मदन सहनी प्रकरण में बोले जीतन राम मांझी: बिहार में बेलगाम हो गयी है अफसरशाही, मंत्रियों-विधायकों की कुछ नहीं चलती

मदन सहनी प्रकरण में बोले जीतन राम मांझी: बिहार में बेलगाम हो गयी है अफसरशाही, मंत्रियों-विधायकों की कुछ नहीं चलती

PATNA : बिहार में बेलगाम अफसरशाही से तंग आकर मंत्री मदन सहनी के इस्तीफे के एलान के बाद सियासत गर्म हो गयी है. पूर्व सीएम औऱ हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने भी कहा है कि बिहार के अधिकारी मंत्री-विधायकों की बात नहीं सुनते. मांझी ने कहा कि वे मदन सहनी की बातों से सहमत हैं.


क्या बोले मांझी
जीतन राम मांझी ने कहा कि उन्होंने एनडीए विधायकों की संयुक्त बैठक में भी नीतीश कुमार के समक्ष इस मामले को उठाया था. उन्हें बताया था कि कई अफसर ऐसे हैं जो विधायकों की कौन कहे मंत्रियों की बात भी नहीं सुनते. मांझी ने कहा था कि उन्होंने नीतीश कुमार को कहा था कि विधायकों की इज्जत तब रहेगी जब उनकी बात अफसर सुने और जनता का काम करें. 


जीतन राम मांझी ने कहा कि वे पहले से इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. मंत्री मदन सहनी जो कह रहे हैं उसे सच माना जा सकता है. इस मामले में पूरा डिटेल तो वे नहीं जानते हैं लेकिन उनका अनुभव ऐसा ही रहा है. मांझी ने कहा कि कम से कम 25 प्रतिशत ऐसे अफसर हैं जो जनप्रतिनिधियों की बातों को एकदम नहीं सुनते.


गौरतलब है कि नीतीश सरकार में समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने इस्तीफा देने का एलान कर दिया है.  मदन सहनी ने कहा है कि उनके विभाग में अधिकारियों की तानाशाही चल रही है औऱ अब उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा. मदन सहनी ने अपने विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद पर गंभीर आऱोप लगाये हैं. मंत्री मदन सहनी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने पूरे विभाग को चौपट कर दिया है. विभाग में कोई काम नहीं हो रहा है. 


ट्रांसफर पोस्टिंग में मंत्री की नहीं सुनी जा रही है. प्रधान सचिव चार सालों से विभाग में जमे हैं. प्रधान सचिव बतायें कि उन्होंने क्या किया. विभाग के कई अहम पदों पर सालों से एक ही अधिकारी जमे हुए हैं. उनके कारण सही तरीके से काम नहीं हो पा रहा है. मदन सहनी ने कहा कि प्रधान सचिव मंत्री की बात ही नहीं सुनते. प्रधान सचिव के रवैये को लेकर उन्होंने उपर भी शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गयी. पूरा समाज कल्याण विभाग चौपट हो गया है. इसलिए उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.