में नीतीश सरकार जनगणना तो नहीं करा रही है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए पटना हाई कोर्ट के पास वापस भेज दिया था।