PATNA : टोक्यो ओलंपिक के समापन के बाद बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का दर्द छलका है. उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट से पोस्ट लिखकर बिहार का ओलंपिक में प्रतिनिधित्व नहीं होने पर निराशा जाहिर की है. उन्होंने पूर्व खिलाड़ी होने के नाते अबतक बिहार सरकार को खेलकूद में प्रोत्साहन देने के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं करने पर कोसा भी है.
तेजस्वी ने लिखा कि बिहार में अबतक खेल कूद को बढ़ावा देने के लिए बस खानापूर्ति ही की गई है. बिहार में खेल यूनिवर्सिटी, खेल कूद से जुड़े विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना, प्रशिक्षण सुविधाओं और सरकार की ओर से किसी भी रूप में प्रोत्साहन या सकारात्मक पहल नहीं होने की वजह से ही यहां के बच्चे अपने अन्दर के हुनर को सही ढंग से नहीं निखार पाते हैं. उनके अभिभावक भी समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण उन्हें प्रोत्साहित नहीं कर पाते हैं. जिन बिहारी मूल के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है, वह उन्होंने दूसरे राज्यों से ट्रेनिंग लेकर, वहां का प्रतिनिधित्व कर के ही पाई है.
तेजस्वी ने कहा कि किसी भी प्रदेश में खेलों और अच्छे खिलाड़ियों के होने या नहीं होने की ज़िम्मेवारी राजनीति और सरकार का ही अंग है. यह बिहार के सभी राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए एक विचार करने का विषय है. उन्होंने निराशा जाहिर करते हुए लिखा कि बिहार में ना तो कभी ज़मीनी स्तर पर काम करते हुए प्रतिभा को निखारने का प्रयास किया गया, ना खेल कूद को प्रोत्साहन देने के लिए उचित धनराशि आवंटित की गई और ना ही प्रतिभा निखारने के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया जिसकी वजह से यहां के लोगों में टैलेंट होने के बाद भी उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं मिल पाया.
तेजस्वी ने बताया कि विधानसभा चुनाव के समय उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एक 'नई खेल नीति' को शामिल किया था जिसमें एक समयबद्ध सीमा के अंदर पूरे दृढ़ निश्चय से खेल कूद का विकास, खेलों के लिए विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना, खिलाड़ियों के लिए रहने, खाने-पीने और यात्रा करने की समुचित व्यवस्था, प्रोत्साहन राशि और अन्य सुविधाएं सुनिश्चित करने की बात कही गई थी.
नेता प्रतिपक्ष ने कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकार ने राजद के घोषणापत्र का अध्ययन कर उसमें उल्लेखित बिहार में खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग को हाल ही में स्वीकृति तो दे दी लेकिन यूनिवर्सिटी का निर्माण कबतक हो पाएगा, यह देखने वाली बात होगी. तेजस्वी ने कहा कि सरकार कितनी ईमानदारी से इस राज्य में खेल के विकास को प्रतिबद्ध रहती है या इसके द्वारा भाई-भतीजावाद और क्षेत्रवाद कर अपने लोगों को वहां स्थापित करने या सरकारी फंड का दुरुपयोग करने का हथकंडा बनाती है, यह देखने वाली बात होगी?
तेजस्वी ने कहा कि मणिपुर, हरियाणा और पंजाब जैसे छोटे और कहीं ज्यादा कम आबादी वाले राज्य खेल कूद के मामले में बिहार से बहुत ही आगे है. हरियाणा और पंजाब में एक निर्धारित स्तर पर नाम कमाने पर सरकारी नौकरी दी जाती है और अच्छा करने पर पदोन्नति भी दी जाती है. बिहार में स्पोर्ट्स कोटा के नाम पर नौकरी तो है, पर उससे सरकार के क़रीबी लोगों को ही जैसे तैसे लाभ पहुंचाया जाता है. मणिपुर, जो एक छोटा राज्य है, वह दिखाता है कि अगर खेल कूद को संस्कृति का हिस्सा बना दिया जाए तो प्रतिभा स्वयं आगे आने लगती है.
अंत में तेजस्वी ने कहा कि बिहार में टैलेंट की कमी नहीं है. अगर यहां के लोगों को भी मौका दिया जाएगा तो वे ज़रूर पूरे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बिहार का नाम रौशन करेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार को हर संभव प्रयास कर जाति-धर्म से ऊपर उठकर बिहार में भी खेल कूद की संस्कृति का विकास करना होगा. इसे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना होगा. बिहार सरकार की विभिन्न योजनाओं और प्रयासों से इच्छुक प्रतिभाओं को यह संदेश देना चाहिए कि खेल में अपना जीवन झोंकने से किसी भी सूरत में वे नुकसान की स्थिति में नहीं रहेंगे. सिर्फ़ खेल और खिलाड़ी ही नहीं, कोचों के प्रशिक्षण के लिए भी व्यापक स्तर पर प्रयास होने चाहिए. प्रशिक्षकों की एक बड़ी सेना तैयार कर उनसे गांव-गांव और स्कूल-स्कूल जाकर टैलेंट स्काउट के रूप में छोटी उम्र में ही प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें प्रशिक्षण दिलवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए.
उन्होंने माता-पिता और शिक्षकों से भी अपील करते हुए कहा कि जीवन में खेलकूद और स्वास्थ्य के महत्व को समझना होगा, आगे अपने बच्चों और विद्यार्थियों को इसे समझाना होगा. खेल कूद ना सिर्फ हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाते है, बल्कि चुनौतियो का सामना करना, तालमेल बिठाना, लक्ष्य साध कर मेहनत करना और एक दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ना सिखाती है. व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए खेलो के महत्व को बिहारवासियों और व्यवस्था को समझना ही पड़ेगा.