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1st Bihar Published by: Updated Tue, 27 Jul 2021 06:33:48 PM IST
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PATNA : क्या उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक बीजेपी का विरोध कर मुकेश सहनी फंस गये हैं. 4 विधायकों की उनकी पार्टी में तीन विधायक मुकेश सहनी से नाराजगी जता चुके हैं. उधर उत्तर प्रदेश में मुकेश सहनी की पॉलिटिक्स से बीजेपी खासी नाराज है. सरकार में हाल ये है कि नीतीश कुमार ने उनके विभाग में ऐसे अधिकारी को बिठा दिया है कि विभाग में उनकी नहीं चल रही है. कुल मिलाकर जो नजारा दिख रहा है वह यही है कि मुकेश सहनी की पॉलिटिक्स फंस गयी है.
बीजेपी में भारी नाराजगी
उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरूआत में होने वाला चुनाव भाजपा के लिए जीवन-मरण का सवाल बन गया है. देश के सबसे बड़े राज्य में कोई भी सियासी नुकसान बीजेपी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है. लेकिन मुकेश सहनी ने वहां वोटरों के एक तबके को प्रभावित करने की हर जुगत लगा दी है. वे मल्लाह जाति के वोटरों को अपने पक्ष में लाना करना चाहते हैं. फूलन देवी की जयंती पर प्रतिमा लगाने का प्लान इसी मकसद से बनाया गया था. लेकिन रविवार को उत्तर प्रदेश में जो ड्रामा हुआ उससे बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है.
उसके बाद मुकेश सहनी ने योगी आदित्यनाथ की सरकार के खिलाफ जमकर बयानबाजी भी की है. उत्तर प्रदेश के इस खेल ने बीजेपी नेतृत्व को नाराज कर दिया है. बीजेपी के एक नेता ने बताया कि पार्टी ने इसे काफी गंभीरता से लिया है. हालांकि अभी मुकेश सहनी को लेकर एक्शन नहीं लिया जा रहा है लेकिन बात बढ़ी तो बीजेपी कदम उठायेगी.
पार्टी के विधायकों ने साथ छोड़ा
उत्तर प्रदेश में बखेड़ा खड़ा करने के बाद मुकेश सहनी ने बिहार में भी मोर्चा खोल दिया. उन्होंने एनडीए विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर दिया. मुकेश सहनी का कहना था कि उन्हें सरकार में सम्मान नहीं मिल रहा है. लिहाजा वे विधायक दल की बैठक में जा कर क्या करेंगे. मुकेश सहनी ने अधिकारियों की मनमानी का भी मामला उठाया.
मुकेश सहनी के इस कदम के बाद बीजेपी-जेडीयू ने तो प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन उनकी पार्टी के विधायकों ने ही मोर्चा खोल दिया. मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी से विधायक राजू सिंह ने तीखा हमला बोला. राजू सिंह ने कहा कि पार्टी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं होती है. लेकिन मुकेश सहनी इसे कंपनी की तरह चला रहे हैं. मुकेश सहनी को अगर कोई फैसला लेना था तो विधायकों से बात करनी चाहिये थी. लेकिन उन्होंने विधायकों से बात किये बगैर बैठक के बहिष्कार का फैसला ले लिया. राजू सिंह ने कहा कि एनडीए की बैठक में वीआईपी के विधायकों को जाना चाहिये था. वहां वे मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी बात रख सकते थे.
उधर वीआईपी के एक और विधायक मिश्रीलाल यादव ने भी मुकेश सहनी का विरोध कर दिया. मिश्रीलाल यादव ने कहा कि एनडीए की बैठक का बहिष्कार का फैसला गलत था औऱ विधायकों की राय लिये बगैर मुकेश सहनी ने फैसला ले लिया. ऐसा नहीं होना चाहिये था.
पार्टी की एक विधायक स्वर्णा सिंह भी मुकेश सहनी के फैसले के साथ नहीं हैं. हालांकि उन्होंने मीडिया में कोई बयान नहीं दिया है लेकिन स्वर्णा सिंह बीजेपी बैकग्राउंड की नेत्री हैं. बीजेपी के नेताओं से उनके पूरे परिवार की लगातार बातचीत होती रहती है. स्वर्णा सिंह के एक नजदीकी ने बताया कि जब बीजेपी से ग्रीन सिग्नल मिलेगा तो वे भी मुकेश सहनी के खिलाफ बोलेगी.
विधायकों को संभालना मुश्किल
दरअसल सबसे बड़ी समस्या ये है कि मुकेश सहनी की पार्टी के चारों विधायक उनकी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं हैं. चारों विधायक तो चुनावी टिकट लेने के लिए उनकी पार्टी में ऐन चुनाव के वक्त आय़े. चार में से तीन विधायक बीजेपी बैकग्राउंड से हैं और तीनों ने बीजेपी से अपने मधुर रिश्ते बना कर रखा है.
वीआईपी की विधायक स्वर्णा सिंह का पूरा परिवार ही बीजेपी से जुड़ा रहा है. उनके ससुर सुनील सिंह बीजेपी के विधान पार्षद थे. कोरोना से उनका निधन हो गया. अब जब स्थानीय निकाय कोटे से विधान पार्षद का चुनाव होगा तो उनके बीजेपी से स्वर्णा सिंह के पति को टिकट देने की बात चल रही है.
मुकेश सहनी के खिलाफ खुलकर बोलने वाले राजू सिंह भी 2020 के चुनाव से पहले बीजेपी में ही थे. 2015 में उन्होंने बीजेपी के टिकट से ही चुनाव लडा था लेकिन हार गये थे. 2020 में जब उनकी साहेबगंज सीट वीआईपी पार्टी के खाते में चली गयी तो राजू सिंह ने वीआईपी से टिकट अरेंज कर चुनाव लड़ा औऱ जीत गये.
वीआईपी के एक औऱ विधायक मिश्रीलाल यादव भी बीजेपी के नेता रहे हैं. मिश्रीलाल यादव ने भी 2015 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के टिकट से लड़ा था. 2020 में उनकी अलीनगर सीट वीआईपी के कोटे में गयी तो उन्होंने टिकट मैनेज किया औऱ वीआईपी पार्टी के विधायक बन गये.
वीआईपी के चौथे विधायक मुसाफिर पासवान हैं. उनका भी मुकेश सहनी से कोई वास्ता नहीं रहा है. चुनाव के वक्त टिकट लेने में सफल रहे और विधायक बन गये. मुसाफिर पासवान भी बीजेपी-जेडीयू नेताओं के संपर्क में रहते हैं.
ऐसे में सवाल ये है कि मुकेश सहनी अगर बीजेपी या जेडीयू से विद्रोह करते हैं तो उसका परिणाम क्या होगा. जाहिर तौर पर उनकी पार्टी के विधायक ही साथ नहीं रहेंगे. बड़ी बात ये भी है कि खुद मुकेश सहनी बीजेपी के कोटे से एमएलसी बने हैं. 2022 में उनका कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है. अगर उस वक्त बीजेपी उन्हें एमएलसी बनाने को तैयार न हो तो मंत्री की कुर्सी भी जायेगी.
उधर जिस विभाग के वे मंत्री हैं वहां भी नीतीश कुमार ने कमान कस रखी है. मुकेश सहनी का अपने विभाग के सचिव से पहले ही विवाद हुआ था तो सचिव ने सरकार को लिख कर दे दिया था कि वे पशुपालन विभाग में काम नहीं करेंगे. सरकार ने पुराने सचिव को हटाया तो वहां ऐसे प्रधान सचिव को बिठा दिया है जो नीतीश कुमार की बेहद करीबी मानी जाती हैं. वे जिस भी विभाग में रहीं वहां मंत्रियों की नहीं चली. जाहिर तौर पर मुकेश सहनी की भी अपने विभाग में बहुत नहीं चल रही है.
नीतीश को खुश करने की रणनीति
एनडीए में मुकेश सहनी की एंट्री बीजेपी के जरिये हुई थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ही उन्हें अपने कोटे से 11 सीट दी. फिर उन्हें एमएलसी बनवाया. लेकिन अब बीजेपी से ही दो-दो हाथ करने को तैयार मुकेश सहनी ने नीतीश कुमार को खुश करने की रणनीति अपनायी है. वे लगातार नीतीश कुमार औऱ उनकी सरकार की तारीफ कर रहे हैं. जीतन राम मांझी के जरिये भी वे नीतीश कुमार से मधुर संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं. मुकेश सहनी जान रहे हैं कि बिहार में बीजेपी औऱ नीतीश कुमार के बीच शीतयुद्ध चल रहा है. लिहाजा वे नीतीश के साथ आकर अपनी सियासत को धार देना चाह रहे हैं. लेकिन जेडीयू औऱ नीतीश के बॉडी लैंग्वेज से कहीं ये नजर नहीं आ रहा है कि मुकेश सहनी को जेडीयू में तवज्जो मिल रही है.
कुल मिलाकर मुकेश सहनी फंसे हुए नजर आ रहे हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वे आगे अपनी सियासत को कैसे मुकाम तक पहुंचाते हैं.