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29-May-2022 08:08 PM
PATNA: ज्यादा दिनों की बात नहीं है जब जेडीयू ही नहीं बल्कि बिहार की सियासत की समझ रखने वाला हर शख्स जानता था कि आरसीपी सिंह होने का मतलब क्या होता है. विधानसभा में विपक्षी पार्टियां नारा लगाती थीं कि बिहार तो आरसीपी टैक्स के सहारे चलता है. प्रशासन में बैठे लोग जानते थे कि सीएम की कुर्सी पर भले ही नीतीश कुमार बैठे हों, असली पावर तो पटना के स्टैंड्र रोड के उस बंगले से आती थी जिसमें आरसीपी सिंह रहते थे. वही आरसीपी सिंह आज इस बेदर्दी से जेडीयू से आउट किये गये जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी.
राजदार से गद्दार क्यों बन गये आरसीपी सिंह
आरसीपी सिंह बड़े गर्व से लोगों से बताते थे कि वे 32 सालों तक नीतीश कुमार के साथ साये की तरह रहे हैं. दरअसल आरसीपी सिंह उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हुआ करते थे. 1990 के दशक में नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने थे तो उत्तर प्रदेश से आरसीपी सिंह को ढ़ूंढ लाये. उन्हें अपना पीएस बना लिया. नीतीश जब तक केंद्र में मंत्री रहे आरसीपी सिंह वहां रहे. नीतीश जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को उत्तर प्रदेश कैडर से बिहार बुलाकर अपना प्रधान सचिव बना लिया.
2005 से 2010 तक आऱसीपी सिंह नीतीश कुमार के प्रधान सचिव रहे. 2010 में जब राज्यसभा चुनाव आया तो आरसीपी बाबू सांसद बनने की जिद ठान कर बैठ गये. नीतीश कुमार चाहते थे कि आरसीपी उनके प्रधान सचिव बने रहें लेकिन वे तो राजनीति में आने पर आमदा थे. नाराज आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की ड्य़ूटी छोड़ कर अपने घर में आकर बैठ गये थे. आज ललन सिंह ने उनका टिकट कटवाने में अहम रोल निभाया लेकिन 2010 में वही ललन सिंह आरसीपी सिंह को उनके घऱ मनाने गये थे. नीतीश कुमार के पास लेकर गये औऱ आरसीपी सिंह नौकरी से इस्तीफा देकर राज्यसभा का सांसद बन गये.
सियासत के जानकार जानते है कि राज्यसभा सांसद बनने के बाद भी आरसीपी सिंह के जरिये ही सरकार के सारे फैसले होते थे. वे पार्टी में संगठन महामंत्री बना दिये गये थे. पार्टी उनके कहे मुताबिक चलती थी. सरकारी अधिकारी आरसीपी सिंह के बंगले का चक्कर काटते थे, चर्चा ये होती थी कि अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग की लिस्ट भी आरसीपी बाबू ही तैयार करते थे. ज्यादा दिनों की बात नहीं है. 2020 में विधानसभा चुनाव के बाद जब नीतीश कुमार ने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा तो अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आरसीपी सिंह को ही चुना था.
मंत्री पद मिलते ही गद्दार बन गये
लेकिन जेडीयू और बिहार सरकार के सुपर पावर आरसीपी सिंह के रूतबे का टर्निंग प्वाइंट 2021 में आया. 2021 में केंद्र में नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया. ये वो दौर था जब 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू औऱ बीजेपी के रिश्ते तल्ख हो गये थे. नीतीश कुमार की बीजेपी के किसी वरीय नेता से बात नहीं हो रही थी. लेकिन तय ये हुआ कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में जेडीयू शामिल होगी. नीतीश कुमार ने जेडीयू की ओर से बातचीत करने के लिए आऱसीपी सिंह को अधिकृत कर दिया.
जेडीयू के नेता कहते हैं कि खेल वहीं हुआ. आरसीपी सिंह जेडीयू की ओर से बात करने गये थे औऱ खुद मंत्री बनने का जुगाड़ कर आये. चर्चा तो ये भी है कि उस वक्त नीतीश कुमार की ओर से ललन सिंह को मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन आऱसीपी सिंह ने बीजेपी से ऐसी सेटिंग की थी कि भाजपा आरसीपी बाबू के अलावा जेडीयू के किसी और सांसद को मंत्री बनाने को राजी नहीं थी. मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा ने आरसीपी सिंह का जेडीयू में चैप्टर क्लोज कर दिया.
बीजेपी का गुणगान भी भारी पड़ा
जेडीयू के एक नेता ने बताया कि केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह जिस तरीके से बीजेपी का गुणगान कर रहे थे वह भी भारी पड़ा. दरअसल नीतीश कुमार ये मान कर बैठे हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी जो दुर्गति हुई है उसके लिए बीजेपी जिम्मेवार है. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए वे भले ही बीजेपी के साथ बने हुए हैं लेकिन भाजपा को डैमेज करने का कोई भी मौका उन्होंने गंवाया नहीं है. लेकिन इसी दौरान आरसीपी सिंह हर फ्रंट पर नरेंद्र मोदी औऱ बीजेपी का गुणगान कर रहे थे. वे जेडीयू की बैठकों में भी बीजेपी के पक्ष में भाषण देते थे. नीतीश कुमार को बीजेपी का गुणगान बर्दाश्त नहीं हो रहा था.
जानकारों की मानें तो नीतीश के चाणक्य माने जाने वाले ललन सिंह तो मंत्री नहीं बनने के बाद आरसीपी सिंह को निपटाने की कसम खाकर बैठे थे. वे पार्टी के हर फ्रंट पर आरसीपी सिंह को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहा था तो ललन सिंह ने पार्टी की बैठक में ये प्रस्ताव दे दिया कि आरसीपी सिंह वहां बीजेपी से जेडीयू का तालमेल करा दें. ललन सिंह ने आरसीपी को 51 सीटों की लिस्ट सौंप दी और कहा कि इन सीटों को बीजेपी से जेडीयू को दिला दें. जबकि जेडीयू की हालत ये थी कि उसके पास कार्यकर्ता औऱ नेता कौन कहे, 51सीट पर उम्मीदवार तक नहीं था.
आखिरी फैसले के पहले ड्रामा
जेडीयू में नेताओं का एक जमात पहले से ये कह रहा था कि नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को निपटाने वाले हैं. लेकिन आरसीपी सिंह का रूतबा जानने वालों को यकीन नहीं हो रहा था. वे मान रहे थे कि नीतीश अपने तीन दशक पुराने राजदार से पल्ला नहीं झाडेंगे. राज्यसभा चुनाव का एलान होने के बाद आरसीपी सिंह दो दफे नीतीश कुमार के आवास पर मिलने भी गये. नीतीश से उनकी मुलाकातों से लगा कि बेड़ा पार हो जायेगा. लेकिन आखिरकार आरसीपी सिंह आउट हो ही गये.
पार्टी में भी नहीं मिलेगी जगह
आरसीपी सिंह को जेडीयू ने संसदीय राजनीति से विदा कर दिया है. मंत्री की कुर्सी जानी भी तय है. लेकिन खास बात ये है कि पार्टी में भी अब आरसीपी के लिए कोई जगह नहीं है. आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर ललन सिंह बने हुए हैं. उन्हें हटाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुका नेता नीचे के किसी पद पर बिठाया नहीं जा सकता. यानि आरसीपी सिंह को अब संगठन में भी कोई जिम्मेवारी नहीं मिलेगी, ये भी तय है.