PATNA : बिहार विधान परिषद की 7 सीटों के लिए चल रही चुनावी प्रक्रिया को लेकर सभी दलों ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है। आरजेडी ने अपने तीन उम्मीदवारों का नामांकन पत्र दाखिल करा दिया है। जनता दल यूनाइटेड की तरफ से दो उम्मीदवारों के नाम की आधिकारिक घोषणा मंगलवार को हो गई लेकिन बीजेपी अब तक अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं कर पाई है। पार्टी के अंदर उम्मीदवारी को लेकर अब तक पेंच फंसा हुआ है। बीजेपी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होना है लेकिन पटना से लेकर दिल्ली तक में बैठे पार्टी के बड़े नेता इन नामों पर अंतिम फैसला नहीं ले पा रहे हैं। दरअसल बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव को लेकर जिस तरह उम्मीदवारी तय की उसके बाद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपने ही बुने जाल में फंसा हुआ नजर आ रहा है।
बीजेपी के अंदरूनी सूत्र बता रहे हैं कि उम्मीदवारी को लेकर फैसले में सबसे बड़ी दीवार कास्ट फैक्टर बनकर उभरा है। दरअसल बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव में जिस तरह जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर उम्मीदवारी तय की उसके बाद एमएलसी चुनाव में भी इसी समीकरण को लेकर बीजेपी का नेतृत्व उलझा हुआ नजर आ रहा है। एमएलसी चुनाव में अलग-अलग नेताओं की तरफ से जातीय आधार पर दावे किए जा रहे हैं। पार्टी नेतृत्व को खुद समझ में नहीं आ रहा कि वह आखिर किस जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर विधान परिषद में प्रतिनिधित्व दे। राज्यसभा चुनाव में एक ब्राह्मण और दूसरे धानुक समाज से आने वाले चेहरे को बीजेपी ने चुना था। जातीय समीकरण का ख्याल रखने के चक्कर में बीजेपी ने ऐसे चेहरे को राज्यसभा भेज दिया जिसका कार्यकाल संगठन में बेहद छोटा रहा है और यही वजह है कि अब बीजेपी में पुराने कैडर की बजाय जातीय समीकरण को लेकर ना केवल दावेदारी हो रही है बल्कि इतने सारे गणित को उलझा कर रख दिया है। खबर यह है कि दिल्ली में कल यानी मंगलवार की देर रात तक के पार्टी के नेता केंद्रीय कार्यालय में बैठे रहे लेकिन एमएलसी उम्मीदवारों पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया। एमएलसी चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का गुरुवार को आखिरी दिन है। ऐसे में आज हर हाल में उम्मीदवारों के नाम की घोषणा होने की उम्मीद है। बीएल संतोष जैसे नेताओं को भी उम्मीदवारी को लेकर माथापच्ची करनी पड़ रही है।
आइए हम आपको बताते हैं कि बीजेपी के अंदर एमएलसी उम्मीदवारी को लेकर दरअसल कौन सा खेल चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के अंदर सवर्ण और निचले तबके से अलग-अलग दो चेहरों को लिए जाने की संभावना है। भूमिहार से लेकर राजपूत जाति तक से आने वाले नेता सवर्ण कोटे में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। फर्स्ट बिहार को जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक लंबे अरसे से संगठन के लिए काम करने वाले अनिल शर्मा जैसे नेताओं का नाम दावेदारों में सबसे ऊपर है लेकिन असल पेंच निचले तबके से दूसरे उम्मीदवार को लेकर फंसा हुआ है। दरअसल मुकेश सहनी के एनडीए से बाहर होने के बाद बीजेपी को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर इस तबके को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तो आगे आने वाले दिनों में निषाद वोट उनसे खिसक सकता है। शायद यही वजह है कि इस तबके से आने वाले किसी चेहरे की तलाश हो रही है। जानकार सूत्रों की मानें तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष एमएलसी चुनाव में एक चेहरा अपने इलाके का चाहते हैं लेकिन क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को यह बात भी हजम नहीं हो पा रही है। राज्यसभा चुनाव में भी चंपारण से आने वाले सतीश चंद्र दुबे को मौका दिया गया। ऐसे में बीजेपी नेतृत्व जातीय समीकरण के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन को भी बनाए रखना चाहता है। दावेदारों की लिस्ट में ऐसे नेता भी शामिल हैं जो सवर्ण जाति से आते हैं और अपनी शादी दूसरी जाति में होने की वजह से डबल फैक्टर वाली दावेदारी कर रहे हैं। कुछ ऐसे नेता भी हैं जो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ सीपी ठाकुर के कार्यकाल से संगठन में मेहनत कर रहे हैं और अब तक अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। अब देखना होगा कि पार्टी का नेतृत्व किन नामों पर मुहर लगाता है और क्षेत्रीय से लेकर जातीय समीकरण तक के लिहाज से क्या दलील दी जाती है।