PATNA : 6 साल के कार्यकाल वाले विधान परिषद की सीट की डिमांड कर रहे वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को आखिरकार बीजेपी ने डेढ़ साल वाली सीट क्यों सौंपी. मुकेश सहनी राज्यपाल कोटे से होने वाले 12 एलएलसी के मनोनयन के जरिये विधान परिषद जाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन बीजेपी ने उन्हें दो सीटों पर हो रहे उप चुनाव में उम्मीदवार बनने को कहा. विधान परिषद की जिन दो सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं उसमें एक का कार्यकाल लगभग साढ़े तीन साल तो दूसरे का तकरीबन डेढ साल बचा था. बीजेपी ने मुकेश सहनी को डेढ़ साल वाली सीट सौंपी है. जानकार बता रहे हैं कि बीजेपी मुकेश सहनी का भरोसा नहीं कर पा रही है. लिहाजा उसने मुकेश सहनी को 6 साल के लिए विधान परिषद भेजने का जोखिम नहीं लिया.
बीजेपी के लिए भरोसेमंद नहीं हैं मुकेश सहनी
बीजेपी के नेता ने बताया कि मुंबई में व्यापार करते करते बिहार आकर नेता बन जाने वाले मुकेश सहनी किसी पार्टी के लिए विश्वसनीय नहीं रह गये हैं. पिछले सात सालों से वे बिहार में राजनीति कर रहे हैं और इस दौरान उन्होंने इतने दफे पाले बदले हैं कि बीजेपी को क्या किसी भी दूसरी पार्टी को ये भरोसा नहीं है कि मुकेश सहनी कब किसके साथ चले जायेंगे.
बीजेपी नेता ने बताया कि 2014 में मुकेश सहनी ने बीजेपी को समर्थन देने का एलान किया था लेकिन उस समय बिहार की सियासत में उनकी पहचान न के बराबर थी. बाद में उन्होंने बीजेपी पर प्रेशर बनाया कि 2015 के विधानसभा चुनाव में उनके एक दर्जन समर्थकों को बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन से टिकट दिया जाये. हालांकि बीजेपी ने कोई नोटिस नहीं लिया. बीजेपी नेता के मुताबिक उसके बाद 2015 के चुनाव से पहले वे बीजेपी के खिलाफ रैली और सभा करने लगे. इस दौरान वे महागठबंधन बनाने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के पास भी खूब दौड़े. लेकिन तब लालू-नीतीश दोनों ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया. हार कर वे फिर से बीजेपी के पास आये. बीजेपी ने उनके दो समर्थकों को टिकट बंटवारे में एडजस्ट करने का आश्वासन दिया तो मुकेश सहनी 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए का प्रचार करने लगे.
2015 विधानसभा चुनाव के बाद मुकेश सहनी ने अपनी पार्टी वीआईपी पार्टी बना ली. पार्टी बनाते ही उनके तेवर बदले. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें एक सीट देने का आश्वासन दिया. लेकिन वे लालू प्रसाद यादव के कैंप में चले गये. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन के साथ मिलकर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा. तीनों पर उनकी करारी हार हुई. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी वे आरजेडी के ही साथ थे लेकिन उनकी डिमांड इतनी बड़ी थी कि तेजस्वी यादव के लिए उसे पूरा कर पाना मुमकिन नहीं था. लिहाजा वे महागठबंधन के प्रेस कांफ्रेंस में तेजस्व यादव पर धोखाधड़ी का आरोप लगाकर निकल लिये.
बीजेपी नेता ने बताया कि 2020 के विधानसभा चुनाव में भी उनसे मजबूरी में ही गठबंधन हुआ था. चिराग पासवान के एनडीए से बाहर जाने के कारण बीजेपी को नुकसान की आशंका थी. लिहाजा जब मुकेश सहनी बीजेपी के दरवाजे पर पहुंचे तो उन्हें 11 सीट देकर गठबंधन में शामिल कर लिया गया. ये वही मुकेश सहनी थे जो आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन में कम से कम 25 सीट और डिप्टी सीएम का पद मांग रहे थे. बीजेपी ने उन्हें विधान परिषद की एक सीट देने का भी भरोसा दिलाया.
विधानसभा चुनाव के बाद जब सुशील मोदी के राज्यसभा जाने और विनोद नारायण झा के विधायक चुन लिये जाने से खाली हुई विधान परिषद की सीटों पर उपचुनाव की बारी आयी तो बीजेपी ने मुकेश सहनी को उप चुनाव में ही उम्मीदवार बनने को कहा. हालांकि मुकेश सहनी ने वीडियो जारी कर कहा कि वे 6 साल वाली सीट से कम पर नहीं मानेंगे. लेकिन बीजेपी उन्हें डेढ़ साल वाली सीट पर ही उम्मीदवार बनाने पर अड़ी रही.
बीजेपी के एक नेता ने बताया कि वैसे मुकेश सहनी से फिलहाल बीजेपी को कोई खतरा नहीं है. अगर वे पाला बदलने की सोंचते भी हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी से जीते चारो विधायक बीजेपी के लगातार संपर्क में हैं. चार में से तीन विधायक तो मूलतः बीजेपी के ही नेता रहे हैं. चुनाव के समय उन्हें वीआईपी पार्टी का सिंबल दिलाकर चुनाव लड़ाया गया. अगर मुकेश सहनी पाला बदलने की सोंचे भी तो विधायक उनके साथ शायद ही जायें.
लेकिन इसके बावजूद बीजेपी मुकेश सहनी को लेकर कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है. मुकेश सहनी अभी विधान पार्षद बन गये हैं लेकिन उन्हें 2022 में फिर से सदन में जाने और मंत्री बनने रहने के लिए बीजेपी के दरवाजे पर जाना होगा. बीजेपी मान रही है कि यही परस्थिति मुकेश सहनी के दिमाग में दूसरे इरादों को रोकेगी. बीजेपी के नेताओं के मुताबिक 2022 में उस वक्त की सियासी परिस्थितियों की समीक्षा के बाद मुकेश सहनी के भविष्य पर फैसला लिया जायेगा.