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15-Nov-2025 01:22 PM
By First Bihar
Gen Z Candidates: बिहार से सटे नेपाल में कुछ महीने पहले Gen Z पीढ़ी ने जोरदार विरोध प्रदर्शन कर राजनीतिक चर्चा में जगह बनाई थी। फिर लद्दाख में भी यही पीढ़ी बड़े स्तर पर आंदोलन का चेहरा बनी। अब बारी थी बिहार की, जहां 2025 के विधानसभा चुनाव में Gen Z युवाओं ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कर दी। कई ने चुनावी समर में दिग्गजों को सीधी चुनौती दी, कुछ चमके तो कुछ बेहद कम अंतर से हारकर बाहर हो गए। इसी पीढ़ी की लोकप्रिय भोजपुरी गायिका मैथिली ठाकुर ने नया इतिहास रचते हुए बिहार की सबसे कम उम्र की महिला विधायक बनने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया।
रिकॉर्डतोड़ वोटिंग और Gen Z की एंट्री
2025 का बिहार चुनाव कई मायनों में खास रहा। एक तरफ रिकॉर्डतोड़ वोटिंग ने इतिहास रचा, वहीं दूसरी तरफ एनडीए ने सभी की भविष्यवाणियों को धता बताते हुए 243 में से 202 सीटें जीत लीं। दूसरी ओर महागठबंधन पूरी तरह ध्वस्त हो गया और केवल 35 सीटों पर सिमटकर रह गया। ऐसे माहौल में युवा उम्मीदवारों की मौजूदगी एक नई ऊर्जा और उत्सुकता का कारण बनी।
मैथिली ठाकुर 25 की उम्र में विधायक बनने की कहानी
जुलाई 1999 में जन्मी गायक-इंफ्लुएंसर मैथिली ठाकुर डिजिटल युग की परफेक्ट प्रतिनिधि हैं, जो सोशल मीडिया से लोकप्रियता पाकर राजनीति में प्रवेश करने वाली युवा पीढ़ी की प्रेरणा भी बनीं। बीजेपी ने उन्हें दरभंगा की अलीनगर सीट से टिकट दिया। शुरुआत में उनकी उम्मीदवारी पर विवाद और विरोध के स्वर उठे, लेकिन धीरे-धीरे माहौल शांत हुआ और प्रचार के दौरान मैथिली का मजबूत समर्थन आधार बनता गया। काउंटिंग में शुरुआती उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्होंने शानदार बढ़त बनाई और 11,730 वोटों से जीत हासिल की। मैथिली को कुल 84,915 वोट मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी RJD के बिनोट मिश्रा को 73,185 वोट मिल सके। उनकी जीत न केवल उम्र के कारण ऐतिहासिक है बल्कि इसलिए भी कि इंटरनेट पीढ़ी के युवा कैसे सोशल मीडिया फॉलोइंग को ग्राउंड सपोर्ट में बदल सकते हैं, यह चुनाव इसका बड़ा उदाहरण बना।
रवीना कुशवाहा- राजनीतिक विरासत के बावजूद हार
27 वर्षीय रवीना कुशवाहा भी Gen Z उम्मीदवारों में अत्यधिक चर्चा में रहीं। उनके पति और वरिष्ठ नेता राम बालक कुशवाहा कई बार विधायक रह चुके हैं, लेकिन कानूनी कारणों से इस बार चुनाव नहीं लड़ सके। ऐसे में JDU ने रवीना को समस्तीपुर की विभूतिनगर सीट से टिकट दिया। हालांकि शुरुआती दौर में रवीना ने बढ़त बनाई, लेकिन अंत में CPI(M) के अजय कुमार ने बाजी मार ली। उन्हें 10,281 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। राजनीतिक पृष्ठभूमि और पति के प्रभाव के बावजूद जीत न मिलना यह दर्शाता है कि युवा उम्मीदवारों के लिए केवल परिवारिक पहचान काफी नहीं।
शिवानी शुक्ला—बाहुबली पिता की धाक नहीं आई काम
Gen Z की एक और प्रमुख उम्मीदवार 27 वर्षीय शिवानी शुक्ला थीं, जो वैशाली जिले की चर्चित लालगंज सीट से RJD के टिकट पर उतरीं। उनके पिता—बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला—की मजबूत पहचान होने के बावजूद शिवानी को अपेक्षित समर्थन नहीं मिल सका।
उन्हें 32,167 वोटों के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
शिवानी की शैक्षणिक पृष्ठभूमि शानदार है—उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स (लंदन) से LLM और बेंगलुरु से BA-LLB किया है। लेकिन यह चुनाव बताता है कि शैक्षणिक योग्यता और राजनीतिक कैरियर की शुरुआत में ग्राउंड कनेक्शन की अहम भूमिका होती है।
दीपू यादव—पारिवारिक सीट भी नहीं बचा सके, 27 वोटों से हार
28 वर्षीय दीपू सिंह यादव का मामला बिहार चुनाव का सबसे रोचक मुकाबला रहा। भोजपुर जिले की संदेश सीट उनके परिवार की राजनीतिक मजबूत पकड़ वाली सीट थी, पिता, मां और चाचा कई बार विधायक रह चुके हैं।
दीपू बेहद कांटे की टक्कर में हारे
केवल 27 वोटों के अंतर से।
RJD उम्मीदवार दीपू को 80,571 वोट मिले जबकि JDU के राधा चरण साह को 80,598 वोट। यह बिहार चुनाव 2025 का सबसे छोटा हार-जीत अंतर था।
29 साल के तीनों उम्मीदवार हारे
Gen Z के करीब उम्र वाले 29 वर्षीय उम्मीदवारों के लिए यह चुनाव अनलकी साबित हुआ।
तीनों प्रमुख दलों के 29 वर्षीय प्रत्याशी हारे
रविरंजन (RJD, अस्थावां) — 40,708 वोटों से हार
धनंजय कुमार (CPI-ML, भोरे) — 16,163 वोटों से हार
रुपा कुमारी (LJP-R, फतुहा) — 7,992 वोटों से हार
30 साल वालों की एंट्री शानदार रही
दिलचस्प बात यह है कि 30 वर्ष की उम्र के तीनों युवा प्रत्याशियों ने चुनाव जीत लिया
आदित्य कुमार (JDU, सकरा) — 15,050 वोटों से जीत
कोमल कुशवाहा (JDU, गायघाट) — 23,000+ वोटों से जीत
राकेश रंजन (BJP, शाहपुर) — 15,225 वोटों से जीत
इन उम्मीदवारों ने दिखाया कि 30 की उम्र चुनाव जीतने के लिए अधिक परिपक्व और जमीन पर मजबूत पकड़ वाले उम्मीदवारों के रूप में देखी जाती है। 2025 का बिहार चुनाव इस मायने में ऐतिहासिक रहा कि इसने राजनीति में युवा पीढ़ी की एंट्री को एक नई गति दी। हालांकि Gen Z उम्मीदवारों को मिश्रित परिणाम मिले, कुछ युवाओं ने इतिहास रचा, कुछ बेहद कम अंतर से हारे, लेकिन यह तथ्य साफ है कि बिहार की राजनीति में युवाओं के लिए दरवाजे अब पहले से ज्यादा खुले हुए हैं। मैथिली ठाकुर जैसी सफलता आने वाले वर्षों में और युवाओं को राजनीति की ओर आकर्षित करेगी। बिहार में Gen Z की राजनीति का यह सिर्फ आरंभ है, आने वाले चुनावों में उनकी भूमिका और बड़ी होती दिखेगी।