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11-Aug-2023 04:03 PM
By First Bihar
PATNA: गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी.कृष्णैया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई स्थगित हो गई। आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देते हुए जी.कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। पूर्व सांसद की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एपी सिंह ने आनंद मोहन पक्ष रखा। कोर्ट ने दो हफ्ते का समय देते हुए बिहार सरकार को इस मामले में एडिशनल काउंटर एफिडेविट फाइल करने का आदेश दिया है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व बाहुबली सांसद आनंद मोहन को यह हलफनामा दायर करने के लिए कहा था कि उन्हें बिहार सरकार ने किस आधार पर जेल से रिहा किया है। हालांकि इस मामले में बिहार सरकार ने जुलाई महीने में ही हलफनामा के साथ अपना जवाब दायर कर दिया है। उसके बाद आज जस्टिस जेएस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि 26 सितंबर को ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच सारी बातें सुनेगी। फिलहाल बिहार सरकार को इस मामले में एडिशनल काउंटर एफिडेविट फाइल करने को कहा गया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दो हफ्ते का समय दिया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी।
बता दें कि गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी.कृष्णैया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई हुई थी। बिहार सरकार ने कानून में संशोधन करते हुए पूर्व सांसद आनंद मोहन को जेल से रिहा कर दिया था। आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार में खूब सियासत हुई। देश के कई आईएएस एसोसिएशन ने रिहाई का विरोध किया था। जी.कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी कर चुका है। वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी मामले में संज्ञान लिया था। आयोग ने बिहार सरकार को नोटिस जारी कर पूछा था कि आखिर किस आधार पर कानून में बदलाव कर आनंद मोहन को रिहा किया गया।
उधर, बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को जेल मैनुअल में बदलाव करने के सवाल पर अपने तर्क दिए हैं। आनंद मोहन के वकील एपी सिंह ने बताया कि इस तरह के नियम अन्य राज्यों में भी हैं, वहां उम्र कैद सजा पाए दोषी को छोड़ने का प्रावधान है। आम आदमी या लोक सेवक की हत्या की सजा एक जैसी ही है। आम आदमी की हत्या के दोषी की सजा पूरी होने के बाद रिहाई हो सकती है तो लोक सेवक की हत्या के दोषी की सजा पूरी होने के बाद रिहाई क्यों नहीं हो सकती है।