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08-Dec-2022 03:48 PM
PATNA: बिहार में कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने चार जनसभायें की. वे लोगों से कहते रहे कि सिंगापुर में किडनी ट्रांसप्लांट के बाद लालू यादव यही पूछेंगे कि कुढ़नी का क्या हुआ. एक विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उप चुनाव में सत्तारूढ पार्टी के मंत्री, विधायक औऱ सांसद वोटिंग के दिन तक कैंप करते रहे. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह खुद वहीं खूंटा गाड़ कर बैठे रहे. महागठबंधन की सात पार्टियों के साथ साथ आंठवी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी भी बीजेपी को हराने में लगी रही. इसके बावजूद राजद की सीटिंग सीट पर महागठबंधन का उम्मीदवार चुनाव हार गया. अब इस रिजल्ट का अगर एक लाइऩ का विश्लेषण किया जाये तो यही बात सामने आती है कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में अप्रासंगिक हो गये हैं. उनकी पॉलिटिक्स अंत होने के कगार पर पहुंच गयी है. हम आपको पूरी बात डिटेल में समझाते हैं.
पहले आंकड़ों को समझिये
2020 में जब विधानसभा के चुनाव हुए थे तो मुजफ्फरपुर जिले की कुढनी सीट से राजद के उम्मीदवार अनिल सहनी ने 742 वोटों से बीजेपी के केदार गुप्ता को हराया था. अनिल सहनी के सजायाफ्ता होने के बाद सीट खाली हुई तो बिहार में सियासी समीकरण बदल चुके थे. नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ कर राजद के साथ जा चुके थे. उपचुनाव हुए तो नीतीश कुमार ने लालू-तेजस्वी का मान-मनौव्वल कर कुढ़नी की सीट अपनी पार्टी के लिए मांग ली. लिहाजा कुढ़नी से जेडीयू के उम्मीदवार मनोज कुशवाहा मैदान में आ गये. उम्मीदवार भले ही जेडीयू के थे लेकिन उन्हें जीत दिलाने के लिए सबसे ज्यादा ताकत तेजस्वी यादव ने झोंकी थी.
अब उपचुनाव के रिजल्ट को देखिये. उपचुनाव में बीजेपी ने राजद की सीटिंग सीट छीन ली. बीजेपी के उम्मीदवार केदार गुप्ता ने जेडीयू के मनोज कुशवाहा को 3 हजार 649 वोटों से हरा कर जीत हासिल की. ऐसा तब हुआ जब मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी पार्टी ने 10 हजार वोट हासिल किया. मुकेश सहनी के उम्मीदवार नीलाभ कुमार ने सिर्फ और सिर्फ बीजेपी के वोट में सेंधमारी की. मुकेश सहनी खुद भी कई दफे ये कहते रहे कि उन्हें बीजेपी को हराना है. इसके बावजूद बीजेपी के उम्मीदवार ने जीत हासिल किया.
उपेंद्र कुशवाहा के वोट कहां गये
कुढनी विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव की एक और दिलचस्प कहानी है. दरअसल इस सीट पर जब 2020 में चुनाव हुए थे तो उपेंद्र कुशवाहा अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी चला रहे थे. 2020 के चुनाव में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उम्मीदवार को 10 हजार 41 वोट आये थे. 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद ही उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया था. कायदे से उपेंद्र कुशवाहा के वोट महागठबंधन में जुड़ने चाहिये थे. यानि कुढ़नी में जेडीयू के उम्मीदवार को भारी अतंर से चुनाव जीतना चाहिये था लेकिन हार हुई.
नीतीश की पॉलिटिक्स का द इंड
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ये नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स का द इंड है यानि बिहार में उनकी राजनीति खत्म होने की कगार पर पहुंच गयी है. कुढ़नी उसका ही उदाहरण है. 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी नीतीश कुमार के साथ थी तो भाजपा उम्मीदवार को 39.86 प्रतिशत वोट आये थे. जब नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड कर चले गये तब उपचुनाव हुआ. उपचुनाव में मुकेश सहनी ने बीजेपी के वोट में सेंधमारी की. इन सबके बावजूद 2022 में भाजपा के उम्मीदवार को 42.38 प्रतिशत वोट आये. यानि नीतीश के अलग होने के बाद भाजपा का वोट बढ़ गया. वहीं, महागठबंधन का आधार कमजोर हो गया.
चाचा के साथ जाकर फंस गये तेजस्वी
कुढ़नी के विधानसभा उपचुनाव का मैसेज ये भी है कि तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के साथ जाकर फंस गये हैं. इसके लिए 2020 से लेकर अब तक के सियासी घटनाक्रमों को देखिये. 2020 के विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से सत्ता में आने से चूक गये तेजस्वी यादव का प्रदर्शन लगातार सुधरता जा रहा था. 2021 में जब तारापुर औऱ कुशेश्वरस्थान विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुए तो तेजस्वी की पार्टी राजद को पिछले चुनाव से ज्यादा वोट मिले. उसके बाद मुजफ्फरपुर के बोचहां में विधानसभा का उपचुनाव हुआ. ये राजद की सीटिंग सीट नहीं थी लेकिन तेजस्वी की पार्टी ने इस उपचुनाव में 36 हजार से भी ज्यादा वोटों के विशाल अंतर से जीत हासिल किया था.
तेजस्वी की मजबूती का सिलसिला तब तक कायम रहा जब तक वे नीतीश कुमार से दूर रहे. 2022 के अगस्त में जेडीयू औऱ राजद का तालमेल हुआ. इसके बाद मोकामा औऱ गोपालगंज में उपचुनाव हुए. मोकामा में अनंत सिंह जैसे कद्दावर नेता की पत्नी के उम्मीदवार होने के बावजूद जीत का अंतर घट गया. अनंत सिंह की पत्नी उतने वोट से भी चुनाव नहीं जीत पायीं, जितने वोट से 2015 में निर्दलीय चुनाव लड़कर अनंत सिंह जीते थे. और अब कुढ़नी में तेजस्वी के तमाम जोर लगाने के बाद भी महागठबंधन का उम्मीदवार चुनाव हार गया.
जाहिर है तेजस्वी यादव की कानों में खतरे की घंटी नहीं बल्कि भोंपू बज रहा होगा. वे सियासी गणित जोड़ रहे थे. लिहाजा दावा ये किया जा रहा था कि नीतीश कुमार के साथ आने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ऑल आउट कर देंगे. लेकिन कुढ़नी के उपचुनाव ने ये मैसेज दे दिया कि लोकसभा चुनाव की बात दूर रही, तेजस्वी को इस बात की चिंता करनी चाहिये कि 2025 का विधानसभा चुनाव महागठबंधन कैसे जीत पायेगा. ताकि उनके मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो सके.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नीतीश कुमार के राज में शराबबंदी, भ्रष्टाचार, अफसरशाही से जनता त्रस्त हो चुकी है. नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रोश 2020 के विधानसभा चुनाव में भी था. तभी जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी थी. हालांकि उस चुनाव के बाद नीतीश कुमार औऱ उनकी पार्टी के नेता बीजेपी पर साजिश का आरोप लगाने लगे थे. लेकिन नीतीश कुमार के अलग होने के बाद मोकामा, गोपालगंज और कुढनी में भाजपा के प्रदर्शन में सुधार से ये साफ होने लगा है कि बीजेपी को ही नीतीश कुमार के साथ रहने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा था.
बदल सकती है सियासी तस्वीर
कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट से बिहार में सियासी तस्वीर बदल सकती है. जाहिर है बीजेपी के हौंसले बुलंद होंगे. उसे लग रहा है कि वह अपने दम पर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव औऱ उनके सात पार्टियों के महागठबंधन को परास्त कर सकती है. लिहाजा भाजपा के तेवर आक्रामक होंगे. वहीं, महागठबंधन के भीतर समीकरण गड़बड़ होगा. महागठबंधन में शामिल कांग्रेस औऱ वामपंथी पार्टियों को पहले से ही सरकार से कई नाराजगी है. अब वे खुल कर बोलेंगे. उधर राजद नेताओं के एक वर्ग को पहले से ही लग रहा था कि नीतीश कुमार के साथ जाने से नुकसान हुआ है. ऐसे राजद नेता भी अब सामने आ सकते हैं. उधर जेडीयू नेताओं की एक बड़ी जमात पहले से ही इस बात से नाराज है कि नीतीश ने राजद के साथ तालमेल क्यों किया. अब उनकी जुबान भी खुल सकती है. कुल मिलाकर कहें तो आगे आने वाले दिनों में बिहार की पॉलिटिक्स मजेदार होने वाली है.