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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 21 Nov 2025 12:54:15 PM IST
बिहार की राजनीतिक - फ़ोटो GOOGLE
बिहार में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद सियासी गलियारों में चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच रिश्तों पर फिर चर्चा तेज हो गई है। केंद्रीय मंत्री और लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने शुक्रवार को पटना स्थित पार्टी कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पारस द्वारा दी गई बधाई पर प्रतिक्रिया दी। चिराग ने कहा कि उनके चाचा ने कभी उन्हें गाली दी थी, चांडाल कहा था, लेकिन उन्होंने तब भी उन शब्दों को आशीर्वाद की तरह स्वीकार किया था क्योंकि बड़े-बुजुर्गों की हर बात आदरयोग्य होती है। अब जब पारस खुले तौर पर बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत की बधाई दे रहे हैं, तो उनकी शुभकामनाएं भी वह पूरा सम्मान देकर स्वीकार करते हैं।
प्रेस वार्ता के दौरान चिराग ने अपने चाचा पर कड़ा हमला भी बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि पशुपति पारस ने न केवल लोजपा को बांटा बल्कि दिवंगत रामविलास पासवान के गैर-राजनीतिक संगठन दलित सेना को भी हड़पने की कोशिश की। चिराग ने कहा कि उनके पिता की राजनीतिक विरासत और सामाजिक संघर्ष किसी एक गुट या व्यक्ति तक सीमित नहीं है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि पारस की राजनीति अब पूरी तरह कमजोर पड़ चुकी है और जनता ने चुनाव परिणामों में इसे साफ कर दिया।
बिहार चुनाव में एनडीए की भारी जीत के बाद पशुपति पारस ने चिराग पासवान को दो बार बधाई दी थी, जो राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी रही। बीते रविवार को दो घंटे के अंतराल में उन्होंने दो पोस्ट किए—पहले में उन्होंने एनडीए के सभी नेताओं को सामूहिक रूप से जीत की बधाई दी, और दूसरे में चिराग को अलग से व्यक्तिगत बधाई दी। इसे कई लोगों ने पारस की "राजनीतिक नरमी" या "संबंध सुधारने की कोशिश" के रूप में भी देखा।
रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा में दरार गहराती चली गई थी। पारस ने चार अन्य सांसदों के साथ मिलकर पार्टी को दो हिस्सों में बांट दिया और खुद नई पार्टी रालोजपा के प्रमुख बने। इसके बाद वे केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री भी बने। दूसरी ओर चिराग राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ गए थे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने फिर से एनडीए में वापसी की और उसी चुनाव में उनकी पार्टी को पांच सीटें मिलीं, सभी सीटों पर चिराग के उम्मीदवारों की जीत के बाद केंद्र में उन्हें मंत्री बनाया गया।
वहीं, पारस की राजनीतिक स्थिति लगातार कमजोर होती चली गई। रालोजपा ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा और बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पारस ने एनडीए से अलग होने का ऐलान किया। चर्चा यह भी थी कि वे महागठबंधन में शामिल होंगे, लेकिन बात बनी नहीं। अंततः उन्होंने अकेले चुनाव लड़ा और कोई भी सीट नहीं जीत सके, जिससे उनकी राजनीतिक जमीन और कमजोर हो गई।
ऐसे समय में चिराग को पारस की बधाई एक राजनीतिक संदेश की तरह देखी जा रही है। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पारस अपनी खोई हुई सियासी जमीन वापस पाना चाहते हैं, जबकि चिराग पासवान अपनी मजबूत स्थिति और एनडीए में बढ़ती स्वीकार्यता के कारण अब पहले से कहीं अधिक आत्मविश्वास में हैं। यह भी माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में पासवान परिवार की राजनीति नई दिशा ले सकती है।