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26-Dec-2025 07:26 AM
By First Bihar
Mokama Politics : बिहार की राजनीति का चस्का जिसे एक बार लग जाए, उसे फिर इस दुनिया से दूर कर पाना बेहद मुश्किल होता है। यह बात यूं ही नहीं कही जाती। बिहार की राजनीति में ऐसे-ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं, जहां एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी सत्ता, दबदबा और जनाधार को संभालते हुए नजर आई है। राजनीतिक पंडित अक्सर कहते रहे हैं कि बिहार में राजनीति केवल पेशा नहीं, बल्कि विरासत बन जाती है। अब इसी बात की एक और बानगी मोकामा की राजनीति में देखने को मिल रही है, जहां बाहुबली नेता और विधायक कहे जाने वाले ‘छोटे सरकार’ अनंत सिंह के घर से सियासत की अगली पारी की आहट साफ सुनाई देने लगी है।
दरअसल, मोकामा के मौजूदा विधायक अनंत सिंह इन दिनों जेल की सलाखों के पीछे हैं। बीच चुनाव पटना पुलिस ने उन्हें एक हत्याकांड मामले में संलिप्त बताते हुए गिरफ्तार किया था। इसके बाद से यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है। मोकामा और आसपास के इलाकों में रहने वाले उनके समर्थक लगातार इस उम्मीद में हैं कि जल्द ही कोर्ट से फैसला अनंत सिंह के पक्ष में आएगा और ‘छोटे सरकार’ एक बार फिर जेल से बाहर निकलकर अपने पुराने अंदाज में जनता के बीच लौटेंगे। फिलहाल सबकी निगाहें न्यायालय के फैसले पर टिकी हुई हैं।
यह तो हुई वह आम बातें, जिन पर लंबे समय से चर्चा चल रही है और जिन पर हर किसी की नजर बनी हुई है। लेकिन इन सबके बीच अब मोकामा की राजनीति में कुछ ऐसा देखने को मिल रहा है, जो अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ‘छोटे सरकार’ की अगली पीढ़ी अब मोकामा की राजनीति में औपचारिक एंट्री करने जा रही है? क्या अनंत सिंह के बाद अब उनके बेटे इस राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं?
अगर आप सोच रहे हैं कि यह सवाल आखिर उठ क्यों रहा है, तो इसकी वजह भी अब किसी से छिपी नहीं है। इन दिनों मोकामा विधायक अनंत सिंह के बेटे अपने पिता के अंदाज में ही इलाके में सक्रिय नजर आ रहे हैं। करीब 50 गाड़ियों के काफिले के साथ वे मोकामा विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग गांवों का दौरा कर रहे हैं। गांव-गांव जाकर जनता से मिलना, उनका हालचाल पूछना, सुख-दुख जानना और उनसे आशीर्वाद लेना—ये सब कुछ वैसा ही है, जैसा अनंत सिंह खुद सालों से करते आए हैं।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों बेटों का अंदाज-ए-बयान और उनका पूरा रवैया बिल्कुल अपने पिता से मिलता-जुलता दिख रहा है। जिस ठसक, दबदबे और आत्मविश्वास के साथ अनंत सिंह जनता के बीच नजर आते थे, वही अंदाज अब उनके जुड़वां बेटे अंकित और अभिषेक में भी दिखने लगा है। यही वजह है कि मोकामा की गलियों और गांवों में अब नारे भी बदलते नजर आ रहे हैं। जो नारे कभी ‘छोटे सरकार जिंदाबाद’ के रूप में गूंजते थे, वही नारे अब ‘अंकित भैया जिंदाबाद’ और ‘अभिषेक भैया जिंदाबाद’ में तब्दील होते दिख रहे हैं।
इतना ही नहीं, अंकित और अभिषेक के साथ वही लोग भी नजर आ रहे हैं, जो लंबे समय से अनंत सिंह के सागिर्द रहे हैं। वही पुराने समर्थक, वही रणनीतिकार और वही लोग, जो कभी ‘छोटे सरकार’ के लिए माहौल तैयार किया करते थे, अब इन दोनों भाइयों के साथ चलते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में जहां-जहां यह दोनों भाई जाते हैं, वहां का माहौल भी कुछ वैसा ही बन जाता है, जैसा पहले अनंत सिंह के आने पर बनता था। लोगों की भीड़, समर्थकों का जोश और पूरे इलाके में चर्चा—सब कुछ पुराने दिनों की याद दिलाता है।
इसके अलावा यह भी साफ देखा जा सकता है कि ये दोनों भाई अपने पिता की तरह ही लोगों से घुल-मिल रहे हैं। स्थानीय नेताओं से मुलाकात, कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें और आम जनता से सीधे संवाद—ये सभी चीजें इस ओर इशारा कर रही हैं कि राजनीति से इनका नाता केवल नाम भर का नहीं है, बल्कि यह धीरे-धीरे मजबूत होता जा रहा है।
गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जब अनंत सिंह से यह सवाल किया गया था कि क्या उनके बेटे राजनीति में आएंगे, तो इस पर उन्होंने काफी सोच-समझकर जवाब दिया था। आमतौर पर बेबाक बोलने वाले अनंत सिंह इस सवाल पर थोड़े गंभीर नजर आए थे। उन्होंने कहा था, “अभी लड़कवा के उम्र नय हय, अगला बेरी हो जतय त लड़तय। अब हमरा उम्र हो गेले हय।” यानी उस वक्त उन्होंने साफ तौर पर संकेत दिया था कि अभी समय नहीं आया है, लेकिन भविष्य में ऐसा हो सकता है।
हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान यह भी देखने को मिला था कि अंकित और अभिषेक पूरे चुनाव में काफी एक्टिव रहे। भले ही अंतिम कुछ दिनों में वे अपनी पढ़ाई-लिखाई को लेकर थोड़े व्यस्त हो गए थे और पढ़ाई के सिलसिले में लंदन चले गए थे, लेकिन इसके बावजूद वे राजनीति से पूरी तरह दूर नहीं हुए। विदेश में रहते हुए भी वे वीडियो कॉल के जरिए अनंत सिंह के समर्थकों और स्थानीय नेताओं के संपर्क में रहे। चुनाव की हर गतिविधि पर उनकी नजर बनी रही और वे रिजल्ट तक पूरे चुनावी माहौल से जुड़े रहे।
बहरहाल, मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि मोकामा की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर खड़ी है। अनंत सिंह भले ही फिलहाल जेल में हों, लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत अब धीरे-धीरे अगली पीढ़ी के कंधों पर आती नजर आ रही है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अंकित और अभिषेक औपचारिक रूप से राजनीति के मैदान में उतरते हैं या फिर यह सब केवल जनसंपर्क तक ही सीमित रहता है। फिलहाल मोकामा की गलियों में यही चर्चा है कि ‘छोटे सरकार’ के बाद अब कौन? और शायद इसका जवाब वक्त के साथ खुद सामने आ जाएगा।