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22-Jun-2023 08:20 PM
By First Bihar
PATNA: 23 जून को पटना में होने वाली विपक्षी पार्टियों की बैठक के लिए देश भर के नेताओं का पटना पहुंचना शुरू हो गया है. इस मीटिंग में जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक के कई राज्यों की 18 पार्टियों के शामिल होने की बात कही जा रही है. अगले लोकसभा चुनाव से 10 महीने पहले एकता की इस कोशिश को लेकर बड़े बड़े दावे किये जा रहे हैं. लेकिन हालत ये है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ही विपक्षी एकता की हवा निकलती नजर आ रही है.
उत्तर प्रदेश में समझौता किससे होगा?
कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर ही जाता है. लेकिन 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश को लेकर विपक्ष की रणनीति कमजोर और निराशाजनक दिख रही है. आलम ये है कि वोट प्रतिशत के हिसाब से उत्तर प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बसपा को मीटिंग का न्योता ही नहीं मिला है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत पकड़ रखने वाले जयंत चौधरी बैठक में जा ही नहीं रहे हैं. अब अगर यूपी से सिर्फ सपा और कांग्रेस ही विपक्षी एकता की मीटिंग में शामिल होते हैं तो फिर ये कैसी एकता होगी? यही बड़ा सवाल है.
दरअसल यूपी का समीकरण उलझा हुआ है, जिसे विपक्षी एकता की बैठक नहीं सुलझा पायेगी. पिछले कुछ दिनों से ये चर्चा है कि जयंत चौधरी सपा के बजाय कांग्रेस के साथ गठबंधन करने जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव मंह बसपा ने 19.26 वोट पाकर 10 सीटें जीती थीं. जबकि जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल ने भी करीब दो फीसदी वोट हासिल किया था. जयंत चौधरी की पार्टी ने समझौते के तहत कुछ ही सीटों पर चुनाव लड़ा था.
अब जब बसपा और RLD ही विपक्षी एकता की मीटिंग से अलग हैं तो यूपी के लिए किस तरह की विपक्षी एकता होगी ये समझना मुश्किल है. क्या जेडीयू, राजद, टीएमसी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना जैसी पार्टियां भाजपा विरोधी वोट को अखिलेश के पक्ष में गोलबंद करायेंगी. इन पार्टियों के साथ मीटिंग करके सपा को यूपी में कुछ हासिल नहीं हो सकता. सपा को फायदा तभी हो सकता है जब यूपी में आधार रखने वाली पार्टियों से गठजोड़ हो.
दिलचस्प बात ये भी है कि कांग्रेस ने भी अब तक यूपी में गठबंधन को लेकर अपना स्टैंड क्लीयर नहीं किया है. अगर वह समाजवादी से गठबंधन करेगी भी तो उसकी डिमांड अच्छी खासी तादाद में सीट की होगी. समाजवादी पार्टी इसके लिए कतई तैयार नहीं दिखती. हालांकि कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ 6 फीसदी वोट हासिल किया था. लेकिन राष्ट्रीय पार्टी होने का हवाला देकर वह ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहती है. लेकिन समाजवादी पार्टी का अपने कोटे से सीटें छोड़ना संभव नहीं दिखता.