सुप्रीम कोर्ट के डर से शराबबंदी कानून में बदलाव: बिहार सरकार ने कोर्ट में जवाब दाखिल किया

सुप्रीम कोर्ट के डर से शराबबंदी कानून में बदलाव: बिहार सरकार ने कोर्ट में जवाब दाखिल किया

DELHI: बिहार की नीतीश सरकार ने मंगलवार को आनन फानन में शराबबंदी कानून में संशोधन का विधेयक कैबिनेट से पास करा लिया। लेकिन कैबिनेट की बैठक से पहले ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दिया था कि वह शराबबंदी कानून में बदलाव करने जा रही है ताकि कोर्ट पर पड़ा मुकदमों का भारी बोझ कम हो सके. दरअसल मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट में शराबबंदी मामले की सुनवाई होनी थी. सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी कानून के कारण दर्ज हो रहे मुकदमों के कारण न्यायिक प्रणाली के चरमराने पर गहरी नाराजगी जताते हुए बिहार सरकार से जवाब तलब किया था।


मंगलवार को बिहार सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कोर्ट में जवाब दाखिल किया. बिहार सरकार की ओर से कोर्ट को कहा गया कि जिन मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जतायी थी उनके निराकरण के लिए शराबबंदी कानून में संशोधन किया जा रहा है. मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा- “सीनियर अधिवक्ता रंजीत कुमार ने बिहार सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि कानून को और प्रभावी बनाने के लिए और इसके दुष्परिणामों से निपटने के लिए शराबबंदी कानून में संशोधन किया जा रहा है. हम जानना चाहेंगे कि शराबबंदी कानून लागू करने से पहले कौन सा विधायी अध्ययन किया गया था.”


सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस टिप्पणी के साथ मामले को अगली तारीख तक के लिए टाल दिया. सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करने के बाद बिहार कैबिनेट की बैठक में शराबबंदी कानून में संशोधन का प्रस्ताव पारित किया गया. सरकार अब इसे विधानमंडल में पेश कर पारित करायेगी। 


क्या हुआ है संशोधन

2016 में लागू हुए शराबबंदी कानून में दूसरी दफे संशोधन किया जा रहा है. सरकार ने अब ताजा प्रावधान ये किया है कि पहली बार शराब पीते पकड़े जाने पर कोर्ट में पेश करने की जरूरत नहीं होगी. शराब के मामलों का ट्रायल सरकार के एक्जक्यूटिव मजिस्ट्रेट, डिप्टी कलेक्टर या इससे उपर के रैंक के अधिकारियों के सामने होगा. ये अधिकारी ही पहली बार शराब पीते पकड़े गये व्यक्ति को बेल दे देंगे. वहीं पहली बार प्राइवेट छोटी गाडियों में अगर कम मात्रा में शराब मिलेगी तो उसे जब्त नहीं किया जायेगा बल्कि जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जायेगा। 


उधर सरकार ने शराब की बिक्री को संगठित अपराध की सूची में शामिल किया है. य़ानि अब जो शराब बेचेंगे उनकी संपत्ति जब्त कर ली जायेगी. सरकार ने पुलिस को असीमित अधिकार देते हुए प्रावधान किया है कि एएसआई रैंक का अधिकारी भी शराब बरामद होने वाली जगह को सील कर सकेगा। 


क्यों किया बदलाव

सरकार ने ये फैसला सुप्रीम कोर्ट में होने वाली फजीहत के डर से किया है. गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तीखे सवाल उठाये थे. सुप्रीम कोर्ट शराबबंदी के कारण बिहार में बेतहाशा मुकदमों से नाराज है. पिछले महीने कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि उसने ये कानून लागू करने से पहले क्या यह देखा था कि इतने मुकदमों का बोझ झेलने के लिए अदालती ढांचा तैयार है या नहीं. अगर सरकार ने इस तरह का कोई अध्ययन किया था तो शराबबंदी के मामलों की सुनवाई के लिए कोर्ट और जजों की संख्या बढ़ाने को लेकर कौन से कदम उठाये गये।


बता दें कि बिहार के शराबबंदी कानून को लेकर सुधीर कुमार यादव उर्फ सुधीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिहार में शराबबंदी के मामले बड़ी तादाद में उनके पास भी आ रहे हैं. बिहार की निचली अदालतों में शराबबंदी से जुड़े मुकदमों की काफी बड़ी संख्या है. हालत तो ये है कि पटना हाई कोर्ट के 16 जजों को इस कानून से जुड़े जमानत के मामले सुनने पड़े हैं. कोर्ट अगर आरोपियों को ज़मानत देने से मना करती है तो इससे जेलों में भी भीड़ बढ़ेगी. मौजूदा परिस्थितियों में ये जानना जरूरी हो जाता है कि शराबबंदी कानून लागू करते समय क्या बिहार सरकार ने कोई अध्ययन किया था. क्या सरकार ने ये देखा था कि मौजूदा न्यायिक ढांचा इसके लिए तैयार है या नहीं।