क्या वाकई विधानसभा अध्यक्ष नीतीश की कठपुतली बन गये हैं? आखिर क्यों विधायकों को पीटने वाले एक खास ऑफिसर पर इतनी मेहरबानी

क्या वाकई विधानसभा अध्यक्ष नीतीश की कठपुतली बन गये हैं? आखिर क्यों विधायकों को पीटने वाले एक खास ऑफिसर पर इतनी मेहरबानी

PATNA : पिछले 23 मार्च को लोकतंत्र के मंदिर यानि बिहार विधानसभा परिसर में विधायकों की बर्बर पिटाई के मामले में लीपापोती से नाराज तेजस्वी यादव ने आज सीधे तौर पर कहा कि विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा नीतीश कुमार के हाथों की कठपुतली बन गये हैं. वे सिर्फ वही कर रहे हैं जो नीतीश कुमार कह रहे हैं. वैसे पिछले 23 मार्च को बिहार विधानसभा परिसर में जो कुछ हुआ और उसमें एक खास पुलिस अधिकारी की जो भूमिका थी उसे देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष सवालों के घेरे में जरूर आ गये हैं. दिलचस्प बात ये है कि जिस पुलिस अधिकारी की बात हो रही है वह सरकार के साहब का सबसे करीबी माना जाता है लेकिन सरकार ने सारा दोष विधानसभा अध्यक्ष के मत्थे फोड़ दिया है.


दरअसल तेजस्वी यादव ने आज बिहार विधानसभा में 23 मार्च की घटना पर बहस कराने की मांग की थी. तेजस्वी यादव एक दिन पहले ही सारे विपक्षी  विधायकों के साथ विधानसभा अध्यक्ष से मिल आये थे. वहां उन्हें आश्वासन मिला था कि सदन में चर्चा होगी. लेकिन सदन में आज जब तेजस्वी ने मामला उठाया तो अध्यक्ष औऱ सरकार दोनों ने चर्चा के प्रस्ताव को खारिज कर दिया. इसके बाद पूरे विपक्ष ने विधानसभा के मॉनसून सत्र के बहिष्कार का एलान कर दिया है.


क्या हुआ था 23 मार्च को
23 मार्च बिहार के लोकतंत्र के लिए शायद सबसे काला दिन होगा. जब सदन के अंदर विधायकों पुलिस ने लात-जूतों से पीटा. पत्रकारों को मारा. लोकतंत्र में यही विधायक मालिक होते हैं औऱ अधिकारी लोक सेवक यानि पब्लिक सर्वेंट कहे जाते हैं. लेकिन नौकरों ने मालिकों की बर्बर पिटाई की. पुलिस पिटाई से दो विधायक बेहोश हो गये थे. सरकार कह रही है विधायकों ने ऐसी हालत उत्पन्न कर दी थी कि पुलिस को कार्रवाई करनी पडी. दूसरे शब्दों में कहे तो विधायकों ने लात-जूते खाने लायक काम किया था. वैसे विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में पुलिस औऱ प्रशासन के अधिकारियों को ही जांच का आदेश दे दिया था.


एक खास अफसर पर मेहरबानी क्यों
प्रत्यक्षदर्शियों को 23 मार्च का वाकया याद है, बहुत सारे वीडियो फुटेज भी हैं. इनमें विधायकों की बर्बर पिटाई की जा रही है. दर्जनों विधायकों को पीटा गया. लेकिन इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है कि सिर्फ दो सिपाही को सस्पेंड कर सरकार ने कह दिया कि कार्रवाई हो गयी. 


दो सिपाहियों को सस्पेंड कर सरकार ने अपने उस खास अधिकारी को बेदाग बचा लिया जिसके जिम्मे विधायकों को दुरूस्त करने का काम सौंपा गया था. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि 23 मार्च को जब विपक्षी विधायक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो सबसे पहले पटना के डीएम औऱ एसएसपी वहां पुलिस बल के साथ पहुंचे थे. साथ में सिटी एसपी भी थे. लेकिन इन अधिकारियों की हिम्मत विधायकों को पीटने की नहीं हुई.


प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक विपक्षी विधायकों को ठीक करने के लिए पटना शहर के बाहर तैनात एक एएसपी रैंक के अधिकारी को खास तौर पर विधानसभा बुलाया गया था. एएसपी के क्षेत्र में विधानसभा नहीं था फिर भी उन्हें बुलाया गया. खास अधिकारी के आने के बाद ही ऑपरेशन शुरू हुआ. एएसपी के नेतृत्व में पुलिस बल सदन के अंदर घुसी थी. वहां नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अपनी सीट के सामने खड़े थे. पुलिस नेता प्रतिपक्ष पर भी झपटी थी.


उसके बाद सदन के बाहर मौजूद विधायकों को दुरूस्त करने का काम शुरू हुआ. चोर-डकैत को भी जिस तरीके से नहीं पीटा जाता वैसे विधायकों को पीटा गया था. केहुंनी, लात, घूंसा, थप्पड़ पुलिस वाले विधायकों का सब तरीके से इलाज कर रहे थे. औऱ एएसपी साहब की निगरानी में. विधायकों की बर्बर पिटाई का वीडियो फुटेज मौजूद है औऱ उसमें वो एएसपी भी दिख रहे हैं. लेकिन सरकार या फिर विधानसभा अध्यक्ष ने जो जांच करवायी उसमें एएसपी का कहीं कोई नाम नहीं है.


पुलिस महकमे के ही एक अधिकारी ने बताया कि विधायकों की पिटाई को अंजाम देने वाले एएसपी के खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत कम से कम बिहार के किसी अधिकारी में तो नहीं है. वो साहब की सुरक्षा में लंबे समय तक रहे हैं. उसके बाद हमेशा मलाईदार पोस्टिंग मिलती रही है. उनके कई कारनामे सामने आये हैं लेकिन सब के सब रफा दफा कर दिये गये. किसी की हिम्मत नहीं हुई कार्रवाई की. ऐसे में विधानसभा मामले में क्या कार्रवाई होगी.


सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष को फंसाया
23 मार्च को जब विधानसभा में हंगामा हो रहा था तो विपक्षी विधायक विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष के बाहर बैठे थे. विधानसभा अध्यक्ष अपने कक्ष से बाहर नहीं निकल रहे थे. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि वहां पहुंचे प्रशासन औऱ पुलिस के अधिकारी एक खास कक्ष की ओर बार बार जा रहे थे. और वहां से निकलने के बाद ही कार्रवाई का निर्देश दे रहे थे.


लेकिन सरकार ने इस मामले को बड़ी चतुराई से विधानसभा अध्यक्ष की ओर धकेल दिया है. अब नीतीश कुमार से लेकर उनके खास लोग लगातार ये कह रहे हैं कि 23 मार्च को विधानसभा में जो कुछ हुआ वह विधानसभा अध्यक्ष के कहने पर हुआ. मुख्यमंत्री का तो कोई रोल नहीं था. सियासी जानकार बताते हैं कि जेडीयू की ओऱ से इसका दोष बीजेपी के मत्थे भी मढने की कोशिश हो रही है. जानकार ये भी बताते हैं कि बीजेपी आलाकमान से विधानसभा अध्यक्ष को भी मैसेज दे दिया गया है. करना वही है जो नीतीश कुमार कहें. लिहाजा विधानसभा अध्यक्ष भी इन दिनों बेबस ही नजर आ रहे हैं. 


ये दीगर बात है कि नीतीश कुमार औऱ उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों की लगातार सफाई के बावजूद तेजस्वी यादव यही कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने विधायकों को पिटवाने की साजिश रची थी. तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के नजदीकी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग कर रहे हैं. आज उन्होंने नीतीश के करीबी अधिकारियों की संपत्ति की जांच कराने की भी मांग की है. 


फिलहाल विपक्ष ने विधानसभा के बहिष्कार का एलान कर दिया है. लेकिन सरकार बहस कराने की उनकी मांग को भी मानेगी ऐसा नहीं लग रहा है. जानकार बताते हैं कि बहस हुई तो तेजस्वी यादव पिटाई का सबूत रखेंगे. फिर सरकार के लिए अपने खास अधिकारी को बचाना मुश्किल हो जायेगा.