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08-Jun-2020 06:15 PM
PATNA : क्या बिहार के BJP विधायकों का एक ग्रुप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ही माहौल तैयार करने में लगा है. सियासी गलियारे में ये चर्चा जोरों पर है. चर्चा ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आरक्षण विरोधी करार देने की कांग्रेस की मुहिम में बिहार बीजेपी के भी कई विधायक शामिल हो गये हैं. चार दिन बाद बीजेपी के ये विधायक एक कांग्रेसी MLA के घर भोजन करेंगे और फिर पीएम को घेरने की रणनीति तैयार करेंगे.
12 जून को कांग्रेस के विधायक के घऱ बीजेपी विधायकों का लंच
12 जून को कांग्रेस के विधायक अशोक राम के घऱ बीजेपी विधायक लंच करेंगे. हालांकि दिन के इस भोजन में बिहार की दूसरी पार्टियों के कुछ और विधायक शामिल रहेंगे जो ये मान रहे हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आरक्षण को समाप्त करने की कोशिश कर रही है. कांग्रेसी विधायक के घऱ भोजन पर केंद्र सरकार के आरक्षण विरोधी रवैये के खिलाफ रणनीति तैयार की जायेगी. सबसे मजेदार बात ये होगी कि लंच के साथ साथ बैठक का आयोजन कर रहे नेता दावा कर रहे हैं कि इसमें बीजेपी के सभी SC-ST विधायक शामिल रहेंगे. इस भोज सह बैठक में बीजेपी के जिन विधायकों के शामिल होने का दावा किया जा रहा है उसमें भागीरथी देवी, निरंजन राम और बीजेपी समर्थित निर्दलीय विधायक बेबी कुमारी शामिल हैं. कांग्रेस के एक विधायक के घर बीजेपी विधायकों का अपनी ही सरकार के खिलाफ रणनीति तैयार करना वाकई दिलचस्प होगा.
क्या है पूरा मामला
दरअसल बिहार में पिछले महीने केंद्र की बीजेपी सरकार को अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण का विरोधी करार देने की मुहिम शुरू हुई है. मुहिम की शुरूआत पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने की है. मांझी ने बिहार के SC/ST विधायकों को एकजुट कर केंद्र सरकार के आरक्षण विरोधी रवैये का विरोध करने की मुहिम चलायी है. सत्ता के गलियारे में हो रही चर्चाओं के मुताबिक जीतन राम मांझी पिछले कई महीने से कांग्रेस के नेताओं से लगातार संपर्क में हैं. दरअसल बिहार में आरजेडी और तेजस्वी प्रसाद यादव ने मांझी को पूरी तरह से किनारे कर दिया है. लिहाजा अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए वे हर किसी भी तरह कांग्रेस से जुड़े रहना चाहते हैं.
सियासी जानकार बताते हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को आरक्षण विरोधी करार देकर अनुसूचित जाति और जनजाति को उसके खिलाफ लामबंद करने की रणनीति दिल्ली में तैयार हुई. मांझी इसके अगुवा बने. इसके बाद बिहार विधानमंडल अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण बचाव संघर्ष मोर्चा के नाम से मोर्चा तैयार किया गया. मोर्चा की अब तक चार बैठक हो चुकी है. सूत्रों की मानें तो मांझी की मुहिम में सबसे पहले जेडीयू के दो नेता जुड़े जो नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं. इसके बाद दूसरी पार्टियों के विधायकों को जोड़ा गया.
RJD को समझ में आया मामला तो काट ली कन्नी
दिलचस्प बात ये भी है कि विधायकों के इस मोर्चे के पीछे की रणनीति आरजेडी के समझ में आ गयी. दरअसल आरजेडी ने बिहार विधानसभा चुनाव पहले कांग्रेस से लेकर जीतन राम मांझी को भाव देना ही बंद कर दिया है. जानकारों की मानें तो आरजेडी के रणनीतिकार ये मान रहे हैं कि आरक्षण के नाम पर इस तरह की गोलबंदी न सिर्फ बीजेपी के खिलाफ है बल्कि कांग्रेस की जडे जमाने की भी कोशिश है. कांग्रेस दलित-मुससलमान के अपने पुराने आधार को फिर से लामबंद कर बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी को बैकफुट पर लाना चाह रही है. लिहाजा आरजेडी ने जीतन राम मांझी की इस मुहिम से खुद को अलग कर लिया.
इसी महीने 4 जून को बिहार विधानमंडल अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण बचाव संघर्ष मोर्चा की बैठक जीतन राम मांझी के घर हुई तो आरजेडी का कोई विधायक उसमें नहीं पहुंचा. आरजेडी के 11 विधायकों ने अलग से बैठक की और तेजस्वी यादव को आरक्षण की लड़ाई का सबसे बड़ा योद्धा करार दिया. आरजेडी विधायकों ने कहा कि जिन विधायकों को ये लगता है कि केंद्र की बीजेपी सरकार आरक्षण विरोधी है वे सब अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर आरजेडी में शामिल हो जायें.
हालांकि सियासी जानकार हैरान हैं कि जिस मामले को तेजस्वी यादव समझ गये उसे बीजेपी का नेतृत्व क्यों नहीं समझ पा रहा है. जीतन राम मांझी के नेतृत्व में बना मोर्चा पूरे देश के SC/ST विधायकों को लामबंद कर बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा बनाने का दावा कर रहा है. शुरूआत बिहार से हुई है और बिहार में बीजेपी के विधायक ही मोर्चाबंदी कर रहे हैं.