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24-Apr-2025 08:06 AM
By First Bihar
National Panchayati Raj Day: राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 2025 के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बिहार के मधुबनी जिले के झंझारपुर ब्लॉक में स्थित लोहना उत्तर ग्राम पंचायत में आयोजित मुख्य समारोह में शामिल होंगे। इस दौरान वे देशभर के पंचायत प्रतिनिधियों को संबोधित करेंगे और राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार 2025 प्रदान करेंगे।
इस दिन को मनाने की शुरुआत 2010 में हुई थी, जबकि 73वां संविधान संशोधन 24 अप्रैल 1993 को लागू हुआ था। यह संशोधन पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देता है और ग्राम, ब्लॉक तथा जिला स्तर पर त्रिस्तरीय संरचना सुनिश्चित करता है। इस व्यवस्था के तहत महिलाओं, अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण, नियमित चुनाव, वित्तीय स्वायत्तता और राज्य वित्त आयोग व चुनाव आयोग जैसी व्यवस्थाएं शामिल की गई हैं।
पंचायती राज प्रणाली: जनक, कार्य, बदलाव और सीमाएं
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की नींव बलवंत राय मेहता ने रखी थी। उन्हें इस प्रणाली का जनक माना जाता है। उन्होंने त्रिस्तरीय व्यवस्था,ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद की परिकल्पना की थी, ताकि लोकतंत्र की जड़ें गांव तक मजबूत हों। भारत में 1992 में 73वां संविधान संशोधन लागू होने के बाद पंचायती राज संस्थाएं संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त हुईं। हालांकि, बिहार की स्थिति थोड़ी अलग है।
बिहार में पंचायतों की सीमित शक्तियां
बिहार में पंचायतों के पास कई ऐसे अधिकार नहीं हैं जो अन्य राज्यों की पंचायतों को प्राप्त हैं। कई कार्य आज भी सीधे राज्य सरकार के नियंत्रण में हैं। विशेषकर वित्तीय, प्रशासनिक और न्यायिक स्वायत्तता की भारी कमी देखी जाती है।
बिहार की पंचायती राज प्रणाली के मुख्य कार्य (सीमित दायरे में)
सरकारी योजनाओं का निष्पादन (प्रतिनिधि मात्र): पंचायतों के माध्यम से मनरेगा, नल-जल योजना, स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन इन योजनाओं का बजट, चयन और मॉनिटरिंग मुख्य रूप से सरकारी विभागों और मंत्रालयों से नियंत्रित किया जाता है।
स्थानीय विकास कार्यों की निगरानी: पंचायतें सड़कों, सार्वजनिक भवनों आदि के निर्माण कार्यों पर निगरानी रखती हैं, लेकिन निर्माण का अधिकार अधिकांशतः प्रखंड या जिला स्तर के अधिकारियों के पास होता है।
शिकायतों का समाधान: पंचायत प्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर जन समस्याएं सुनते हैं और उन्हें संबंधित विभागों तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।
ग्राम सभाओं का आयोजन: पंचायतें ग्राम सभा के माध्यम से जनता को योजनाओं की जानकारी देने और फीडबैक लेने का माध्यम बनती हैं।
बिहार में क्या नहीं कर सकती बिहार की पंचायतें?
पंचायतों को कर लगाने का अधिकार नहीं है।
स्वतंत्र बजट और राजस्व जनरेशन की कोई व्यवस्था नहीं है।
न्यायिक अधिकार सीमित या नगण्य हैं।
अधिकतर योजनाएं सिर्फ नाम मात्र के लिए पंचायतों को जिम्मेदारी देकर राज्य सरकार द्वारा चलाई जाती हैं।
बता दे कि बिहार में पंचायती राज व्यवस्था आज भी पूरी तरह सशक्त नहीं हो पाई है। संविधान में दिए गए अधिकारों और जमीनी हकीकत के बीच बड़ा फासला है। जब तक पंचायती संस्थाओं को वास्तविक वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार नहीं मिलते, तब तक यह प्रणाली गांवों के समग्र विकास में सीमित भूमिका ही निभा पाएगी। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस का उद्देश्य पंचायतों की भूमिका को प्रोत्साहित करना, स्थानीय प्रशासन में जनभागीदारी को बढ़ावा देना और ग्रामीण विकास में पंचायतों की भूमिका को सम्मान देना है।