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09-May-2025 04:48 PM
By First Bihar
Bihar News: बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी राजगीर में छिपे इतिहास की परतें अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सामने लाई जाएंगी। शिक्षा, संस्कृति और पुरातत्व की दृष्टि से विश्व में प्रसिद्ध इस क्षेत्र के गौरवशाली अतीत को प्रमाणित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की छह सदस्यीय वैज्ञानिक टीम ने लिडार (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) तकनीक से सर्वेक्षण शुरू कर दिया है।
यह सर्वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के निर्देश पर किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य नालंदा विश्वविद्यालय और राजगीर के प्राचीन विस्तार, संरचनाओं और सांस्कृतिक विरासत की सटीक जानकारी जुटाना है। गुरुवार को इसरो की टीम ने सर्वेक्षण की शुरुआत अजातशत्रु किला मैदान से की, जहां सबसे पहले किले की सीमाओं का पता लगाया गया।
लिडार एक अत्याधुनिक रिमोट सेंसिंग तकनीक है, जो लेजर बीम के माध्यम से धरती की सतह के नीचे की संरचनाओं, उनकी ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई तथा भौगोलिक वितरण का सटीक त्रि-आयामी (3D) मानचित्र तैयार करती है। यह तकनीक घने जंगलों और अव्यवस्थित इलाकों में भी ज़मीन के नीचे छिपी संरचनाओं की पहचान करने में सक्षम है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे अजातशत्रु किले के साथ-साथ साइक्लोपियन दीवार, प्राचीन जलस्रोत, पथ, मंदिर और अन्य धरोहरों के आकार और निर्माण तकनीक का पता लगाया जाएगा।
राजगीर की प्रसिद्ध साइक्लोपियन दीवार, जो विशाल पत्थरों से बिना किसी जोड़ के बनाई गई है, इतिहासकारों के अनुसार चीन की महान दीवार से भी प्राचीन है। इस दीवार और इसके आस-पास के क्षेत्रों का लिडार सर्वे कर यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि इसे किस तकनीक से और किस कालखंड में बनाया गया था।
एएसआई के अनुसार, अजातशत्रु किले की खुदाई 117 वर्षों बाद फिर से प्रारंभ हुई है। खुदाई का यह वृहत मास्टरप्लान एएसआई पटना मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. सुजीत नयन द्वारा तैयार किया गया है। उनके नेतृत्व में मैदान की खुदाई में अब तक कई ऐतिहासिक संकेत मिले हैं, जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि के लिए अब इसरो की टीम ने कार्यभार संभाला है।
इसरो की छह सदस्यीय टीम देहरादून स्थित IIRS (Indian Institute of Remote Sensing) से आई है। इसमें डॉ. हीना पांडेय, डॉ. पूनम एस. तिवारी, डॉ. शशि कुमार, एस. अग्रवाल सहित अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं। टीम ने गुरुवार को किला मैदान में ड्रोन के माध्यम से लिडार स्कैनिंग शुरू की, जिससे प्रशासनिक अधिकारियों को पहले भ्रम हुआ, लेकिन स्थिति स्पष्ट होने पर कार्य सुचारु रूप से शुरू हुआ।
यह लिडार सर्वे केवल भारतीय इतिहास को ही नहीं, बल्कि वैश्विक शोध जगत को भी नया संदर्भ देगा। नालंदा विश्वविद्यालय, जो कभी विश्व शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था, उसके वास्तविक फैलाव, भवन संरचना और स्थापत्य ज्ञान को जानने में यह सर्वे उपयोगी साबित होगा। इससे प्राप्त आंकड़े न केवल इतिहासकारों को सटीक डेटा देंगे, बल्कि आने वाले समय में पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण के कार्यों में भी सहायक होंगे।