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Patna Highcourt: पटना हाईकोर्ट के वकीलों ने कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश का बहिष्कार किया, न्याय में लापरवाही का आरोप

Patna Highcourt: पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने दो वकीलों पर हुए कथित हमले को लेकर न्यायपालिका की निष्क्रियता के विरोध में बड़ा कदम उठाते हुए कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बजंथरी की अदालत का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।

Patna High Court

18-Sep-2025 09:10 AM

By First Bihar

Patna Highcourt: पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने दो वकीलों पर हुए कथित हमले को लेकर न्यायपालिका की निष्क्रियता के विरोध में बड़ा कदम उठाते हुए कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बजंथरी की अदालत का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। यह फैसला उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ सहित विभिन्न वकील संगठनों की समन्वय समिति द्वारा मंगलवार को लिया गया। अधिवक्ताओं का आरोप है कि इस संवेदनशील मामले में अदालत की ओर से उचित कार्रवाई नहीं की गई और पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी हो रही है।


समिति के अनुसार यह निर्णय उस घटना के बाद लिया गया, जिसमें अधिवक्ता अंशुल आर्यन और उनकी पत्नी अधिवक्ता मनोग्या सिंह को कथित रूप से एक निजी स्कूल के कर्मचारियों द्वारा उस समय निशाना बनाया गया जब वे अदालत जा रहे थे। आरोप है कि इस दौरान मनोग्या सिंह के साथ गाली-गलौज और अशोभनीय हरकतें की गईं, वहीं अंशुल आर्यन को शारीरिक चोटें भी आईं। वकील संगठनों का कहना है कि यह केवल दो वकीलों पर हमला नहीं, बल्कि पूरे वकील समाज की गरिमा पर आघात है।


इस घटना को लेकर क्रिमिनल मोशन पीठ को सूचित किया गया था, जिसने 9 सितंबर को रुपसपुर थाना प्रभारी की व्यक्तिगत उपस्थिति का आदेश जारी किया। हालांकि बाद में, कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की अनुमति से रजिस्ट्री को स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक रिट याचिका (Criminal Writ Petition) दर्ज करने को कहा गया। लेकिन जब मामला 10 सितंबर को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बजंथरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिन्हा की पीठ के समक्ष आया, तो उन्होंने पिछली पीठ द्वारा जारी आदेश जिसमें थाना प्रभारी की व्यक्तिगत उपस्थिति मांगी गई थी — को हटाते हुए सुनवाई की दिशा ही बदल दी।


बार प्रतिनिधियों और समन्वय समिति ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि एक समन्वित पीठ द्वारा दिए गए आदेश में किसी अन्य पीठ का हस्तक्षेप न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन है। उनका आरोप है कि अदालत वास्तविक मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है और जानबूझकर मामले को कमजोर करने का प्रयास किया गया। यह न्याय की प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है।


17 सितंबर को हुई सुनवाई में जब अदालत ने दो रिट याचिकाओं की अगली तारीख तय कर दी और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, तो वकीलों में और आक्रोश फैल गया। इसके बाद 18 सितंबर से कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की अदालत का बहिष्कार करने का निर्णय औपचारिक रूप से लिया गया। समिति की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि "अधिवक्ताओं पर हमले जैसे गंभीर मुद्दे पर अदालत ने अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं दिखाई और सुनवाई को जानबूझकर लंबा खींचा जा रहा है।"


बार एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्यों का कहना है कि वे इस निर्णय पर तब तक कायम रहेंगे जब तक अदालत इस मुद्दे को प्राथमिकता से नहीं लेती और निष्पक्ष कार्रवाई सुनिश्चित नहीं होती। वकील संगठनों ने इस मामले को न्यायिक गरिमा और अधिवक्ताओं की सुरक्षा से जुड़ा बताते हुए इसे एक "न्यायिक नैतिकता का परीक्षण" कहा है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि यदि मामले को जल्द नहीं सुलझाया गया, तो वे आगे की रणनीति के तहत हड़ताल या विरोध मार्च जैसे कदम भी उठा सकते हैं।