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31-May-2022 09:52 AM
PATNA : पार्टी विद द डिफरेंस के स्लोगन के साथ काम करने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए बिहार में अजीब खेल चल रहा है। एक तरफ नेतृत्व में टकराव की स्थिति बनी हुई है तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश नेतृत्व से लेकर केंद्रीय नेतृत्व की मेहरबानी ऐसे नेताओं पर नजर आ रही है जो दूसरे दलों से पार्टी में चंद साल पहले आए। दशकों से पार्टी का झंडा उठाने वाले और बैठकों में दरी बिछाने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं को दरकिनार करते हुए बीजेपी ने राज्यसभा में एक ऐसे चेहरे को भेजने का फैसला किया जिसे लेकर पार्टी के पुराने कार्यकर्ता ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मुखर होकर बोलने का साहस तो कोई नहीं दिखा रहा लेकिन बिहार बीजेपी के अंदर यही चर्चा है कि आखिर सालों पार्टी का सेवा करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं की अनदेखी क्यों की जा रही है? मामला राज्य सभा के एक उम्मीदवार से जुड़ा हुआ है।
शंभू शरण की उम्मीदवारी पर सवाल
भारतीय जनता पार्टी ने जिन शंभू शरण पटेल को राज्यसभा भेजने का फैसला किया वह चंद साल पहले तक जेडीयू का झंडा उठाए फिरते थे। जेडीयू में रहते हुए ठेकेदारी विवाद को लेकर श्याम रजक के साथ शंभू शरण पटेल का नाम सुर्खियों में आया था। इसके बाद उन्होंने श्याम रजक पर गंभीर आरोप लगाए बाद के दिनों में जब जेडीयू में तरजीह नहीं मिली तो बीजेपी का रुख कर लिया। लेकिन चंद सालों में ही बीजेपी का नेतृत्व संभाल रहे नेताओं के साथ ऐसी नज़दीकियां बनाई कि अब उन्हें राज्यसभा का टिकट मिल गया। शंभू शरण पटेल ने कभी निचले स्तर का कोई चुनाव भी नहीं लड़ा लेकिन उन्हें सीधे उच्च सदन में भेजने का फैसला किया गया है। पटेल पर यह मेहरबानी किसकी है फिलहाल पार्टी के अंदर इसी को लेकर खूब चर्चा हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल शंभू सिंह को समर्पित कार्यकर्ता और नेता बता रहे हैं लेकिन यह बताने का साहस किसी में नहीं कि आखिर पटेल बीजेपी में शामिल कब हुए उन्होंने कितने सालों तक बीजेपी में संगठन के लिए काम किया?
आकाओं की मेहरबानी
राज्यसभा के लिए पटेल की उम्मीदवारी के बाद अब बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं में मायूसी छाई हुई है। पार्टी के अंदर खाने यह कहा जा रहा है कि संगठन के लिए समर्पण का क्या फायदा जब दूसरे दल से आने वाले नेताओं को सीधे राज्यसभा भेज दिया जाए। बिहार बीजेपी में दबी जुबान से इस बात की चर्चा है कि पटेल के आकाओं ने उनका रास्ता राज्यसभा तक बना दिया। उन्हें भूपेंद्र यादव से लेकर नित्यानंद राय तक का करीबी माना जा रहा है। दरअसल नित्यानंद राय के प्रदेश अध्यक्ष शंभू शरण पटेल को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिली, फिलहाल वह पार्टी के प्रदेश सचिव हैं। बिहार बीजेपी में जिस तरह बड़े नेताओं की खेमेबाजी देखने को मिल रही है उसी का परिणाम है कि दूसरे दलों से आए नेताओं की लॉटरी लग रही है। सियासी जानकार मानते हैं कि भूपेंद्र यादव और उनके विरोधी खेमे के बीच इस बात को लेकर होड़ मची रही कि कौन अपने करीबी नेताओं को राज्यसभा भिजवा पाता है और आखिरकार भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय की जोड़ी को सफलता मिल गई। अब देखना होगा कि पटेल जैसे कम अनुभवी नेता को राज्यसभा भेजे जाने के फैसले के बाद पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी का नतीजा क्या निकलता है?