लंबे समय तक बिहार में लटकेगा नगर निकाय चुनाव: जानिए क्या है वजह

लंबे समय तक बिहार में लटकेगा नगर निकाय चुनाव: जानिए क्या है वजह

PATNA: पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने मंगलवार की रात बिहार में चल रहे नगर निकाय चुनाव को स्थगित करने का एलान कर दिया. लेकिन अब बड़ी बात ये है कि बिहार में नगर निकाय चुनाव के लंबे समय तक लटकने कि सारी संभावनाएं सामने नजर आ रही हैं. जानिए कौन से हैं कारण जिसके कारण निकाय चुनाव काफी दिनों तक लटका रह सकता है.


सुप्रीम कोर्ट जायेगी राज्य सरकार

बिहार सरकार ने ये एलान किया है कि वह पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेगी. नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाने वाले मंत्री विजय चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि नीतीश सरकार अति पिछड़ों के अधिकार को लेकर सजग है. हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जायेगी. मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में होगा.


लंबी चल सकती है सुनवाई

बिहार सरकार अगर सुप्रीम कोर्ट जाती है तो मामले की सुनवाई तत्काल होने के आसार न के बराबर हैं. सुप्रीम कोर्ट अर्जेंट मामलों की ही तत्काल सुनवाई करता है. अब जब बिहार में चुनाव स्थगित हो गया है तो मामले की तत्काल सुनवाई की कोई हड़बड़ी नही है. सुप्रीम कोर्ट के वकील राजेश कुमार अग्रवाल ने फर्स्ट बिहार को बताया कि ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि सुप्रीम कोर्ट इसे सामान्य मामले की तरह ही देखेगा.


सुप्रीम कोर्ट से राहत की उम्मीद कम

वकील राजेश अग्रवाल ने बताया कि इसकी भी बेहद कम उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार को कोई राहत मिलेगी. निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट आदेश दे रखा है. उसमें किसी राज्य को कोई छूट नहीं दी गयी है. बिहार के मामले में भी पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में ही सुनवाई की थी. पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर अपना जजमेंट दिया है. बिहार सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट अपना ही फैसला बदल लेगा इसकी संभावना न के बराबर है.


 बता दें कि पटना हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि  सुप्रीम कोर्ट की आदेश के विपरीत जाकर बिहार में निकाय चुनाव के लिए सीट आरक्षित किये गए. कानूनी जानकार ये भी कह रहे हैं बिहार सरकार लोगों के बीच भद्द पीटने से बचने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह रही है. उसके केस में कोई दम नहीं दिख रहा है. इससे पहले महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सरकार ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट गयी थी लेकिन कोई राहत नहीं मिली. उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान कर ही स्थानीय निकाय चुनाव कराना पड़ा. 


सुप्रीम कोर्ट का फैसला माना तो भी देर

सबसे पहले ये जानिए कि स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ट्रिपल टेस्ट है क्या. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट का ये आदेश दे रखा है

1- किसी राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना करनी होगी. 

2- आयोग राजनीतिक रूप से पिछड़ों की पहचान कर राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा. उसकी सिफारिशों के मुताबिक स्थानीय निकाय में आवश्यक आरक्षण के अनुपात को राज्य सरकार अधिसूचित करेगी, ताकि किसी तरह का भ्रम न फैले. 

3- किसी भी राज्य में  मामले में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटों के 50% से अधिक नहीं होगा. 

कानूनी जानकार बता रहे हैं कि बिहार सरकार को ऐसा ही करना होगा. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकार आयोग बनाकर, उसकी रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण का प्रावधान कर चुकी है. अब बिहार सरकार को ये पूरी कवायद करनी होगी. जाहिर है इसमे लंबा वक़्त लगेगा. सरकार के पास एक रास्ता ये भी है कि वह निकाय चुनाव में आरक्षण खत्म कर चुनाव करा ले, ये राजनीतिक तौर पर संभव नहीं है. कुल मिलाकर नतीजा यही निकलता है कि बिहार में नगर निकाय चुनाव कराने में अभी लंबा वक़्त लगेगा.