PATNA : अभी नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार को फिसड्डी राज्य का दर्जा मिल चुका है. इस पर राजनीति गर्म है ही. इसके बाद एक और रिपोर्ट नीतीश सरकार के लिए टेंशन पैदा करने वाली है. साथ ही विपक्ष को और मुद्दा देने वाली है. सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकानामी की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार में बेरोजगारी बढ़ी है.
अक्टूबर के 13.9 प्रतिशत की तुलना में नवंबर में 14.8 प्रतिशत बेरोजगारी दर दर्ज की गई है. सितंबर के 10 प्रतिशत से तुलना करें तो दो महीने के भीतर बेरोजगारी दर में 4.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. हालांकि नवंबर में देश के कई अन्य राज्यों में भी बेरोजगारी दर बढ़ी. साधन संपन्न हरियाणा इस मामले में शीर्ष पर रहा. वहां 29.3 प्रतिशत बेरोजगारी दर दर्ज की गई है.
वैसे अन्य राज्यों की तुलना करें तो हरियाणा के अलावा राजस्थान और जम्मू कश्मीर से बिहार की हालत अच्छी है. जम्मू-कश्मीर में 21.4 और राजस्थान में बेरोजगारी दर 20.4 प्रतिशत है. वहीं बिहार की तुलना में झारखंड की स्थिति ठीक कही जा सकती है. झारखंड में यह 11. 2 प्रतिशत है.
बिहार में बेरोजगारी बढ़ने के मुख्यतः दो कारण सामने आये हैं. पहला असंगठित क्षेत्र में काम की कमी. मनरेगा के तहत चालू वित्तीय वर्ष में 20 करोड़ श्रम दिवस सृजित करने का लक्ष्य रखा गया था. वित्तीय वर्ष के आठ महीने में यानी नवम्बर तक सिर्फ 11 करोड़ श्रम दिवस सृजित हो पाए. यह लक्ष्य का 55 प्रतिशत है.
बेरोजगारी का दूसरा कारण निर्माण क्षेत्र की सुस्ती है. बालू की कमी के कारण यह क्षेत्र लगभग साल भर से सुस्त चल रहा है. निजी निर्माण के अलावा सरकारी निर्माण भी प्रभावित हो रहा है. राज्य सरकार ने बालू खनन के लिए नया पट्टा दिया है. अगर बालू की उपलब्धता सहज हुई तो इस क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को रोजगार के अवसर मिल सकते हैं. बालू के अलावा अन्य निर्माण सामग्रियों की कीमतों में वृद्धि भी इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को कम कर रही है.