Voter List Revision Bihar: बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में अब तक 6.32 करोड़ फॉर्म जमा, शहरी क्षेत्रों में धीमी रफ्तार Voter List Revision Bihar: बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में अब तक 6.32 करोड़ फॉर्म जमा, शहरी क्षेत्रों में धीमी रफ्तार Bihar News: बिहार में अवैध खनिज परिवहन के खिलाफ चला S-Drive अभियान, 80 वाहन जब्त, 1.93 करोड़ का जुर्माना Bihar News: बिहार में अवैध खनिज परिवहन के खिलाफ चला S-Drive अभियान, 80 वाहन जब्त, 1.93 करोड़ का जुर्माना Patna Crime News: पटना के पॉश इलाके में पार्क में बदमाशों ने की ताबड़तोड़ फायरिंग, दहशत में लोग Patna Crime News: पटना के पॉश इलाके में पार्क में बदमाशों ने की ताबड़तोड़ फायरिंग, दहशत में लोग Bihar Crime News: पुलिस की गिरफ्त में आया इनामी विनोद राठौड़, सांसद को दी थी बम से उड़ाने की धमकी Bihar Crime News: पुलिस की गिरफ्त में आया इनामी विनोद राठौड़, सांसद को दी थी बम से उड़ाने की धमकी Bihar News: बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण बनी बड़ी मुसीबत, परेशान BDO ने DM को भेजा इस्तीफा, वरीय अधिकारी पर लगाए गंभीर आरोप Bihar Politics: 'बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो मैं बनूंगा डिप्टी सीएम' VIP चीफ मुकेश सहनी का बड़ा दावा
20-May-2022 09:41 AM
PATNA: रेलवे की नौकरी के बदले कैश और ज़मीन लेने के आरोप में अचानक से लालू यादव और उनकी फ़ैमिली के 15 से ज़्यादा ठिकानों पर अचानक से CBI की छापेमारी के मायने क्या हैं? एकाएक हरकत में आयी सीबीआई क्या वाक़ई इस मामले को सुलझाना चाहती है या फिर केंद्रीय जाँच एजेंसी को आगे कर पर्दे के पीछे कोई दूसरा खेल खेला जा रहा है? जो बातें सामने आ रही है वो बडे सियासी खेल का संकेत दे रही हैं. समझिये क्या है पूरा मामला.
दरअसल 2004 से 2009 तक यानि अब से 13 साल पहले लालू यादव केंद्र सरकार में रेल मंत्री हुआ करते थे. आरोप है कि उसी दौरान उन्होंने रेलवे में नौकरी देने के लिए लोगों से ज़मीन और पैसे लिए. एक दूसरा आरोप भी लगा कि लालू यादव ने रेलवे की कंपनी IRCTC के रांची और पुरी के दो होटलों को निजी लोगों को सौंपा और उसके बदले अपने परिजनों के नाम पर ज़मीन लिखवाया. लालू के रेल मंत्री पद से हटने के 8 साल बाद 2017 में ये मामले अचानक से तूल पकड़ने लगे थे. ये वो दौर था जब बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव मिलकर सरकार चला रहे थे और तेजस्वी नीतीश के नायब यानि डिप्टी सीएम थे. 2017 में जब सीबीआई से लेकर ED जैसी एजेंसियों ने इन मामलों में कार्रवाई शुरू की तो तेजस्वी यादव भी आरोपी बना दिये गये. तेजस्वी यादव पर आरोप था कि लालू ने उनके नाम पर भी अवैध संपत्ति लिखवायी. हम आपको याद दिला दें कि जब तेजस्वी के ख़िलाफ़ केस दर्ज हुआ था तो 2017 में नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार से समझौता न करने का एलान करते हुए राजद से न सिर्फ़ नाता तोड़ा बल्कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी.
नीतीश की शह पर BJP की मात?
अब हम आपको पिछले दो महीनों में बिहार में हुए सियासी घटनाक्रम की याद दिलाते हैं. नीतीश कुमार अचानक से तेजस्वी यादव से गले मिलने को आतुर दिखने लगे थे. तेजस्वी ने जब इफ़्तार की दावत दी तो नीतीश कुमार पैदल चलते हुए उस दावत में पहुँच गये. फिर एक दूसरी सियासी दावत-ए-इफ़्तार में नीतीश कुमार तेजस्वी को उनकी गाड़ी तक छोड़ने चले गये. नीतीश के तेजस्वी प्रेम से बिहार के सियासी गलियारे में अटकलों का बाज़ार गर्म था. लेकिन असल वाक़या 10 दिन पहले हुआ, जिसने बीजेपी नेतृत्व के कानों में ख़तरे की घंटी बजा दी थी. दरअसल तेजस्वी यादव ने अचानक से जातीय जनगणना पर एक प्रेस कांफ्रेंस किया और पटना से दिल्ली तक पैदल मार्च करने का एलान कर दिया. उसके बाद का घटनाक्रम और दिलचस्प था. उनके प्रेस कांफ्रेंस के कुछ घंटे बाद ही नीतीश आवास से तेजस्वी को बुलावा आ गया. तेजस्वी यादव अपनी पार्टी के किसी नेता को साथ लिये बग़ैर जातीय जनगणना पर बात करने और ज्ञापन सौंपने नीतीश कुमार के आवास पर पहुँच गये. बंद कमरे में दोनों के बीच बात हुई और उसके बाद से नीतीश कुमार को लेकर तेजस्वी यादव के सुर ही बदल गये. पिछले 15 दिनों से तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर कोई तीखी हमला नहीं बोला.
कुल मिलाकर कहें तो सियासी मैसेज यही जा रहा था कि नीतीश कुमार ने आख़िरकार तेजस्वी को एक बार फिर दोस्ती के लिए राज़ी कर ही लिया है. खबर ये आ रही थी कि अब सत्ता में साझेदारी को लेकर कुछ ही बातें तय होनी बाक़ी थी. एक साथ आने पर सहमति बन गयी है. तेजस्वी और नीतीश की जुगलबंदी के बीच ही ये खबर फैली कि जेडीयू कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री RCP सिंह को नीतीश इस दफे राज्यसभा नहीं भेजेंगे. RCP सिंह बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं. चर्चा ये हो रही थी कि जब नीतीश को बीजेपी से ही संबंध तोड़ना है तो फिर आरसीपी सिंह को क्यों रिपीट किया जायेगा. बता दें कि राज्यसभा सांसद के तौर पर RCP सिंह का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और अभी ही उसके लिए चुनाव हो रहा है. RCP सिंह का पत्ता कटने की खबरों से बीजेपी में भी खलबली थी.
जातीय जनगणना के बहाने पलटी मारने वाले थे नीतीश?
बीजेपी के नेता अक्सर बताते हैं कि तीसरे नंबर की पार्टी के नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाये रखने के पीछे उनकी मजबूरी क्या है? बीजेपी के नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार की एकमात्र ख़ासियत यही बच गयी है कि वे कभी भी किसी वक्त पलटी मार सकते हैं. एक पार्टी से दामन छुड़ाकर दूसरे का दामन एक झटके में थाम सकते हैं. ये जगज़ाहिर है कि नीतीश कुमार 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी से काफ़ी असहज हैं. उन्हें लगता है कि बीजेपी ने साज़िश करके जेडीयू के उम्मीदवारों को चुनाव हरवाया था. तब से ही वे भाजपा से बदला लेने का मौक़ा तलाश रहे थे, जो अब मिलने जा रहा था. BJP को आशंका थी कि जातीय जनगणना के बहाने नीतीश कुमार बीजेपी से पल्ला झाड़ने की तैयारी कर रहे थे. केंद्र की भाजपा सरकार पहले ही जातीय जनगणना से मना कर चुकी है. बिहार बीजेपी के नेता भी अपनी पार्टी के लाइन पर बोल रहे थे. उधर नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को मना चुके थे. नीतीश को पाला बदलने का कारण भी मिल गया था. बीजेपी को डर था कि नीतीश कुमार जातीय जनगणना के सहारे पलटी मारेंगे. इससे न सिर्फ़ भाजपा सरकार से बाहर जायेगी बल्कि उसके वोट बैंक पर भी बड़ा असर पड़ता. नीतीश अगर तेजस्वी के साथ मिलकर जातीय जनगणना के चुनावी मुद्दा बना देते तो फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फँस जाती.
तो इसलिए हुई रेड?
सवाल ये है कि क्या इन्हीं सियासी परिस्थितियों में लालू फ़ैमिली के ठिकानों पर रेड हुई? सीबीआई सूत्र बता रहें हैं कि लालू परिवार के ख़िलाफ़ नया केस भी दर्ज किया गया है. सवाल उठना लाज़िमी है कि रेल मंत्री की जिस कुर्सी से लालू 13 साल पहले हट चुके हैं उसमें सीबीआई या केंद्र सरकार की किसी एजेंसी को क्या नया सबूत मिल गया? CBI रेड और केस को लेकर फ़िलहाल कोई जानकारी नही दे रही लेकिन जो सियासी मैसेज देना था वो तो दिया जा चुका है. पाँच साल पहले यानि 2017 में भ्रष्टाचार के मसले पर लालू यादव और तेजस्वी यादव से पल्ला झाड़ते वाले नीतीश कुमार क्या करेंगे. अब तो लालू परिवार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का नया मामला सामने आ गया है. CBI की रेड और केस दोनों हो चुका है. क्या अब नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के अपने एजेंडे को भी भूल कर तेजस्वी के गले मिलेंगे. बीजेपी ने उनके सामने यही सवाल खड़ा किया है.
नीतीश को भी मैसेज
सियासी गलियारे में एक और चर्चा हो रही है. बीजेपी ने नीतीश कुमार को भी अलर्ट किया है. नीतीश कुमार भी काफ़ी दिनों तक केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे हैं. उनके दौर में रेलवे के कथित स्लीपर घोटाले की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. बिहार के सृजन घोटाले की जाँच भी सीबीआई के पास है. उसकी आँच भी काफ़ी आगे तक जा सकती है. केंद्र सरकार के पास नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ कुछ और मामले हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बीजेपी बहुत आसानी से बिहार की सत्ता से बेदख़ल नहीं होगी.