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04-Sep-2025 06:06 PM
By First Bihar
Bihar News: बिहार के पारंपरिक खादी उत्पाद अब सिर्फ स्थानीय बाजारों तक सीमित नहीं रहे बल्कि डिजिटल दुनिया में भी अच्छी तरह से छा गए हैं। बिहार राज्य खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड का ऑनलाइन पोर्टल बिहारखादी.कॉम (biharkhadi.com) इन उत्पादों को देशभर में पहुंचा रहा है और खासकर दक्षिण भारत के राज्यों में इनकी डिमांड आसमान छू रही है।
ई-कॉमर्स टीम के मोहम्मद अफजल आलम ने बताया है कि दक्षिण क्षेत्र ने कुल बिक्री का 34% योगदान दिया है, जिसमें तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटका और केरल के खरीदार प्रमुख हैं। तमिलनाडु में खादी सिल्क साड़ियां और बिहारी गमछे की खूबियों ने लोगों को ख़ासा आकर्षित किया है। हाल के आंकड़ों से साफ है कि खादी अब फैशन का हिस्सा बन गया है और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ने इसे गांवों से शहरों तक ले जाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
दक्षिण भारत के बाद उत्तर भारत में बिहार खादी की बिक्री 28% रही, जहां बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग पारंपरिक खादी कुर्ते, दुपट्टे और गमछे खरीदने में सबसे आगे हैं। पूर्व भारत में 10% हिस्सा है, जिसमें पश्चिम बंगाल ने सबसे ज्यादा ऑर्डर दिए हैं। यहां खादी की सांस्कृतिक अपील काफी बढ़ रही है। पश्चिम भारत में 15% मांग देखी गई, महाराष्ट्र में तो गमछे और सिल्क साड़ियां लोकल स्टाइल के साथ मिक्स हो रही हैं।
बोर्ड के प्रयासों से खादी उत्पादों की ब्रांडिंग मजबूत हुई है और सरकारी प्रचार ने इसे आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक बना दिया है। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु के को-ऑप्टेक्स जैसे लोकल हैंडलूम ब्रांड्स भी बिहार खादी से इंस्पायर्ड प्रोडक्ट्स बेच रहे हैं जो इसकी लोकप्रियता का सबूत है।
बिहारी गमछा और सिल्क साड़ियां ऑनलाइन बेस्टसेलर बन चुके हैं। गमछा जो बिहार की ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक है अब तमिलनाडु के युवाओं में टॉप्स और एक्सेसरी के रूप में पॉपुलर हो रहा है। सिल्क साड़ियां अपनी चमक और ड्यूरेबिलिटी से दक्षिणी राज्यों में वेडिंग वियर के तौर पर हिट हैं।
बोर्ड के पोर्टल पर ये प्रोडक्ट्स 500 से 5,000 रुपये के रेंज में उपलब्ध हैं और फ्री शिपिंग ने बिक्री को बूस्ट दिया है। दक्षिण भारत की मांग से बिहार के लाखों कारीगरों को रोजगार मिला है और ई-कॉमर्स ने मिडिलमैन को हटाकर डायरेक्ट बेनिफिट दिया। हाल के ट्रेंड्स दिखाते हैं कि खादी की सेल्स 2024 से 2025 में 25% बढ़ी है।