PATNA : बिहार में नगर निकाय चुनाव कैंसिल होने के साथ ही हर तरफ होने वाला चुनावी शोर शराबा थम चूका है. उम्मीदवारों की प्रचार गाड़ियां अब सड़क पर नजर नहीं आ रही है. ना ही उनका जनसंपर्क अभियान ही देखने को मिल रहा है. चुनावी अभियान के लिए उम्मीदवारों की तरफ से जो दफ्तर खोले गए थे उनमें भी ताला लटक चुका है. नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों का हाल दूल्हे के जैसा हो गया है जो बगैर दुल्हन के वापस अपने घर लौट आए. उम्मीदवारों का हाल तो बुरा है ही उनसे ज्यादा बुरा हाल उस तबके का है जो मेयर और डिप्टी मेयर के पीछे इन्वेस्टमेंट कर कहीं ना कहीं नगर निकाय कि सरकार में अपना दबदबा बनाना चाहता था. बिहार में उम्मीदवारों के पीछे मनी बैकअप देने वाले इन्वेस्टर्स को कुछ समझ में नहीं आ रहा है.
हालात ऐसे हो गए हैं कि कई उम्मीदवार जो इन्वेस्टर्स के बूते ही चुनावी मैदान में थे अब वह पल्ला झाड़ कर हॉलीडे पर निकल चुके हैं. कोई नेपाल जा रहा है तो कोई दुर्गा पूजा के बहाने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के विंध्याचल से लेकर झारखंड के रजरप्पा तक का टूर बना कर निकल चुका है. ज्यादातर कैंडिडेट ने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर लिया है. उन्हें मालूम है कि बिहार में आरक्षण को लेकर नगर निकाय चुनाव डिस्पैच में फंसा है. वैसी स्थिति में फिलहाल चुनाव दूर-दूर तक होने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में थकावट को दूर करने और साथ ही साथ स्टेशन से निकलने के लिए हॉलिडे पैकेज सबसे बेहतर विकल्प है.
सबसे बड़ी परेशानी उम्मीदवारों के पीछे पैसा इन्वेस्ट करने वाले लोगों की है जो इस उम्मीद में बैठे थे कि अगर सरकार का में उनका अपना व्यक्ति हो जाएगा. उन्हें चुनाव कैंसिल होने से झटका लगा है. पैसे का इन्वेस्टमेंट वापस आने की संभावना भी नहीं दे रहा. हालांकि कई उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने बूते ही चुनाव में खर्च किया और फिलहाल वह इस मोहित पर बैठे हैं कि आने वाले वक्त में जब चुनाव होगा तो उन्हें फायदा जरूर मिलेगा. आपको बता दें कि बिहार में नगर निकाय चुनाव का पहला चरण 10 अक्टूबर को होना था जबकि दूसरे चरण में 20 अक्टूबर को मतदान होना था.