DESK: अमेरिका में सफल आईटी कंसल्टेंसी चलाने वाले एक भारतीय मूल के व्यक्ति को शादी और तलाक के चलते भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस व्यक्ति ने पहले अपनी पहली पत्नी को नवंबर 2020 में 500 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दूसरी पत्नी को 12 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया है। लेकिन दूसरी बीवी ने यह सवाल कर दिया कि पहली पत्नी को 500 करोड़ मिले तो मुझे सिर्फ 12 करोड़ रुपये ही क्यों दिया जा रहा है।
दरअसल इस व्यक्ति की दूसरी शादी 31 जुलाई 2021 को हुई थी, लेकिन कुछ ही महीनों में टूट गई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी "पूरी तरह से टूट चुकी" शादी को रद्द करने की मांग की थी। उनकी दूसरी पत्नी ने स्थायी गुजारा भत्ते की मांग करते हुए कहा कि उसे भी पहली पत्नी के बराबर भुगतान मिलना चाहिए, यानी 500 करोड़ रुपये।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और पंकज मिथल की पीठ ने दूसरी पत्नी की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि पहली पत्नी के साथ कई सालों के वैवाहिक जीवन की तुलना दूसरी पत्नी के कुछ महीनों के रिश्ते से नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपने 73 पेज के फैसले में लिखा कि "हमें उस प्रवृत्ति पर सख्त आपत्ति है जहाँ लोग अपने जीवनसाथी की संपत्ति, हैसियत और आय के आधार पर समान धनराशि की मांग करते हैं।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर अलग होने के बाद जीवनसाथी की संपत्ति कम हो जाए, तो ऐसी मांगें क्यों नहीं की जातीं?
अदालत ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ते का मकसद अलग हुई पत्नी को बेसहारा होने से बचाना, उसकी गरिमा बनाए रखना और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है। अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार, पत्नी को यथासंभव वैसी ही जीवनशैली में रहने का हक है जैसी वह शादी के दौरान अपने वैवाहिक घर में रहती थी। लेकिन तलाक के बाद पति से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह जीवन भर अपनी वर्तमान स्थिति के अनुसार पत्नी का खर्च उठाता रहे।
अदालत ने यह भी तर्क दिया कि अगर पति तलाक के बाद अपने जीवन में बेहतर कर रहा है, तो उससे यह कहना कि वह हमेशा पत्नी की स्थिति को अपनी बदलती स्थिति के अनुसार बनाए रखे, उसकी व्यक्तिगत प्रगति पर एक तरह का बोझ होगा। अदालत ने प्रतिप्रश्न किया कि "अगर पति दुर्भाग्यवश तलाक के बाद गरीब हो जाए, तो क्या पत्नी अपनी संपत्ति को बराबरी पर लाने की मांग करेगी?"
सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी पत्नी के लिए ₹12 करोड़ के गुजारा भत्ते को उचित ठहराया और स्पष्ट किया कि यह राशि उसकी जरूरतों और स्थिति को ध्यान में रखकर तय की गई है। अदालत ने अंत में यह स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता सामाजिक न्याय और गरिमा की रक्षा के लिए है, न कि जीवनसाथी की संपत्ति के साथ बराबरी करने के लिए। इस प्रकार, "पहली बीवी को 500 करोड़ मिले, मुझे भी इतने ही चाहिए" की दूसरी पत्नी की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।