सचमुच में नहीं सुनते नीतीश के अफसर: फोन पर फोन करते रह गए मंत्री, DIG साहब ने नहीं दिया भाव

सचमुच में नहीं सुनते नीतीश के अफसर: फोन पर फोन करते रह गए मंत्री, DIG साहब ने नहीं दिया भाव

PATNA : नीतीश सरकार में मंत्रियों की हैसियत क्या है, ये बिहार के एक मंत्री ने खुद बता दिया. बिहार में अफसरशाही का हाल ऐसा है कि मुख्य सचिव, डीजीपी या प्रधान सचिव तो दूर डीएम, एसपी या डीआईजी भी नेता-मंत्री को कोई भाव नहीं देते. बिहार सरकार के मंत्री फोन पर फोन करते रह जाते हैं लेकिन अधिकारी घंटी सुनकर नीतीश के मंत्री को यूं इग्नोर कर देते हैं. जैसे कि मंत्रियों की कोई हैसियत ही नहीं.


पिछले दिनों बिहार सरकार के मंत्री मदन सहनी ने यह बताया कि नीतीश सरकार में मंत्रियों की हैसियत क्या है. और अब ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने भी इस चीज को दोहराया. दरअसल मंत्री मंत्री श्रवण कुमार कल एक दीजीआई के फेरे में फंस गए. एक फरियादी की शिकायत पर बेगूसराय के डीआईजी राजेश कुमार को मंत्री मंत्री श्रवण कुमार फोन पर फोन करते रह गए लेकिन डीआईजी ने कोई भाव ही नहीं दिया. ठीक उसी तरह जैसे सीएम नीतीश के प्रधान सचिव चंचल कुमार ने समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी के साथ किया था. 


बिहार सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने कल एक फरियादी की शिकायत पर बेगूसराय के डीआईजी राजेश कुमार को चार-पांच बार फोन किया. लेकिन डीआईजी साहब ने फोन रिसिव नहीं किया और न ही उन्होंने वापस मंत्री को कॉल किया. ये वाकया कहीं और का नहीं बल्कि नीतीश कुमार की पार्टी के प्रदेश कार्यालय का है, जहां उनके मंत्री जनता दरबार लगाते हैं. मंत्री श्रवण कुमार जन-सुनवाई कार्यक्रम में लोगों की शिकायत सुन रहे थे और इस दौरान उन्होंने बेगूसराय के पुलिस उप महानिरीक्षक राजेश कुमार को कई बार फोन किया था. 


मंत्री श्रवण कुमार ने इस संबंध में बताया कि एक फरियादी पहले भी आया था, जिसके कहने पर वे डीआईजी को पत्र लिखे थे. फरियादी ने इस बार शिकायत की कि मंत्री के पत्र के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इसके बाद मंत्री ने डीआईजी को फोन लगाया पर बात नहीं हो सकी. क्योंकि कई बार कॉल करने पर भी उन्होंने फोन का कोई जवाब ही नहीं दिया. इस दौरान जन-सुनवाई कार्यक्रम में जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा और ग्रामीण कार्य मंत्री जयंत राज भी मौजूद थे.


बिहार में हावी अफसरशाही के उदाहरण की फेहरिस्त इतनी छोटी नहीं है. विपक्ष तो बाद में उससे पहले सत्ता पक्ष और सत्तारूढ़ दलों के नेताओं और पदाधिकारियों की लिस्ट काफी लंबी है. एक नहीं कई मौकों पर नीतीश के नए सेनापति और जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी बिहार में नौकरशाहों की करतूत की पोल खोली. बिहार के दौरे पर निकले उपेंद्र कुशवाहा ने पहली बार जुलाई महीने में यह माना कि यहां लाल फीताशाही की चलती है.


इधर दो दिन पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी और भरोसेमंद नेता उपेंद्र कुशवाहा ने पूर्णिया में अफसरों की मनमानी को लेकर बड़ा बयान दिया और कहा कि बिहार में सरकारी अफसर बिलकुल भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते. अधिकारी नेताओं की बात ही नहीं सुनते. सत्ताधारी दल के नेताओं और पदाधिकारियों की बात को भी अधिकारी नजरअंदाज करते हैं और अनदेखी कर निकल जाते हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि "जनता के समस्याओं के प्रति अधिकारी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. वे कोई भी रेस्पॉन्स नहीं करते. नेताओं की बात अफसरों को सुनना ही पड़ेगा. जो जायज काम है, अधिकारियों को उसे करना ही होगा. जो जायज नहीं है, उसे नहीं करें लेकिन उन्हें सुनना तो पड़ेगा. कई जगह इस तरह की शिकायत मिल रही है कि अधिकारी लोग रेस्पॉन्स नहीं कर रहे हैं. इस तरह से बिलकुल भी नहीं चलेगा."


गौरतलब हो कि बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासनकाल में अफसरशाही को लेकर समय-समय पर आरोप लगते रहे हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी भी बिहार में अफसरशाही हावी होने का आरोप लगा चुके हैं. जीतन राम मांझी ने अपनी राय जाहिर करते हुए यह कह चुके हैं कि बिहार में अफसर विधायकों से बढ़िया बर्ताव नहीं करते हैं यह समस्या अब दिन पर दिन बढ़ती जा रही है.


इन तमाम आरोपों के बीच अभी हाल ही में नीतीश सरकार ने बिहार में बढ़ती अफसरशाही पर लगाम कसने की तैयारी की. अफसरशाही पर अंकुश लगाने के लिए नीतीश सरकार ने अब कड़ा रुख अख्तियार कियाा और राज्य के मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण ने इसके लिए बजाप्ता एक लेटर जारी किया. उसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया कि सांसद और विधान मंडल के सदस्यों की भूमिका लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है. ऐसे में कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा निर्गत पत्रों के आलोक में राज्य सरकार द्वारा भी सरकारी कार्य व्यवहार के प्रक्रियाओं में अनुपालन के लिए समय-समय पर गाइडलाइन जारी किए जाते रहे हैं. 


इन गाइडलाइन के पालन में कमी को देखते हुए लोकसभा की विशेषाधिकार समिति की तरफ से मौजूदा अनुदेशकों को समेकित करने और दोहराने की आवश्यकता महसूस की गई है. इसलिए यह पत्र सभी को भेजा जा रहा है. मुख्य सचिव ने अपने पत्र में कहा है कि निर्धारित निर्देशों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा. मुख्य सचिव के इस पत्र से स्पष्ट हो गया है कि अगर किसी जनप्रतिनिधि को लेकर अधिकारियों का रवैया तय मानकों के विपरीत रहा तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी.