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आखिर किस तैयारी में जुटे हैं नीतीश, सरकार के कई विभागों से क्यों मंगवाए जा रहे क्लियरेंस सर्टिफिकेट?

आखिर किस तैयारी में जुटे हैं नीतीश, सरकार के कई विभागों से क्यों मंगवाए जा रहे क्लियरेंस सर्टिफिकेट?

08-Apr-2022 10:52 AM

PATNA : नीतीश कुमार ने साल 2005 में जब पूरे दमखम के साथ बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी तो वह ज्यादातर लोगों के फेवरेट रहे. डेढ़ दशक से ज्यादा अर्से तक बिहार का मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश कुमार की छवि पहले से कमजोर हुई और धीरे-धीरे उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. विधानसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव में भी जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है.


नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड की लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखी जा रही है. ऐसे में यह चर्चा भी खूब हो रही कि क्या 71 की उम्र पार कर चुके नीतीश अब बिहार में अपनी कुर्सी को अलविदा कहने का मन बना चुके हैं. हालांकि नीतीश कुमार ने इसे खारिज किया है. नीतीश कुमार के जब राज्यसभा जाने की चर्चा हुई तो उन्होंने खुद सामने आकर इसे बेफिजूल की बात करार दिया था. लेकिन गाहे-बगाहे कभी राष्ट्रपति तो कभी उपराष्ट्रपति पद के लिए नीतीश के नाम की चर्चा सियासी हलके में होती रहती है.


अंदर क्या चल रहा है?

सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा भी खूब है कि नीतीश कुमार की जगह अब बिहार में सत्ता की कमान भारतीय जनता पार्टी से आने वाले किसी चेहरे को दी जा सकती है. नीतीश कुमार किसी बड़ी भूमिका के लिए केंद्र का रुख कर सकते हैं. कभी नीतीश कुमार के पीएम मैटेरियल होने की चर्चा होती थी लेकिन अब उनके प्रेसिडेंट मटेरियल होने की चर्चा हो रही है. जनता दल यूनाइटेड के नेताओं को भी यह बात अच्छी लगती है. जब भी नीतीश कुमार के राष्ट्रपति बनने की योग्यता को लेकर सवाल किया जाता है तो जेडीयू के नेता इसे खारिज करने की बजाये खुलकर कबूलते हैं कि नीतीश कुमार में वह तमाम योग्यताएं हैं जो देश का राष्ट्रपति होने के लिए जरूरी है. 


ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर अंदर खाने क्या चल रहा है. बिहार के प्रशासनिक गलियारे में इन दिनों एक ऐसी चर्चा है जिसे लेकर अंदर बढ़ी हुई हलचल को समझा जा सकता है. दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास जिन विभागों का जिम्मा रहा है या जिन विभागों की जिम्मेदारी वह उठाते रहे हैं उन विभागों से आजकल क्लीयरेंस सर्टिफिकेट लिया जा रहा है. सरकारी भाषा में समझे तो पेपर के जरिए नीतीश कुमार के कामकाज की स्वच्छता का प्रमाण पत्र तैयार किया जा रहा है. जानकार मानते हैं कि ऐसा करना तभी जरूरी होता है जब राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति जैसे पद के लिए किसी व्यक्ति की उम्मीदवारी करनी हो. अगर प्रशासनिक गलियारे में चल रही यह चर्चा सही है तो क्या वाकई नीतीश कुमार किसी बड़े कदम की तरफ बढ़ने वाले हैं. क्या वाकई एनडीए के अंदर खाने की तैयारी चल रही है.


सीएम की कुर्सी छोड़ना आसान होगा? 

प्रशासनिक गलियारों से आ रही इन खबरों के बावजूद नीतीश कुमार की राजनीति को समझने वाले लोग जानते हैं कि वह बिहार के मुख्यमंत्री रहते अपनी भूमिका को कितना इंजॉय करते हैं. नीतीश कुमार की पहली पसंद बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी रही है. जीतन राम मांझी प्रकरण हो या फिर महागठबंधन से अलग होने का वाकया नीतीश कुमार ने कभी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से कोई समझौता नहीं किया. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या नीतीश कुमार के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना इतना आसान होगा. अगर नीतीश यह फैसला नहीं लेना चाहते हैं तो फिर वह राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी या फिर उस तरफ क्यों आगे बढ़ेंगे, इसे लेकर भी एक दूसरे नजरिए से चर्चा हो रही है. भारतीय जनता पार्टी के खेमे में चर्चा है कि नीतीश कुमार की जगह उनकी पार्टी से किसी चेहरे को सीएम की कुर्सी पर बैठा सकता है. 




दरअसल, सरकार की तरफ से कई ऐसे फैसले लिए गए हैं जिनको लेकर नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच तालमेल नहीं दिखता. यही वजह है कि बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व यह खुलकर भले ही कबूलता है कि नीतीश कुमार का नेतृत्व ही बिहार में एनडीए का नेतृत्व है लेकिन संजय जयसवाल यह जरूर कह देते हैं कि भविष्य में क्या होगा यह कोई नहीं जानता. बिहार में नीतीश कुमार के शासन की यूएसपी भी पहले से कमजोर हुई है. शराब बंदी कानून को लेकर सरकार आलोचना झेल रही है. भ्रष्टाचार पर कंट्रोल भी नीतीश के लिए मुश्किल हो चुका है और कानून व्यवस्था बिहार में लगातार नीचे गिरती जा रही है. जुलाई महीने में उपराष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है. राष्ट्रपति का चुनाव होना है तो क्या वाकई कोई तैयारी अंदर ही अंदर चल रही है, इस सवाल का जवाब इन दिनों बिहार में हर कोई चाहता है. जाहिर है राजनीति में कई सवालों का जवाब समय से पहले नहीं मिलता. ऐसे में नीतीश को लेकर बिहार की सियासत किस करवट बैठती है इसके लिए इंतजार ही करना होगा.