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21-Sep-2025 08:57 AM
By First Bihar
BIHAR NEWS : बिहार में अगले महीने विधानसभा चुनाव को लेकर डुगडुगी बज जाएगी। ऐसे में चुनाव आयोग भी काफी एक्टिव हो जाएगा और नेताओं के भाषण में भी आपको बदलाव दिखने लगेंगे इसकी वजह यह रहेगी की उन्हें आदर्श अचार सहिंता का ख्याल रखना होगा। लेकिन,इससे पहले जब चुनावी माहौल बनाने को लेकर जो रैलियां या यात्रा निकाली जा रही है उसमें शब्दों की मर्यादा किस कदर तार-तार की जा रही है। इस बीच पिछले कुछ दिनों में एक चीज़ देखने को मिल रही है वह कुछ ऐसा है कि विपक्ष की रैलियों में पीएम मोदी की मां को टारगेट किया जा रहा है।
चुनावी मौसम आते ही रैलियों और यात्राओं का दौर तेज हो जाता है। नेता गाँव-गाँव, शहर-शहर पहुंचकर मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश करते हैं। यह परंपरा लोकतंत्र का अहम हिस्सा है। लेकिन हाल के दिनों में एक नया और चिंताजनक ट्रेंड दिखाई दे रहा है। विपक्षी दलों की कई रैलियों और सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां, को लेकर टिप्पणी की जा रही है। राजनीति में विरोधी दलों पर तीखा हमला करना और उनकी नीतियों पर सवाल उठाना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह हमला निजी जीवन या परिवार तक पहुंच जाए तो यह लोकतांत्रिक मर्यादा का उल्लंघन माना जाता है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, पिछले कुछ दिनों में विपक्ष की कई सभाओं और रैलियों में कुछ नेताओं ने पीएम मोदी की मां का नाम लेकर बयान दिए हैं। किसी ने उनकी आर्थिक स्थिति को राजनीति में हथियार बनाया, तो किसी ने उन्हें राजनीतिक बहस का हिस्सा बना दिया। यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सार्वजनिक मंचों से यह कह चुके हैं कि उनकी मां एक साधारण महिला थीं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में परिवार का पालन-पोषण किया। मोदी ने उन्हें अपने संघर्ष और जीवन की प्रेरणा बताया है। लेकिन अब विपक्षी नेताओं द्वारा उनकी मां को निशाना बनाना कहीं न कहीं जनता की भावनाओं को भी आहत कर रहा है।
जैसे ही चुनाव की घोषणा होगी, आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि नेताओं को अपने भाषणों में व्यक्तिगत हमले, धार्मिक या जातीय भावनाओं को भड़काने वाले बयान और मर्यादा से बाहर की बातें कहने पर रोक होगी। चुनाव आयोग इस पर नजर रखेगा। लेकिन फिलहाल, जब तक चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं होता, तब तक इन पर अंकुश लगाना मुश्किल है। यही वजह है कि विपक्षी नेताओं को लगता है कि वे खुलकर आक्रामक बयानबाजी कर सकते हैं।
अब हम आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि हाल के दिनों में ही किस तरह से पीएम मोदी की मां को टारगेट किया गया है। सबसे पहले जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा कर रहे थे तो दरभंगा में एक सभा में पीएम मोदी को गाली दिया गया था। उसके बाद जमकर हंगामा हुआ और भाजपा के तरफ से आधे दिन का बिहार बंद भी बुलाया गया। इसके बाद कांग्रेस के तरफ से पीएम मोदी की मां को लेकर AI वीडियो बनाया गया है। इसके बाद भी हंगामा हुआ और मामला कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने आदेश दिया की इस वीडियो को हटाया जाए। इसके बाद अब तेजस्वी के कार्यक्रम में वापस से कल पीएम मोदी की मां को लेकर गलत शब्दों का उपयोग किया गया।
भाजपा और एनडीए के नेताओं ने विपक्ष पर इस तरह के बयानों को लेकर तीखा पलटवार किया है। उनका कहना है कि राजनीति में वैचारिक मतभेद होना अलग बात है, लेकिन किसी की मां को निशाना बनाना नैतिकता के खिलाफ है। भाजपा नेताओं ने जनता से अपील की है कि ऐसे नेताओं को चुनाव में सबक सिखाना चाहिए, जो राजनीतिक बहस को व्यक्तिगत हमलों में बदल रहे हैं। सत्ताधारी पक्ष यह भी तर्क दे रहा है कि विपक्ष के पास जनता के सामने कोई ठोस मुद्दा नहीं है, इसलिए वह निजी जीवन और परिवार को निशाना बना रहा है।
वहीं, विपक्षी दलों की दलील है कि वे केवल यह दिखाना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस पृष्ठभूमि से आए और आज वह किस स्थान पर पहुंचे हैं। विपक्ष का कहना है कि भाजपा खुद अक्सर गरीब परिवार से आने वाले प्रधानमंत्री की छवि गढ़कर राजनीतिक लाभ उठाती है, ऐसे में उनकी मां का जिक्र राजनीति का हिस्सा बन ही जाता है। हालांकि, विपक्ष के भीतर भी कुछ नेताओं ने माना है कि सीधे तौर पर किसी की मां को निशाना बनाना गलत है और इससे जनता में गलत संदेश जा रहा है।
बिहार की जनता इस पूरे विवाद को मिश्रित नजरिए से देख रही है। ग्रामीण इलाकों में लोग कहते हैं कि नेताओं को मुद्दों पर बहस करनी चाहिए, न कि किसी की मां या परिवार को लेकर। वहीं, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि राजनीति में प्रधानमंत्री की पृष्ठभूमि पर चर्चा होना स्वाभाविक है। लेकिन व्यापक रूप से देखा जाए तो जनता यह चाहती है कि चुनाव विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था जैसे असली मुद्दों पर लड़ा जाए। निजी हमले केवल गंदी राजनीति की छवि पेश करते हैं।
इस तरह की बयानबाजी ने बिहार के चुनावी माहौल को और गरमा दिया है। हर दिन कोई न कोई नेता बयान देता है, और अगले दिन उसका जवाब किसी और मंच से आता है। सोशल मीडिया पर भी इस पर जमकर बहस हो रही है। भाजपा समर्थक इस तरह की टिप्पणियों को “मां के अपमान” से जोड़कर लोगों से भावनात्मक अपील कर रहे हैं, जबकि विपक्षी कार्यकर्ता तर्क दे रहे हैं कि भाजपा खुद बार-बार प्रधानमंत्री की मां का नाम वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है।
यह विवाद आने वाले चुनाव में रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकता है। सत्ता पक्ष भावनात्मक मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगा, वहीं विपक्ष को यह देखना होगा कि उनकी बयानबाजी कहीं उल्टा असर न डाल दे। खासकर ग्रामीण और पारंपरिक समाज वाले बिहार में “मां” शब्द बेहद सम्मान और संवेदनाओं से जुड़ा है। ऐसे में इस मुद्दे पर गलत कदम विपक्ष के लिए भारी पड़ सकता है।
बिहार में विधानसभा चुनाव अभी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं हुआ है, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर है। रैलियां और यात्राएं लगातार आयोजित हो रही हैं। नेताओं के भाषणों में आक्रामकता और तीखापन दिख रहा है। लेकिन जिस तरह से पीएम मोदी की मां को निशाना बनाया जा रहा है, वह राजनीतिक मर्यादा पर सवाल खड़े करता है। लोकतंत्र में बहस और आलोचना जरूरी है, परंतु व्यक्तिगत और पारिवारिक हमले न केवल राजनीति की गरिमा को कम करते हैं, बल्कि जनता में भी गलत संदेश देते हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव आयोग कब तक इस तरह की बयानबाजी पर रोक लगाता है और नेता कब तक अपनी जुबान पर काबू रखते हैं। आने वाले हफ्तों में बिहार का चुनावी मैदान और भी गरमाएगा, लेकिन उम्मीद यही की जाती है कि बहस असली मुद्दों पर हो, न कि किसी की मां या परिवार पर।