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31-Mar-2024 10:58 AM
By First Bihar
PATNA : देश के अंदर लोकसभा चुनाव का शोरगुल है। हर गली, चौक-चौराहे और नुक्कड़ पर लोग चुनाव के ही चर्चा कर करते नजर आ रहा है। ऐसे में एक चर्चा जो सबसे अधिक हो रही है वह है इस बार छोटे दलों की हैसियत और छोटी हो गई जबकि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा और राजद का कद बढ़ा है। इसमें सबसे अधिक फायदा तेजस्वी की पार्टी राजद को हुआ है।
दरअसल, राजनीति में कुछ भी अस्थाई नहीं होता यहां पल-पल परिस्थितियों बदलता है और फिर उसके अनुसार आगे की रणनीति भी तय होती है। ऐसे में बिहार तो शुरू से ही राजनीति परीक्षण की भूमि रही है। लिहाजा यहां गठबंधन टूटते बनते रहते हैं। लेकिन इस बार के चुनावी माहौल है उसके तहत जो बातें निकलकर सामने आई है वह यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार सीटों पर छोटे दलों की हिस्सेदारी 10% तक घटी है।
मालूम हो कि, बिहार में तीन प्रमुख दल राजद, भाजपा, जदयू ने लगभग तीन चौथाई सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं, बाकी के सात दलों के हिस्से में महज एक चौथाई सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। मतलब इस बार छोटे दलों को अधगिक महत्व नहीं मिला है। इनलोगों को बस खुश रखने की कोशिश की गई है।
वहीं, छोटे दल की नुकसान की बात करें तो सबसे अधिक नुकसान उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को हुआ है। इनकी पार्टी पिछली बार पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव मैदान में थी। इस बार उपेंद्र कुशवाहा को मात्र एक सीट मिला है। कुछ ऐसा ही हाल जीतन मांझी का भी है। पिछली बार हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को तीन सीट मिली थी। इस बार इन्हें एक सीट मिला है।
उधर, इस बार मुकेश सहनी की पार्टी तो पूरे मैदान से ही गायब नजर आ रही है। जबकि पिछली बार इन्हें तीन सीट पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। मतलब पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा,जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के दलों को मिलाकर 11 सीट मिली थी