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11-Oct-2025 01:07 PM
By First Bihar
Bihar Election 2025 : बिहार का चुनावी माहौल हमेशा से राजनीतिक हलचल, रणनीतियों और भावनाओं का संगम रहा है, और 2025 के विधानसभा चुनावों में यह परिदृश्य और भी स्पष्ट हो गया है। इस बार चुनावी गतिविधियाँ तारीखों के ऐलान से पहले ही तेज़ हो गई हैं। उम्मीदवारों द्वारा नामांकन की तारीखें और पोस्टर सार्वजनिक करना एक ऐसा राजनीतिक प्रयोग बन गया है, जहाँ नेता पहले अपनी पकड़ दिखा रहे हैं और बाद में पार्टी और गठबंधन उनसे तालमेल बैठाने को मजबूर होंगे।
विशेष रूप से यह देखा गया है कि कई क्षेत्रीय और बड़े दलों के नेता – भाजपा, जदयू, आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दल – ने सोशल मीडिया, पोस्टर और बैनर के माध्यम से अपनी दावेदारी सार्वजनिक कर दी है। यह कदम चुनावी अनुशासन और गठबंधन रणनीति दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है। स्थानीय प्रभाव दिखाने और समर्थकों को जुटाने के साथ-साथ यह नेताओं को एक तरह की बातचीत या नीतिगत दबाव की स्थिति भी देता है। उनके पास संदेश होता है – "टिकट दो, नहीं तो मैं निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकता हूँ।"
भागलपुर की कहलगांव सीट इस चुनावी रणनीति का सबसे दिलचस्प उदाहरण है। महागठबंधन के दो प्रमुख साथी – आरजेडी और कांग्रेस – ने यहाँ अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। आरजेडी ने रजनीश यादव को तेजस्वी यादव के मंच से उम्मीदवार घोषित किया, जबकि कांग्रेस ने प्रवीण कुशवाहा को हरी झंडी दी। प्रवीण ने 17 अक्टूबर को नामांकन करने का ऐलान भी कर दिया। यह टकराव सिर्फ एक सीट का मामला नहीं है, बल्कि यह महागठबंधन के भीतर असहमति और सीटों के विभाजन की गंभीर चुनौती का प्रतीक बन गया है। यदि इसे समय रहते सुलझाया नहीं गया, तो यह न केवल कहलगांव बल्कि आसपास की सीटों पर भी गठबंधन की छवि को प्रभावित कर सकता है और विरोधी दलों को लाभ दे सकता है।
पहले पर्चा भरने वालों की सूची भी इसी रणनीति को स्पष्ट करती है। मोकामा में अनंत सिंह, साहेबपुर कमाल में सत्तानंद संबुद्ध, परबत्ता में डॉ. संजीव, तारापुर में सकलदेव बिंद और रोहित चौधरी, साहेबगंज में राजू सिंह, वाम दल की मांझी और विभूतिपुर की सीटिंग विधायक, मटिहानी के बोगो सिंह और बख्तियारपुर से अनिरुद्ध यादव, चकाई से सुमित सिंह, घोषी से रामबली सिंह यादव इन सभी ने आधिकारिक घोषणा से पहले ही नामांकन की तारीख घोषित कर दी है। यह दर्शाता है कि कई नेता अपनी स्थानीय पहचान और आधार पर सीधे चुनाव प्रक्रिया में उतरने को तैयार हैं।
इस रणनीति के कई मायने हैं। सबसे पहले, यह स्थानीय प्रभाव दिखाने और समर्थकों को जुटाने का तरीका है। दूसरे, यह उम्मीदवारों को टिकट तय होने के समय बातचीत और समझौते में मजबूरी की स्थिति में रखता है। तीसरे, यह गठबंधन और बड़े दलों में अनुशासन की कमी और निर्णय में देरी को उजागर करता है। अंततः, हाल ही में पार्टी बदल चुके नेताओं के लिए यह मौका अपनी प्रभाविकता दिखाने का भी है।
संक्षेप में, बिहार चुनाव 2025 में पहले नामांकन का खेल केवल व्यक्तिगत दावेदारी नहीं बल्कि राजनीतिक शक्ति, दबाव और गठबंधन रणनीति का नया आयाम बन गया है। यह संकेत देता है कि नेताओं की व्यक्तिगत पकड़ और स्थानीय प्रभाव अब पार्टी अनुशासन और गठबंधन नीति के समक्ष एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है।